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Mr.Lavkushwaha

जीडीपी #Corona_Alert #Life_experience

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स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक की सबसे बड़ी महामारी कोरोना से सभी को सुरक्षित रखने के प्रयास में 2 माह का देश में लॉकडाउन किया गया।
 *देश के लोगो की सोच* 
देश में लॉकडाउन भी चाहिए।
 सबको घर बैठे सैलरी भी चाहिए ।
मुफ्त में राशन भी चाहिए।
और तो और रोजगार भी चाहिए।
 और GDP भी नहीं गिरनी चाहिए। 

 *इसलिए,* जिसके चलते देश की GDP कुछ समय के लिए माइनस में जाना स्वाभाविक था।

लेकिन अर्थशास्त्र का " अ " भी नहीं समझने वाले आज अर्थशास्त्री बन बैठे हैं ।

लेकिन हमारे ही परिवारों को सुरक्षित रखने के प्रयासों के दुस्साहस का खामियाजा तो प्रधानमंत्री को भुगतना ही चाहिए ।

आखिर उसने देशवासियों को सुरक्षित रखने की मूर्खतापूर्ण कोशिश क्यों की ? जीडीपी

#Corona_Alert

Knowledge Fattah

जीडीपी (GDP )के हिसाब से दुनिया के 10 सबसे अमीर देश #Life

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Knowledge Fattah

IMF के वर्तमान आकलन के अनुसार (2023)प्रत्येक व्यक्ति जीडीपी के आकलन पर पर व्यक्ति आय में 10 सबसे अमीर देश #Motivational

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MANJEET SINGH THAKRAL

सुनो सुनो मेरी सरकार, कहते हैं तुमसे इस बार पढ़ा लिखा हमने सब है डिग्री दस्तावेज है पास, परीक्षा में अव्वल रहे पढ़ते हैं घंटो हजार फिर क्यो #nojotovideo #विचार #9Baje9Minute #9बजे9मिनट #Youth4Swaraj #9Baje9MinuteIndia

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MANJEET SINGH THAKRAL

पहले पेट पर लात, अब पीठ पर लाठी मार रही है सरकार! • क्या इतनी भी संवेदना नहीं कि अगर इन बेबस मजदूरों का सहारा नहीं बन सकते तो कम से कम इन्ह #nojotophoto #Life_experience

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 पहले पेट पर लात, अब पीठ पर लाठी मार रही है सरकार!

• क्या इतनी भी संवेदना नहीं कि अगर इन बेबस मजदूरों का सहारा नहीं बन सकते तो कम से कम इन्ह

Priya Kumari Niharika

Poetry #story #आजादी का मोहभंग शीर्षक: आजादी का मोहभंग 15 अगस्त से आप क्या समझते हैं। रेडियो की आकाशवाणी, डीडी नेशनल की परेड, स्कू #बाबा #कविता

