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तुषार"आदित्य"
लैला का मजनू था,अब बंदी का बंदा है। ये प्यार पहले अंधा था अब बस धंधा है। ना जाने कौन थे सिकंदर,दुनिया जीतते थे। आजकल सब के ही तो मुह में रजनीगंधा है। अबकी है जो सबकी असलियत मालूम होगी। ये तेरे खुद के पैर हैं,थोड़े ही बाप का कंधा है। ये मर-मर के जीना और फिर जीने को मारना । कभी कोशिश,कभी आदत,कभी हथकंडा है। लैला का मजनू था,अब बंदी का बंदा है। ये प्यार पहले अंधा था अब बस धंधा है। ना जाने कौन थे सिकंदर,दुनिया जीतते थे। आजकल सब के ही तो मुह में र
mamta negi
कौन जाने ये सफर कितना है..... ना ख्वाहिशें , ना उम्मीद का बिखरना है इसमें हरदम खुशी से चलना है कौन जाने ये सफर कितना है..... ना आंखों में दिलकश सूरत तेरी ,ना शौक अमीरी रखना है इसमें हर पल तेरी मोहब्बत में जीना है कौन जाने ये सफर कितना है...... ना तुझे , ना तेरी चाहत को जीतना है इसमें हर दिन बेखौफ तेरी यादों में रहना है कौन जाने ये सफर कितना है.... ना तेरे पास आना ,ना तुझसे दूर जाना है इसमें हर शाम का गीत तेरे साथ गुनगुनाना है कौन जाने ये सफर कितना है.... ना अपना ,न पराया कह लाना है इसमें तेरी प्यारी यादों के साथ गुजर जाना है -Maira #कौन जाने
Shashi Bhushan Mishra
किसको कब जाना है जाने कौन, संत, फ़कीर, नज़ूमी बैठे मौन, प्रकृति नियम से चलती सब जाने, जीवन चले इशारे किसके गौण, बंद है दरवाज़ा अज्ञान के ताले में, कैसे खुले जड़वा रक्खा सागौन, जीवन का हरपल अवसर से पूर्ण, वक़्त मुसाफ़िर खाना माया रौण, पूरे का व्यापार जगत है एक मेला, सिक्का चलता ख़रा न आधा-पौन, बिना ज्ञान नौका हरगिज पार नहो, कोशिश करके देखलो चाहे जौन, मिला सारथी 'गुंजन'दरिया पार हुए, भटक गए तो लख चौरासी यौन, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #जाने कौन#
AWARA PARINDA
एक उधार की ज़िंदगी वक़्त जाया करने में कट गई मौत आयी तो,वो भी हिस्सो में बट गईं रेत ही तो है उड़ रही है हवा के साथ धूप निकली ही थी के आंधिया भी छ्ठ गई विनीत कुमार मित्तल कौन जाने
krishna kumar
भूल गए सब गाँधी जी को सबके मुह पे सलमान खान है क्या पहली केई तरह हमारा देश अभी भी महान है:::::::: कौन जाने
HANAMANT YADAV (कवीराज)
भगतसिंह कौन थे।... खुब लडे थे रत्न यहापर, ये किस्से इतिहास ने कहे थे। गर जेल जानेवाले वीर थे, तो बतावो भगतसिंह तुम कौन थे।... मौत को सामने देख, कुछ परींदे उडे थे। गले लगाने मौत को, कुछ शेर खडे थे। शहादत पे तेरी सलाम ठोकने वाले, चोर सारे मौन थे। गर जेल जानेवाले वीर थे, तो बतावो भगतसिंह तुम कौन थे।... माफी मांगता गर तू भगतसिंह, तो पैरोमे तेरे ताज होता। शियासती दल्लोंके बीच, उजागर तुभी आज होता। पर पुरी आझादी के ख्वाब मे, तेरे आरमां लहुलुहान थे।... गर जेल जानेवाले वीर थे, तो बतावो भगतसिंह तुम कौन थे।... ये शियासत अब तु ही बता, रत्न होने कि अहेमीयत क्या है। फांसी पर झुले उन शहीदोंकी, शहादत कि अहेमियत क्या है। आखो मे खौप लिए चुपचाप होनेवाले, गर रत्नों के खादान थे। तो हसते हसते फांसीपर झुलनेवाले, शहीद भगत सिंह कौन थे।... कवीराज। ९०२१०३४९१७. भगतसिंह कौन थे।...