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P.Kumar
खून पसीना बहा के हमने तुझको मालामाल किया, थोड़ी विपदा हमपे क्या आयी तुमने हमें बेहाल किया। तुझसे थी उम्मीद बहुत फिर हमने जलना सीख लिया, हम इतने भी बेबस नहीं, खुद पैरो पे चलना सीख लिया। #Migrant
Varadhan P M
Long live capitalism! You need them for investment, development, expansion, employment. With mere workers what good can you achieve? Or what better can capitalists do without workforce? #capitalist #workforce
Saurabh Kumar
चल दिए, दिल में उम्मीद लिए, पैरो को हौसलों का पंख लगा था । भूख से आंखे नम थी, हौसलों ने पेट भरा, चल दिए, दिल में उम्मीद लिए। ये शहर नागवार थी, इमारतें आंखे कचोटती ; मंजिले बहुत दूर थी, फिर भी चल दिए, दिल में उम्मीद लिए। साथियों का साथ मिला, कुछ ने सफ़र में साथ छोड़ा, हम रुके नहीं, चल दिए दिल में उम्मीद लिए । सफ़र में आंखे धूमिल हो रही थी, लेकिन, घर बांहे फैलाए इंतजार कर रहा था । चल दिए, दिल में उम्मीद लिए। मंजिले मिल ही जायेगी, आज ना कल, ना मिली तो मोक्ष मिलेगा, बस चलते रहना है, दिल में उम्मीद लिए । ~आनंद #migrant
Pranshu Kashyap officials
आपकी महंगी गाड़ी चलाने वाला अक्सर पैदल घर जाता है, करोड़ों की रखवाली करने वाला कभी वक़्त पे पगार नहीं पाता हैं, कभी कभी एक वक़्त भूका रहकर , जो आपको आधे घंटे में पिज़्ज़ा पहुंचाता है, और बारिश में छत टपकती है उसकी,जो आपके लिए बड़ी बड़ी बिल्डिंग बनाता हैं। #migrant
aditya kumar
ईश्वर की ये कोई साज़िश है या कोई दूरदृष्टि है कैसा ये विडंबना और कैसी है ये लीला निकले थे घरों से ये एक नया घर बनाने अपने सपनो के पंखों को नया आयाम देने खुद की पसीनो से इन्होंने अमीरों को सींचा तरक्की दी,खुशियां बाटी,नाम रौशन किया उन्नति,प्रोन्नति, घर,बंगला न जाने क्या-क्या पर जब पड़ी ज़रूरत अमीरों की इन्हें तो पाया बस अवहेलना,भूख,अपमान और तिरस्कार रोटी छोड़ा गांव का,छोड़े वो मिट्टी और रिश्तेदार कर याद अपने देश को,छोड़ा मोहरूपी सँसार था किस्मत इनकी झूठी,और तप इनका बेकार ट्रक,बस,ट्रैन और पैदल लौटे सब लाचार लौट अपने देश को,पुनः पाया तिरस्कार देखे सब हयदृष्टि से,जैसे वे हो जाये बीमार। #migrant labour
#migrant labour
read moreSundeepak
था गुमान सड़क को लम्बी होने का ... मज़दूर के हौसले ने पैदल ही नाप दिए... _Sundeepak #migrant workers...
#migrant workers...
read moreNishith Sinha
" कलतक मशगूल थे जो , अपनी आशियां बनाने में , आज बेबस हैं वो ही , पहेलियां सुलझाने में ! जिसने बरसों से - पसीना बहाएं हैं तेरे खातिर, नहीं आनेवाले हैं वोअब, तेरे बहलाने फुसलाने में !" Migrant labour
Migrant labour
read moreaditya kumar
#LabourDay एक क्वारंटाइन सेन्टर की कहानी चलो सुनाओ अपनी ज़ुबानी... डरे, सहमे है सब... क्या बूढ़े,क्या बच्चे,, क्या नर और नारी..।। मिलो सफ़र तय कर... आये अपने मिट्टी के पास,, है घर पास ,पर है बहुत दूर..,, रहने को अकेले और मजबूर। कहलाए खुद के देश मे ये, ...प्रवेसी मज़दूर..!!! अपनी व्यता ये किसे बताए पास है इनके ढेर सारे लोग,, पर उचित दूरी के कारण,, खुद का वेदना किसे सुनाए?? खाना,पीना,कपड़े और दवा... पाए ये हर सुख सुविधा,, पाने को साथ अपनो का ये... है कैसी ये इनकी दुविधा...!! एक बटवारा हुआ 1947 में तब भी कई प्रवेसी थे... ...और कश्मीरी पंडित, भी कभी प्रवेसी थे,, सायद..,यही वेदना से वो गुज़रे होंगे..!!! #migrant labour
#migrant labour #Labourday
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