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Anita Mohan

SATYANJAY CHATURVEDI

#श्याम #मेरे श्यामसुंदर #श्याम मेरे मेरे श्याम #Create Song #Singer #कविता

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राकेश मनावत"राज"

मनुकूल का लघुतम बिंदु विस्तीर्ण गगन का इंदु हु। कोटि कोटि मानव मन का हृदय सम्राट मैं हिन्दू हु। जयतु हिन्दू राष्ट्रम। कवि राकेश मनावत "राज" #विचार

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 मनुकूल का लघुतम बिंदु विस्तीर्ण गगन का इंदु हु।
कोटि कोटि मानव मन का हृदय सम्राट मैं हिन्दू हु।
जयतु हिन्दू राष्ट्रम।
कवि राकेश मनावत "राज"

राम राम

जय माता दी जय माता दी जय माता दी जय श्री राम राधे-राधे जय श्री कृष्ण भारत माता की जय जय हिंद जय दुर्गा माता की जय हो जय श्री सीताराम जय श्या #कहानी

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जय माता दी जय श्री राम
जय श्री बजरंगबली हनुमान जय श्री राधे राधे कृष्ण भगवान
जय हो शनि देव भगवान ओम नमः शिवाय
हर हर महादेव जय श्री गणेश जय माता सरस्वती हो
जय श्री जय श्री काली माता जय माता दी ईलू तिवारी प्रणाम करते हैं
🙏🌺🙏🙏🙏🙏 ईलू तिवारी शायर
स्वतंत्रता दिवस पर पर आप सभी देशवासियों का हार्दिक अभिनंदन करता है 15 अगस्त 1945 को हमको आजादी का
शुभ अवसर जिस वीरों ने अपना बलिदान देकर हमको आजादी दिलाई है हमें आओ हम सब देशवासी मिलकर हिंदुस्तान वीर जवानों को मां के लालो को याद करें फिर दिखाए गए राह पर हम
 एकजुट 
होकर एक साथ चलें कोई कुछ भी कहे हम हिंदुस्तानी है जय हिंद भारत माता की जय जय कार हम करेंगे जय श्री राम भारत माता की जय ईलू कहते रहेंगे भारत माता की जय शायरी लिख रहा हूं 
  कोई भी  जात हो कोई भी धर्म हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता हम तो बस इतना जानते हैं हम हिंदुस्तानी हैं जय हिंद का नारा लगाते हैं
हम हिंदुस्तानी हैं हमारा हिंदुस्तान है और रहेगा जाति और धर्म चाहे जो भी हो पर होठों पर भारत माता की जय रहेगा परमात्मा अलग नहीं है
धर्म से कोई फर्क नहीं पड़ता है जय श्री राम सीताराम जय श्री सीताराम वाहेगुरु रहीम चाहे हो कोई भी धर्म सबका मालिक तो भाइयों एक होता है हर हर महादेव हम हिंदुस्तानी हैं हम हैं हमारे दिल में श्री राम सीता राममाता माता सीता हनुमान महादेव भगवान जय श्री गणेश जय माता दी जय दुर्गा काली जय जगदंब भवानी के साथ साथ बच्चे बच्चे के दिल में हिंदुस्तान बसता है जात धर्म कोई भी वह हमारा जय हिंद जय हिंद जय भारत सारा हिंदुस्तान कहता रहता है है वंदे मातरम जय हिंद  जय माता दी जय हिंद जय भारत ईलू बार-बार कहता है जय माता दी जय माता दी जय माता दी जय श्री राम राधे-राधे जय श्री कृष्ण भारत माता की जय जय हिंद जय दुर्गा माता की जय हो जय श्री सीताराम जय श्या

राकेश मनावत"राज"

कटता रहा यदि इसी तरह ये गुलिस्ता तो वो दिन दूर नही जब कपोलो में पानी ओर उम्मीदों में हवा लेकर घूमते रहोगे। दूर दूर तक तरसोगे छाया को, प्राण

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 कटता रहा यदि इसी तरह ये गुलिस्ता 
तो वो दिन दूर नही जब कपोलो में पानी
ओर उम्मीदों में हवा लेकर घूमते रहोगे।
दूर दूर तक तरसोगे छाया को,
प्राण

राकेश मनावत"राज"

