Find the Latest Status about दिप्ती केतकर from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, दिप्ती केतकर.
SONALI SEN
।।हर हर नर्मदे।। जिसकी प्रवाह धार है,जिसकी उछाल विशाल है , जो संगमरमर से है निकली,उलटी जिसकी चाल है, मध्य भारत मे बड़ी है, उपमहाद्वीप की लम्बी नदी है, बाद कृष्णा गोदावरी के, भारत मे तीसरी बड़ी है, लहर लहर लहरों मे उल्टी बहती निर्मल धार है, अद्भुत रूप मोहनी छबि जो मगर पे सवार है, हर हर नर्मदे सभी उच्चारे जिनकी दिप्ती महान है, माई नर्मदे के कंकड़ मे शिव शंकर विद्यमान है।। ......सोनाली सेन सागर (मध्य प्रदेश) ©SONALI SEN नर्मदा जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏♥️💐#हर_हर_नर्मदे ।हर हर नर्मदे।। जिसकी प्रवाह धार है,जिसकी उछाल विशाल है , जो संगमरमर से है निकली,उलटी
SONALI SEN
।।हर हर नर्मदे।। जिसकी प्रवाह धार है,जिसकी उछाल विशाल है , जो संगमरमर से है निकली,उलटी जिसकी चाल है, मध्य भारत मे बड़ी है, उपमहाद्वीप की लम्बी नदी है, बाद कृष्णा गोदावरी के, भारत मे तीसरी बड़ी है, लहर लहर लहरों मे उल्टी बहती निर्मल धार है, अद्भुत रूप मोहनी छबि जो मगर पे सवार है, हर हर नर्मदे सभी उच्चारे जिनकी दिप्ती महान है, माई नर्मदे के कंकड़ मे शिव शंकर विद्यमान है।। .READ CAPTION ©SONALI SEN ।हर हर नर्मदे।। जिसकी प्रवाह धार है,जिसकी उछाल विशाल है , जो संगमरमर से है निकली,उलटी जिसकी चाल है, मध्य भारत मे बड़ी है, उपमहाद्वीप की लम्
SONALI SEN
माँ कंठ को सवार कर,हंस पे विराजिये , प्रसार ज्ञान उर में दे, हाँथ सर पे धारिये।। स्वेत वस्त्र धारिणी,कर मे वीणा पाणिनि , जयतु जय माँ शारदे,भय तिमिर का छाट दे। कर दे माँ प्रवीण कंठ,मन से हटा द्वेष द्वंद, माँ स्वरों का सार दे, वीणा की झंकार दे., बसंत की बहार दे,पतझड़ को छाटिये। प्रसार ज्ञान उर में दे, हाँथ सर पे धारिये।। जीवन में राग रंग का, दीप माँ उजियार दे, सप्त स्वर की दायनी, वीणा को सवार दे । शरण चरण तेरे रहूं, दिप्ती को निखार दे, भगवती हे शारदे, शब्दों को उभार दे., नज़रे करम किजीये, निगाह हम पे डालिये । प्रसार ज्ञान उर में दे, हाँथ सर पे धारिये।। मैं भी जग का हित करू, ऐसा वर माँ दीजिए , मन में प्रेम भाव हो, विकार दूर किजीए । देश हित मे जी सकूँ देश हित में मर सकूँ, हिय मे ऐसा देश प्रेम,भाव माँ भर दीजिए ., माँ मांगती हूँ वर यही, हिय में आ विराजिये। प्रसार ज्ञान उर में दे, हाँथ सर पे धारिये।। माँ कंठ को सवार कर,हंस पे विराजिये , प्रसार ज्ञान उर में दे, हाँथ सर पे धारिये।। ....सोनाली सेन (सागर मध्यप्रदेश ) ©SONALI SEN माँ कंठ को सवार कर,हंस पे विराजिये , प्रसार ज्ञान उर में दे, हाँथ सर पे धारिये।। स्वेत वस्त्र धारिणी,कर मे वीणा पाणिनि , जयतु जय माँ शारदे,
Dipti Joshi
Dipti Joshi
