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vishnu thore
आस लावुनी ही सुगंधी मन उदासलं गं भोळ तू येण्याच्या वाटेवरती मी अंथरलं हे डोळ - विष्णू थोरे ९३२५१९७७८१ आस लावुनी ही सुगंधी मन उदासलं गं भोळ तू येण्याच्या वाटेवरती मी अंथरलं हे डोळ - विष्णू थोरे ९३२५१९७७८१
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
अश्लेष माडे (प्रीत कवी )
वाटतं तितकं सोपं नसतं गं, कोणावरही जीवापाड एकतर्फी प्रेम करणं, क्षणोक्षणी तिच्याच आठवणीत जगणं, तिचे सगळे चुका विसरून, लगेच माफ करणं, आणि बेशरम होऊन पुन्हा तिच्याशी बोलणं, सोपं नसतं गं, कोणावरही एकतर्फी जीवापाड प्रेम करणं.. आपण तीला नाही आवडत, आणि ती कधीच आपली होणार नाही, हे माहित असूनसुद्धा, फक्त तीला आणि तिलाच प्रेम करणं.. ती कितीही तिरस्काराने बोलली तरी, गोड बोलून लहान होऊन तीला मानवणं, सोपं नसतं गं खरंच, कोणावरही एकतर्फी जीवापाड प्रेम करणं... प्रीत सोपं नसतं गं