काश मैं एक परिंदा होता उड़ता स्वछंद गगन मे गाता प्रकृति के स्वर में नापता ऊचाईयां नभ की नही करता उस छुद्र मानव की तरह जो बो रहा बीज विष वृक्ष

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 काश मैं एक परिंदा होता
उड़ता स्वछंद गगन मे
गाता प्रकृति के स्वर में
नापता ऊचाईयां नभ की
नही करता उस छुद्र मानव की तरह
जो बो रहा बीज विष वृक्ष

Insprational Qoute

इनके स्वयं के हृदयमन में भी कान्हा बसते हैं, कृष्ण की प्रीत में रंगे है पर नही झलकाते है, बड़े ही शांतचित्त है,हम भी जरा इन्हें जानते है, मेर #testimonial

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प्रिय मन भाई सा🤗

इनके स्वयं के हृदयमन में भी कान्हा बसते हैं,
कृष्ण की प्रीत में रंगे है पर नही झलकाते है,
बड़े ही शांतचित्त है,हम भी जरा इन्हें जानते है,
मेरे अभिप्रेरक भाई सा,सबको मार्ग दिखाते है।


हे श्यामसुंदर कृष्ण कन्हैया आपके ही बड़े भक्त है,
सारी परेशानी दूर करो इनकी,खुशियों भरा संसार मिले हमारी प्रार्थना आपसे सख्त है।

🙏🙏💝💝जय श्री राधेकृष्णा 💝💝🙏🙏 इनके स्वयं के हृदयमन में भी कान्हा बसते हैं,
कृष्ण की प्रीत में रंगे है पर नही झलकाते है,
बड़े ही शांतचित्त है,हम भी जरा इन्हें जानते है,
मेर

Vijay Tyagi

जोगी रा..सारा..रा...रा..रा...रा... जोगी रा..सारा..रा...रा..रा...रा... चली पनघट से मटक-मटक के लट नागिन सी झटक-झटक के अधजल गगरी छलक-छलक के संग #Holi #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqhindi #होली #holispecial #माशारत्ती

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जोगी रा..सारा..रा...रा..रा...रा...
जोगी रा..सारा..रा...रा..रा...रा...
चली पनघट से मटक-मटक के
लट नागिन सी झटक-झटक के
अधजल गगरी
🙏🙏🙏
पूरी कविता नीचे अनुशीर्षक में पढ़ें जोगी रा..सारा..रा...रा..रा...रा...
जोगी रा..सारा..रा...रा..रा...रा...
चली पनघट से मटक-मटक के
लट नागिन सी झटक-झटक के
अधजल गगरी छलक-छलक के
संग

अज्ञात

#रत्नाकर कालोनी पेज-3 इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से "णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, #प्रेरक

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पेज-3
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इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से 
"णमो अरिहंताणं,णमो सिद्धाणं,णमो आयरियाणं,णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं।" मंत्रों की मधुर धुन मन को मोहे लेती थी..यूँ तो 
कथाकार प्रत्यक्ष सानिध्य से अछूता रहा किन्तु यत्र तत्र किवदंतियों एवं 
परोक्ष दर्शन में भी राखी जी का व्यक्तित्व "सत्यहंस" की तरह विशिष्ट समझ 
आया..कथाकार स्वयं को उत्साहित और गौरवान्वित अनुभव कर आगे बढ़ा 
कुछ दूर चलते ही अचानक कथाकार स्तब्ध रह गया शायद कोई बंशी पर 
कोई राग छेड़ रहा था कथाकार उस धुन की दिशा में बढ़ते बढ़ते आयशा के 
घर तक जा पहुंचा जहाँ आयशा हाथ में मुरली लिये श्यामसुंदर के सम्मुख 
अभ्यास करती नज़र आ रहीं थीं..आयशा, कम उम्र में असाध्य को साधने 
की जद्दोजहद में अपने हौसलों के दम पर कुछ कर दिखाने की प्रबल इच्छा 
से नित प्रति अपने कृष्ण कन्हैया के सामने... लगन को नमन करता हुआ 
कथाकार आगे बढ़ा कुछ कदम पर कथाकार के लाड़ले भैया अमित अपने 
आँगन में अख़बार का लुफ़्त लेते दिखे..देवेश जी अपने आपको फिट रखने 
के लिये कसरत करते हुये दीख पड़ते हैं, कथाकार बारी बारी से अपनों के
 घरों से गुजर रहा था कहीं कोई पौधों में पानी डालते दिखा कहीं कोई आँगन
 बुहारते, कहीं किसी घर में मंत्रोच्चार कहीं बच्चों का अल्हड़पन हंसी ठिठोली..
 कहीं कोई अपने वृत्तिकस्थल तक पहुंचने की तैयारी में जुटा तो कहीं से 
अल्पाहार की भीनी भीनी सुगंध से कथाकार की मन आनंद और रसना जल 
से भर आई...कथाकार आगे बढ़ा हसन साहब अपने फ्लेट के झरोखे से कुछ
 लिखते हुये से दीख रहे थे..
अब आगे-3