मैं रग रग से वाकिफ हूँ तेरे हर रंग से वाकिफ हूँ तू दिखता जितना भी नाजुक मैं तेरे शातिर मन से वाकिफ हूँ ख्वाब दिखाना चाँद के दिन भर रात में उन पर डाल के मिट्टी तेल सुबह तक राख कर देना मैं तेरे कर्मों से वाकिफ हूँ तेरे अंदर छल है भयंकर तू कायर, तू नीच असुर तुझ में ना बाकी करुणा जरा भी तू कैसा इंसान धरती पर तू कैसा इंसान धरती पर अद्भुत होती प्रेम की भाषा तूने देकर प्रेम की आशा तोड़ दिए सब भ्रम ख़ुशी के देकर धोखे, देकर झांसा विचलित होता मन यह मेरा पत्थर का क्यों मन यह तेरा नहीं रहा अब धैर्य जरा भी मुझे चाहिए तुझ से मुक्ति मैने देखा है खुद के भीतर मैं ना अबला, मैं हूँ शक्ति। © दिप्ती जोशी मैं रग रग से वाकिफ हूँ तेरे हर रंग से वाकिफ हूँ तू दिखता जितना भी नाजुक मैं तेरे शातिर मन से वाकिफ हूँ ख्वाब दिखाना चाँद के दिन भर रात मे
Dipti Joshi
ऋतु ने आज आवाज़ दी नभ में मेघों ने हलचल की है कर रही लताएं वृक्षों का श्रृंगार सावन नेे कैसी आग लगाई है कृषक के घर झूमकर आई खुशहाली फसल उगाने की बेला संग लाई है झर झर बरसेगा अब के सावन हर दिल ने यही इच्छा जताई है। कोई शिव, कोई कृष्ण भक्ति में लीन प्रेमिकाओं ने झूलों पर डोर लगाई है प्रेम रस में डूबी सब सखियाँ हिना की महक ने सारी नगरी महकाई है गूँज रहा संगीत उपवन उपवन सुमन और तितली ने जुगलबंदी गाई है कर रहे मोहित मयूर नृत्य से याद इस सावन में मोहन की आई है। © दिप्ती जोशी ऋतु ने आज आवाज़ दी नभ में मेघों ने हलचल की है कर रही लताएं वृक्षों का श्रृंगार सावन नेे कैसी आग लगाई है कृषक के घर झूमकर आई खुशहाली फसल
Dipti Joshi
मेरे आसपास धुंध है रिश्तों का मायाजाल और एक घर भी, पास में हैं कुछ किताबें चिथड़े हैं पन्नों के और एक कलम भी जो अब रुक रुक के चलती है, खो गयी है डायरी मेरी और मेरी हंसी भी, कमरे का नक्शा बदला हुआ है हट गया है रोशन दान और वहाँ का रंग भी, कट गया है पेड़ अमरूद का मर गई गौरैया सालों पुरानी और मेरा बचपन भी, रखा था रिश्ता बचा के जो अब तक टूटा है देने से बस एक जवाब पलट कर और टूटा है मेरा धैर्य भी, बैठा है मेरा मन गुमसुम अकेले दिख रहे हैं हर तरफ अब बस अंधेरे और मैं कहाँ हूँ? थी मैं जो पहले पुरानी ढूँढती हूँ रोज़ उसे पर नहीं मिली मैं खुद को फिर कभी शायद मैं भी रंगी जा चुकी हूँ यदि नहीं रंगी गई तो फिर मैं कहाँ हूँ? मैं कहाँ हूँ? ©दिप्ती जोशी मेरे आसपास धुंध है रिश्तों का मायाजाल और एक घर भी, पास में हैं कुछ किताबें चिथड़े हैं पन्नों के और एक कलम भी जो अब रुक रुक के चलती है, ख
Dipti Joshi
Dipti Joshi
वो माँ थी मार जिसे डाला माँ का श्राप लगा तो क्या होगा। (पूरी कविता कैप्शन में...) © दिप्ती जोशी इससे भयानक क्या होगा मृत्यु तो सबको मिलती है पर मृत्यु का मरना क्या होगा। धर्म अधर्म को छोड़ ही दो