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Ritu Bala
मैं हवा बन के तेरे नाल चला गी शायद कोई सुरम्यी संगीत बन के तेरे कना च घुला गी, या शायद तेरे अख दा हंजू बन के जमीन ते डुला गी, या फिर तेरी तन्हायिया च यादा दिया तंदा बुना गी, मिलना बिछड़ना ते तक़दीरा दे खेल ने, पर समय दे कण ते पूरी कायनात च बिखरे ने, मैं ओना कणा नू चुना गी मैं तेनु फेर मिलागी पता नी किथे, किंवे, किस तरह शायद कायनात तो परे पर मैं तेनु जरूर मिलागी ©Ritu Bala inspired by अमृता प्रीतम सिंह जी, मैं हवा बन के तेरे नाल चला गी #Childhood
Khushboo
इस जीवन में आने का बहुत आभार तुम्हारा है। मैं काठी की नैया हूँ ये पतवार तुम्हारा है। ये सारे बंधन मिथ्या है, बस सच्चा प्रेम तुम्हारा है। इस जीवन में आने का बहुत आभार तुम्हारा है। ©Khushboo प्रीतम
Dr.Laxmi Kant trivedi (lucky)
मैं वह लानत हूँ जो इन्सान पर पड़ रही है मैं उस वक़्त की पैदाइश हूँ जब तारे टूट रहे थे जब सूरज बुझ गया था जब चाँद की आँख बेनूर थी मेरी माँ की कोख मज़बूर थी #अमृता_प्रीतम #जन्मजयंती अमृता प्रीतम
Dr.Laxmi Kant trivedi (lucky)
Path मैंने अल्फाज को आग बनाया और जीने के लिए कलम का सहारा लिया एक शख्स जिसे हमने अपना खुदा माना, उसने ही हमे धोखा दिया तब दुनिया से सीख मिली हमें, कि प्यार करो मगर ज़मीर जिंदा रखो अपना बीच मे साथ छोड़ दें तो उसका क्या रोना रब ने जो हुनर दिया उसे उभार लिया दर्द से हम रहे लबरेज़ पर, जिंदगी को नया को ढंग दिया मीरा हो या राधा प्रेम मे कब किसे सकूँन मिला समर्पण ही प्यार है , यही सोच के जीवन गुज़र दिया अमृता प्रीतम अमृता प्रीतम
Ajay Raja (Shahjad puri)
बारिश की रिमझिम बूँदो ने दिल को आवाज लगाया है संगीत से भी प्यारा देखो सावन का मैसम आया है पकते अमरूद हैं गाँवो मे उसने भी हमे बुलाया है कटते ना दिन ना राते हैं फिर भी दिल को समझाया है बारिश की रिमझिम बूँदो ने दिल को आवाज लगाया है शायर अजय राजा (शहजाद पुरी) शीर्षक --""प्रीतम"'
Swati Gupta
गर अमृता के दिल तक पहुचना इतना आसान होता तो हर कोई इमरोज़ होता... #अमृता प्रीतम
Chandan Ki kalam
आज सूरज ने कुछ घबरा कर रोशनी की एक खिड़की खोली बादल की एक खिड़की बंद की और अंधेरे की सीढियां उतर गया… आसमान की भवों पर जाने क्यों पसीना आ गया सितारों के बटन खोल कर उसने चांद का कुर्ता उतार दिया… मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं तुम्हारी याद इस तरह आयी जैसे गीली लकड़ी में से गहरा और काला धूंआ उठता है… साथ हजारों ख्याल आये जैसे कोई सूखी लकड़ी सुर्ख आग की आहें भरे, दोनों लकड़ियां अभी बुझाई हैं वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये वक्त का हाथ जब समेटने लगा पोरों पर छाले पड़ गये… तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी इतिहास का मेहमान मेरे चौके से भूखा उठ गया… ©Chandan Kumar #अमृता प्रीतम