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Stories related to हागो ट्रैक

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Bipin azamgadiya 7744

ये बताइये कौन सा गाना का ट्रैक है #PowerOfPrayer

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K. s.

विचारों के ट्रैक का ध्यान कितना जरूरी है??# मोटीवेशन # के एस 16

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Jai Bhawani

😭😭😭😭 पापा कन्हा हो 😭😭 दुखद घटना ट्रैक और बस की भिड़ंत में जिंदा 6 जले 😭😭

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अनिता कुमावत

लग रहा जैसे गाड़ी रिवर्स गियर में जा रही है ... अब क्या ... एक ब्रेक मारते हैं और फिर गाड़ी को सही ट्रैक पर आते हैं ... 😃😃

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एक यात्रा शुरू हुई थी 
स्वयं को जानने की
क्या हूँ मैं , कौन हूँ मैं 

रुक गई वो बीच राह में ही कहीं 
भटक गया मन , छूट गई राहें सारी ...

कुछ प्रश्नों के उत्तर मिले 
कुछ के ढूँढने अभी बाकी है 

फिर नयी यात्रा की शुरुआत करते हैं 
कि स्वयं को जानना अभी भी बाकी है ....!!!! लग रहा जैसे गाड़ी रिवर्स गियर में जा रही है ... अब क्या ... एक ब्रेक मारते हैं और फिर गाड़ी को सही ट्रैक पर आते हैं ... 😃😃

TabishAhmad 'تابش '

मेरा क़सूर क्या था? मुझे घर ही तो जाना था, भूख मिटाने को आया था, अब भूख में मर जाना था, इसीलिये घर ही तो जाना था! मेरा कसूर क्या था? न मिला #Love #Hindi #HindiPoem

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मेरा क़सूर क्या था?
मुझे घर ही तो जाना था,
भूख मिटाने को आया था,
अब भूख में मर जाना था,
इसीलिये घर ही तो जाना था!
मेरा कसूर क्या था?

न मिला किसी का सहारा था,
जान के ऊपर अब आना था,
भूख में महीनों इन्तेजार करना था,
अब आख़री फैसला था,
इसीलिये घर ही तो जाना था,
मेरा कसूर क्या था!

चलना पैदल ही था,
रास्ता खुद ब खुद बन जाना था,
सड़क भी अब बेगाना था,
इसलिये रेलवे ट्रैक पर आना था,
चलते ही चलते जाना था,
मंजिल का न अभी तक कोई पता था,
इसीलिये घर ही तो जाना था,
मेरा कसूर क्या था?

दिन-रात सफर कर थक जाना था,
कब तलक नींद को धोका देना था,
आंख लगी तो रेलवे ट्रैक पर सोना था,
क्या पता था की आखरी नींद था,
रात गुजरते ही सुबह को फिर आना था,
मगर मुझे तो ईश्वर के पास जाना था,
मेरा क़सूर क्या था? मेरा क़सूर क्या था?
मुझे घर ही तो जाना था,
भूख मिटाने को आया था,
अब भूख में मर जाना था,
इसीलिये घर ही तो जाना था!
मेरा कसूर क्या था?

न मिला

TabishAhmad 'تابش '

मेरा क़सूर क्या था? मुझे घर ही तो जाना था, भूख मिटाने को आया था, अब भूख में मर जाना था, इसीलिये घर ही तो जाना था! मेरा कसूर क्या था? न मिला #Poetry #Hindi #poem #voice #urdu

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Ad shivam

सूर्यास्त हो चुकी है🌅, ये हल्की जगमगाती रोशनी अंधकार की ओर बढ़ रही हैं। दूरदराज कहीं कोई नजर नहीं आ रहे हैं। सिर्फ तुम्हारी आहट की आभास होत #brothersday

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प्रेम विरह

आज शाम याद तेरी

©Ad shivam सूर्यास्त हो चुकी है🌅, ये हल्की जगमगाती रोशनी अंधकार की ओर बढ़ रही हैं। दूरदराज कहीं कोई नजर नहीं आ रहे हैं।

सिर्फ तुम्हारी आहट की आभास होत

rahasyamaya tathya

शिमला की भूतिया टनल नंबर 33 क्या आपको मालूम है कि हमारे देश के सबसे खूबसूरत नज़ारों वाले रास्तों में से एक है कालका शिमला टॉय ट्रेन रूट और इ #सस्पेंस

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 शिमला की भूतिया टनल नंबर 33

क्या आपको मालूम है कि हमारे देश के सबसे खूबसूरत नज़ारों वाले रास्तों में से एक है कालका शिमला टॉय ट्रेन रूट और इ

Mahfuz nisar

क़ाफ़ी युग है बीत चुके। राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट, जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, और रसूख वालों के घर प #poem