©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी
पेज-3
 इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से "णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,

रजनीश "स्वच्छंद"

समास।। मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ, एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ। मध्य पदों को छोड़ कर, मैं समस्त पद बना। पहले लगा जो पूर्वपद, अंत मे उत्तरपद जना। #Poetry #Quotes #Knowledge #kavita

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समास।।

मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ,
एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ।
मध्य पदों को छोड़ कर,
मैं समस्त पद बना।
पहले लगा जो पूर्वपद,
अंत मे उत्तरपद जना।
नकचढ़ी या हथकड़ी,
मैं हूँ शब्दों की लड़ी।
एक वाक्य को समा लिया,
किया लघु तेरी घड़ी।
तेरे मुख चढ़ा रहा,
मैं भक्तियों का लोप कर।
कभी बदल दूँ अर्थ तो,
न दुख मना न क्षोभ कर।
भेद मेरे जान ले,
सिमटता हूँ छः प्रकार में।
काव्य गीत लेख कथा,
गूंजता हूँ अलंकार में।
अव्यय जो आगे चल रहा,
अव्ययीभाव मुझको बोलते।
प्रथमपद प्रधान है,
जो वाणी-तुला ले तोलते।
प्रतिदिन, प्रतिपल,
यथाशीघ्र यथाशक्ति हो।
आमरण निर्विकार भी,
अनुरूप यथाभक्ति हो।
प्रधान हुआ जो दूसरा,
मैं तत्पुरुष बन जाता हूँ।
कारकों का लोप कर,
नवशब्द हो तन जाता हूँ।
तुलसीदासकृत धर्मग्रंथ,
राजपुत्र रचनाकार हूँ।
देशभक्ति राजकुमार,
मनुजहित गीतासार हूँ।
कर्मधारय मैं हुआ,
उत्तरपद ही प्रधान है।
विशेष्य संग विशेषण,
उपमेय संग उपमान है।
प्राणप्रिये चंद्रमुखी,
श्यामसुंदर नीलकमल।
अधमरा देहलता,
परमानन्द चरणकमल।
उत्तरपद और पूर्वपद का,
सामंजस्य खास है।
आगे अंक या पीछे अंक,
यही द्विगु समास है।
पंचतंत्र या नवग्रह,
ये त्रिलोक त्रिवेणी है।
चौमासा नवरात्र कहो,
ये पंचप्रमान अठन्नी है।
पद न कोई गौण हो पाए,
दोनों रहें प्रधान ही।
द्वंद्व समास कहायें ये,
रखते दोनों का ध्यान भी।
नर-नारी और पाप-पुण्य,
सुख-दुख ऊपर-नीचे है।
अपना-पराया देश-विदेश,
गुण-दोष आगे-पीछे है।
मैं छीनू परधानी सबकी,
पद मैं तीजा बनाता हूँ।
अपना मतलब रहूँ छुपाये,
बहुब्रीहि कहलाता हूँ।
वीणापाणि और दशानन,
लंबोदर पीताम्बर हूँ।
चक्रधर और गजानन,
मैं घनश्याम श्वेताम्बर हूँ।
मेरी बातों को गांठ बांध लो,
काम तेरे मैं आऊंगा।
ले रहा जो छोटा विराम अभी,
फिर आ मैं भरमाउंगा।

©रजनीश "स्वछंद" समास।।

मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ,
एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ।
मध्य पदों को छोड़ कर,
मैं समस्त पद बना।
पहले लगा जो पूर्वपद,
अंत मे उत्तरपद जना।
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