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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी दिल ना पसीजे मानवता के ग्लेशियर पिघल रहे है चकाचौंध की रप्तार में गैस और धुंए से तापमान बढ़ रहे है विलुप्पत हो गयी क़ई प्रजातियां विनाश का खमियाजा भुगत रहे है भौतिकता की दुहाई में 5जी का इस्तेमाल कर तरंगों की गति से जन जीवन विकृत और बीमार करने की पहल दुनिया भर में आमंत्रित कर रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" ग्लेशियर पिघल रहे है #Uttarakhand
Gunjan Agarwal
प्रतिदिन जलाती हूं, तुम्हारे नाम का दीया, - सुलगती है बाती, जलता है तेल, - किंतु - सच मानो तो, तुम्हारी स्मृतियों की तपन से, हौले - हौले पिघल रहे हैं, मेरी संवेदनाओ के - ग्लेशियर..!! ©अनहद गुंजन #ग्लेशियर #Travel
Farhana
Amit Saini
बर्फ बारी अच्छी रही इस वर्ष अगर हम इंसान चाहे तो तेजी से पिघलते हुए ग्लेशियरों को रोक सकते हैं खत्म होते जल को बचा सकते हैं बेशर्त प्रदूषण पर अच्छी तरीके से रोकथाम लगाए तो चारों ओर जागरूकता फलाऐ तो ऐसी संवेदनशील जगहो पर इंसानों का पूर्ण प्रतिबंध लगाए तो हो सकता है ऐसा करने से प्राकृतिक में संतुलन बना रहे जीवन के लिए #Thoughts #पिघलते ग्लेशियर चिंता का विषय
Ek villain
दुनिया के गलेसरियों का अस्तित्व खतरे में है ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से बढ़ते तापमान की वजह से पिघलते ग्लेशियर ना सिर्फ बड़ा है अनियमित गौतम मौसम चक्र हिमसन क्लबों शक्लन भुकमारी सुनामी और जल संकट जैसी विप अदाएं लाएंगे बल्कि उनके लगातार पिघलने से उनमें हजारों साल से दफन घातक बैक्टीरिया और वायरस भी बाहर आ सकते हैं यही कई महा मारियो का कारण बन कर भारी तबाही मचा सकते हैं हाल ही में वैज्ञानिको ने रोड से डिक्स ऑफ द रॉयल सोसायटी बी बायोलॉजिक साइंस में प्रकाशित अध्ययन में चेताया हुए कहा कि ग्रीन हाउस गैसों का ऐसा ही उत्सर्जन होता रहा है ग्लेशियर इसी तरह पर करते रहे हैं तो इनके भीतर दफन बैक्टीरिया और वायरस के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा इन बैक्टीरिया और वायरस से सबसे पहले समुद्री जीव संक्रमित होगी और फिर पक्षी व अन्य स्थानीय वन्यजीव इसके बाद इससे मनुष्य भी संक्रमित हो सकते हैं ©Ek villain #friends #जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ते ग्लेशियर
Gumnam Shayar Mahboob
अपनी हदों से हम कुछ आगे ही निकल रहें हैं इसलिए सालों से पड़े ग्लेशियर भी पिघल रहें हैं #उत्तराखंड #हद #सालों #ग्लेशियर #पिघल #उत्तराखंड #गुमनाम_शायर_महबूब #gumnam_shayar_mahboob
SAHIL KUMAR
उजले दिनों में बीता बचपन फिर क्यों अंधेरों में बीत रही मेरी जिंदगी है कोई राह नहीं क्या जिसमे उजाला हो खोने का डर था दिल में अब कहीं अटक न जाऊं कहां गुम है मेरी मुस्कुराहटे कोई तो बाताए राह सही है क्या अब यह कौन समझाए? ©SAHIL KUMAR राहें है कहा