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Shivkumar
मां का सप्तम रूप है मां कालरात्रि का, क्षण में करती नाश दुष्ट,दैत्य, दानव का। स्मरणमात्र से भाग जाते भूत, प्रेत, निशाचर, उज्जैन से दूर हो जाते हैं पल में ग्रह-बाधा हर। उपवासकों को नहीं भय अग्नि, जल, जंतु का, नहीं होता है भय कभी भी रात्रि या शत्रु का। नाम की तरह रुप भी है अंधकार-सा काला, त्रिनेत्रधारी है माताजी सवारी है गर्दभ का। दाहिना हाथ ऊपर उठा रहता है वरमुद्रा में, बाया हाथ नीचे की ओर है अभय मुद्रा में। तीसरे हाथ में मां के है खड्ग, चौथे में लौहशस्त्र, विशेष पूजा रात्रि में मां की करते हैं तंत्र साधक। शुभकारी है दूसरा नाम मां कालरात्रि का, शुभ करने वाली है मां, है सबकी मान्यता। गुड़हल का पुष्प है प्रिय, गुड़ का भोग लगाते हैं, कपूर या दीपक जलाकर मां की आरती करते हैं। ©Shivkumar #navratri #navaratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #navaratri #नवरात्रि मां का सप्तम रूप है मां #कालरात्रि का, क्षण में करती #नाश दु
Ramji Mishra
A2Motivation
Devesh Dixit
खर्च (दोहे) खर्चों की सीमा नहीं, ऐसा है यह दौर। कहते हैं सज्जन सभी, करना इस पर गौर।। खर्चों ने तोड़ी कमर, बना हुआ नासूर। जीवन यह बद्तर लगे, कैसा यह दस्तूर।। दिन प्रतिदिन कीमत बढ़े, खर्चों का विस्तार। जिन्हें नौकरी है नहीं, माने दिल से हार।। खुद को भी पीड़ित करें, कुछ औरों को जान। लूट करें वे शान से, बनते हैं नादान।। खर्चों के वश में सभी, कुछ करते तकरार। जीवन में उलझन बढ़े, घटना के आसार।। यही विवश्ता तोड़ती, अपनों के संबंध। प्रेम भाव से दूर हैं, आती है दुर्गंध।। ........................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #खर्च #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry खर्च (दोहे) खर्चों की सीमा नहीं, ऐसा है यह दौर। कहते हैं सज्जन सभी, करना इस पर गौर।। खर्चों
bollywood Gossip110
AJAY NAYAK
देख बस लिया जो, तेरे हंसते शक़्ल का नूर, अब तो इसके आगे............. स्वर्ग की परियां भी हो गयी काफ़ूर। –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #Hriday देख बस लिया जो, तेरे हंसते शक़्ल का नूर, अब तो इसके आगे............. स्वर्ग की परियां भी हो गयी काफ़ूर। –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ काफूर –क
Devesh Dixit
कठोर (दोहे) हिय कठोर अब ये कहे, मैं ही हूँ सरताज। होते सब भय - भीत हैं, करता ऐसा काज।। जो कहता वो मानते, कर न सके इंकार। रुतबा मेरा देख कर, झुकता ये संसार।। पल पल दहशत में कटे, रहे नहीं कुछ सूझ। वाणी कहूँ कठोर जब, थम जाती तब बूझ।। ऐसा ही वह सोचता, करने को हुड़दंग। संकट में भी डालता, बनकर रहे दबंग।। नहीं समझ उसको अभी, बनता वह नादान। थामे रहे कठोरता, ये उसका अभियान।। वाणी करे कठोर वह, मिले नहीं सम्मान। जीवन में संताप है, कहाँ उसे अब भान।। दुविधा में जब खुद पड़ा, तभी पीटता माथ। संगी साथी छोड़ते, बढ़े नहीं तब हाथ।। ........................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #कठोर #दोहे #nojotohindi कठोर हिय कठोर अब ये कहे, मैं ही हूँ सरताज। होते सब भय - भीत हैं, करता ऐसा काज।। जो कहता वो मानते, कर न सके इंका