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क़ाफ़ी युग है बीत चुके। 

राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट,
जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, 
और रसूख वालों के घर पर पहुँच जाएगी उनके ज़रूरत के लायक रकम,
गरीब किसानों की आत्महत्याओं का नया सिलसिला शुरू होगा,
और विदेश निकल जाएंगे बड़े बड़े पैसे वाले चौकसी,माल्या और मोदी,
कभी बीच सड़क पर तो कभी रेलवे ट्रैक पर लेटे लेटे भगवान की शरण में पहुँच जाते हैं दुखिये,
और कोई अपनी गाड़ियों पर सिर्फ़ एक काग़ज़ लगा कर ढो लेता है लाखों के माल,
खाने को नमक, चावल और मिर्च है उनकी थाली में, 
जिनके जलते हैं, खून और पसीने मुमालिक में,
ब्रेड,बटर,मटन और दारू मौज़ूद है अब तक कलंदरों को झूझते देश की पामाली में।
दो वक़्त की रोटी के कहीं लाले हैं,
कहीं हर घर को टोकन से शराब बेचने वाले हैं,
भला हज़ार देने भर से किसी का परिवार पल जाएगा क्या?
शेखी बघारने जब आये कोई तुम्हारी चार दिवारी में,
पूछना मालाओं से लदी गर्दन लिए आदमी से,
उसके आज के दिनों में किये गए कामों के बारे में,
हो सके तो दिलाना याद दिलासा-मक्कारी के,
और बता देना चीख़ कर कि रखो अपनी वादों की पोटली,और निकल जाओ हम मज़दूरों के गलियों के मुहाने से,
मेरे कई पुरखे पिछली बीमारी में हैं बीत चुके तो जाओ ढूँढो दूसरा कोई घर तुम,
झूठे वादों से हम सभी हैं अब रूठ चुके,
गुल के सारे फूल पत्ते हैं अब सूख चूके,
देखो, सुनो,
क़ाफ़ी युग है बीत चुके।
जाओे बदलो ख़ुद को अब,
देखो, सुनो,
क़ाफ़ी युग है बीत चुके।


✍mahfuz nisar © क़ाफ़ी युग है बीत चुके। 

राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट,
जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, 
और रसूख वालों के घर प

Mahfuz nisar

#Time शीर्षक::::वो युग है अब बीत चुके। राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट, जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, और रसू #poem

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शीर्षक::::वो युग है अब बीत चुके।

राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट,
जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, 
और रसूख वालों के घर पर पहुँच जाएगी उनके ज़रूरत के लायक रकम,
गरीब किसानों की आत्महत्याओं का नया सिलसिला शुरू होगा,
और विदेश निकल जाएंगे बड़े बड़े पैसे वाले चौकसी,माल्या और मोदी,
कभी बीच सड़क पर तो कभी रेलवे ट्रैक पर लेटे लेटे भगवान की शरण में पहुँच जाते हैं दुखिये,
और कोई अपनी गाड़ियों पर सिर्फ़ एक काग़ज़ लगा कर ढो लेता है लाखों का माल,
खाने को नमक,चूरा और मिर्च है उनकी थाली में, 
जिनके जलते हैं, खून और पसीने मुमालिक में,
ब्रेड,बटर,मटन और दारू नसीब है अब तक,
कलंदरों को मौत से झूझते देश की पामाली में।
दो वक़्त की रोटी के कहीं लाले हैं,
कहीं हर घर को टोकन से शराब बेचने वाले हैं,
भला हज़ार देने भर से किसी का परिवार पल जाएगा क्या?
जितना अनाज दे रहे हो चार लोगों के लिए अपने घर ले आओ,और पूछो घर वालों से इतने में महीने का चल जायेगा क्या? 
अब शेखी बघारने जब आये कोई तुम्हारी देहरी पर चाहे चार दिवारी में,
पूछना मालाओं से लदी गर्दन लिए आदमी से,
उसके जो बीत रहे इन काले दिनों में किये गए कामों के बारे में,
हो सके तो दिलाना याद उसके दिये झूठे दिलासा और मक्कारी के,
और फिर बता देना चीख़ कर कि रखो अपनी वादों की पोटली,और निकल जाओ हम मज़दूरों के गलियों के मुहाने से,
मेरे कई भाई,बहन,माँ,बाप,बेटे बेटियां,पिछली बीमारी में हैं बीत चुके,
तो जाओ ढूँढो दूसरा कोई घर अब तुम,
झूठे वादों से हम सभी हैं अब रूठ चुके,
हमारे गुल के तमाम फूल पत्ते हैं अब सूख चूके,
जाओे बदलो ख़ुद को अब,देखो,सुनो,
वो युग है अब बीत चुके।
✍mahfuz nisar © #Time  शीर्षक::::वो युग है अब बीत चुके।

राहत के नाम पर फिर शुरू होगा एक बंदर बाँट,
जहाँ गरीबों को लाइन में लगना होगा लोन की ख़ातिर, 
और रसू
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