Find the Latest Status about जाता नाही जात नाटक pdf from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, जाता नाही जात नाटक pdf.
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी सजा के थाली में हर साल बजट आता है सरकारों के हिसाब किताब आम मतदाता समझ नही पाता है रोज डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ाते है सिलेंडरों के दाम आसमान चढ़ जाते है महँगाई से जूझते रोज हम बीच बीच मे क़ई चीजो के दाम बढ़ जाते है फिर बजट का नाटक क्यो किया जाता है पिछले सालों के वायदे पूरे नही नया नाटक कर जनता को भरमाया जाता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" नया नाटक कर जनता को भरमाया जाता है #Budget2021
Mrunali Parkar
खोल दरी होती खाली... जिकडे मी खेचत जात होते.. का कुणास ठाऊक भय मला वाटत न्हवते.. कळत न्हवते तुझा हात निसटला माझ्या हातातून तर माझे अस्तित्व काय राहणार होते.. पण अशी काय जादू झाली.. मी भानावर आले.. तुझ्या शिवाय जगण्याची कल्पना सहन नाही झाली. आणि मला पडू न देण्याची तुझी धडपड जेव्हा तुझ्या डोळ्यात दिसली.. तेव्हा मला माझीच नव्याने ओळख पटली....... मी फक्त नि फक्त तुझीच होती.. तुझीच होती. प्रेम जर खरे असेल तर ते कधीच सोडून जात नाही ♥️
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक