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Devesh Dixit
जीने लगें हैं अब सारे गमों को पीछे छोड़, देखो जीने लगे हैं अब। लोगों की फ़िक्रों को छोड़, देखो बढ़ने लगे हैं अब। नज़रअंदाज़ किया उनको, जिसने भी कांँटे बोए हैं। क्या कहें अब हम उनको, वे खुद ही कर्मों पर रोए हैं। उन्हें उनके हाल पर छोड़, सपने बुनने लगे हैं अब। उन सपनों को अपने जोड़, देखो जीने लगे हैं अब। क्यों करनी है उनकी चिंता, उनसे क्या सरोकार है अब। नकाब के पीछे है जो चेहरा, उन पर कहाँ एतबार है अब। आशाओं को जो हटाया, देखो जीने लगे हैं अब। स्वयं को फिर सुदृढ़ पाया, और संवरने लगे हैं अब। ..................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #जीने_लगें_हैं_अब #nojotohindi #nojotohindipoetry जीने लगें हैं अब सारे गमों को पीछे छोड़, देखो जीने लगे हैं अब। लोगों की फ़िक्रों को छोड़,
Babli BhatiBaisla
अपने कसूर को कसौटी पर तौलना चाहते हैं अपने हक की हकीकत को टटोलना चाहते हैं खामोशियों के पैमानों से शोर बटोरना चाहते है हम पत्थरों की दीवारें शीशे से तोड़ना चाहते हैं एक दिन के सम्मान से वर्ष भर के घाव भरते नहीं सोच ही है सरोकार विचार दिन देख बदलते नहीं बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla सरोकार Neel 0 Bhardwaj Only Budana R Ojha Anshu writer अज्ञात