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शीर्षक: आजादी का मोहभंग
15 अगस्त से आप क्या समझते हैं।
रेडियो की आकाशवाणी,
डीडी नेशनल की परेड,
स्कूल की लॉजिस,
या गरमा गरम जलेबी
क्यूँ सही कहा ना 
मुस्कुराईये नहीं...... आप गुलाम है,  यकीन नहीं आ रहा ना , चलिए बताती हूँ......,
जी हाँ ये सच है कि आप गुलाम हैं, उस विचार के..... जिसपर 'क्या कहेंगे लोग' जैसे वाक्य का अधिकार है
जी हाँ आप उस मोहमाया में जी रहे है,जिसकी सत्ता या तो आपके आसपास है या आपकी कल्पना ने उसे ग़ढ़ा है।
और बेशक़ आप समाज के रूढ़िगत नियम, कानून, रीति, परम्परा की ऐसे जंजीर से बंधे है,जिसे तोड़ने की
 छटपटाहट युगों युगों से निरंतर जारी है। और ये कहना  बेशक गलत नहीं होगा,कि आज भी आपका शोषण
यूँही चुटकीयों में हो रहा है,बशर्ते आप उसे समझें। क्यूंकि सामाजिक विषमता, आर्थिक दुर्बलता,
धार्मिक मुठभेड़,उपभोक्तावादी एवं पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, शासन प्रशासन का सडयंत्र, भ्रष्टाचार, अन्याय,
 समाज के अराजक तत्व,और रूढ़ियों को भी सांस्कृतिक परंपरा के रूप में ढोने की प्रकृति, इतना ही नहीं लोकतंत्र में भी
अपनी बुद्धिमत्ता से मतदान देने के स्थान पर,मतदान चिन्ह और प्रतिनिधि के चेहरे को प्राथमिकता देने की प्रवृति,साथ
 ही असुरक्षा का भय की सल्तनत हर कदम पर आपका शोषण करके आपको लाचार बना कर,आपके विकास
 में बाधा उत्पन्न करते हैं,और तो और,हम अपनी अनैतिकता को नैतिकता के नकाब पहनाने में ऐसे खो गए है,
कि हमारी नैतिकता कितनी प्रतिशत नैतिक है,इस पर भी प्रश्नचिन्ह लगा पाते हैं, खैर....
.क्या हमने ऐसी ही आजादी का स्वप्न देखा था? क्या इसके लिए ही नवजागरण और क्रांति की लहर
 चरम पर थी, या फिर बड़े-बड़े आंदोलन,क्रान्तिकारीयों को फाँसी, या जालियांवाला बाग में लाशों का तख्त, 
या 46 का बंगाल नरसंहार या विभाजन के समय रेल नरसंहार,देश के टुकड़े, विभाजन की त्रासदी,
विस्थापन का संत्रास और भीषण रक्तपात क्या वाकई इसी आजादी के लिए था?
मैं आजकल जब आजादी के विषय में सोचती हूँ,तो पाती हूँ कि वर्षों पहले के आजादी के स्वप्न की वास्तविकता,
 इतनी विकृत,भीषण और दर्दनाक है,कि जिसकी कल्पनामात्र से हम मायूस,हताश और निर्बल हो जाते है।
जहाँ देश की विकास जीडीपी से निर्धारित होती है,वहीं कचड़े के डब्बे से टुकड़ों की तलाश में कुत्तों से
 छिनाझपटी करती है जिन्दगी...जहाँ बारिश में चाय और शेरों शायरी की लुफ्त उठायी जाती है,
 वहीं फूस का आशियाँ गल जाता है, कागज की नाव के समान............. और भींगती,ठिठुरती गुजरती है,जिंदगी....
जिसने शरणागत को भी शरण दिया, वहीं सड़के और प्लेटफार्म पर रहती है जिन्दगी....
जहाँ वस्त्र,आभूषण गरीमा का प्रतीक माने जाते हैं वहीं चिथड़ों को सीलकर सवरती है जिन्दगी...
 जहां बुद्ध,द्रोण, चाणक्य जैसे ज्ञानी हुए,वहाँ शिक्षा व्यावहारिक ज्ञान, व्यक्तित्व एवं कौशल विकास को छोड़कर
अकादमीक डिग्री पर आधारित एक व्यापार बन कर रह गया, इसलिए बेरोजगारी का दंश झेलती है जिन्दगी....
 जहां महामारी के दौरान, संवाददाता के रिपोर्टिंग लाइव से अनगिनत टीआरपी बटोरी जाती है
वहीं साधन,इलाज सुरक्षा के आभाव और महंगाई और कर्फ्यू की चपेट में दम तोड़ती है जिन्दगी.
 जिस लोकतंत्र में समान अधिकार का दावा किया जाता है, वहीं समाज, धर्म,अर्थव्यवस्था और राजनीति
 उसकी हत्या करने से कभी बाज नहीं आते... जहाँ प्रशासन, सशस्त्र बल, सुरक्षा कर्मचारी, सिपाहीयों की
 कोई कमी नहीं, वहीं की जनता स्वयं को असुरक्षित और डरा हुआ पाती है और हर घड़ी शहर,सड़क, गालियारे
से डरती है जिन्दगी,और तो और जहाँ विविधता में एकता के आदर्श है, वहाँ समाज, धर्म, अर्थव्यवस्था,
संस्कृति प्रकृति और प्रवृति के आधार पर टुकड़ों में बटी पड़ी है जिन्दगी.... तो बताइए, जब हमारी
 प्राथमिकताओं पर ही प्रश्न चिन्ह लगा है, तो हम अपनी आशाओं महत्वाकांक्षाओं और लक्ष्य का
 क्या ही ब्यौरा लगाए। तो क्या यही लोकतंत्र है, जहां केवल राजनीतिक विकास होता है,जीवन का विकास नहीं?
 क्या यह वही अधिकार है,जो केवल शक्तिशाली और अमीरों के लिए है, शेष के लिए नहीं?
 क्या यही हमारी आजादी है,जिससे नीति, तंत्र और चेहरे तो बदल गए,मगर शोषण है वही?

©Priya Kumari Niharika #Nojoto #Poetry #story #आजादी का मोहभंग 
शीर्षक: आजादी का मोहभंग
15 अगस्त से आप क्या समझते हैं।
रेडियो की आकाशवाणी,
डीडी नेशनल की परेड,
स्कू

Anamika Nautiyal

तो देवियों और सज्जनों बिना किसी देरी के शुरुआत करते हैं आज की चर्चा। 🙏 (हाँ यदि आपको एक भी बात उचित लगे तो प्रोत्साहन के लिए तालियाँ भी बजा #Humour #आलस्य #अनाम #रात्रिख्याल #गढ़वालीगर्ल #अनाम_ख़्याल #अनाम_चर्चा #व्यंग्यरचना

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आलस है जीवन में ज़रूरी
आलस के बिन जिंदगी अधूरी 
आलस है जिंदगी का अंग 
आलस के बिन जिंदगी में नहीं रंग



(अधिक जानकारी के लिए कैप्शन में पढ़ें) तो देवियों और सज्जनों बिना किसी देरी के शुरुआत करते हैं आज की चर्चा। 🙏
(हाँ यदि आपको एक भी बात उचित लगे तो प्रोत्साहन के लिए तालियाँ भी बजा
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