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Nitesh Kumar جگر دہلوی🇮🇳
داگ دہلوی (दाग देहलवी) जन्मदिन विशेष-२५ मई उर्दू शायरी के मशहूर महबूब शायर
Uttam Pawar
अकेला था जिन्दगी में लेकिन तेरे आने से जिन्दगी सवर गई मैं तो यूही जी राहा था लेकिन तुने तो मेरी पहचान बदल दी 🙏👍👌 ©Uttam Pawar शायर की शायरी
Mahima Agrawal
में इक शायर की ग़ज़ल बनना चाहती हूँ जो रात दिन लबों पर गुनगुनाये वो हँसी धुन बनना चाहती हूँ में शायर की मोहब्बत होना चाहती हूँ रात दिन सोचे वो अल्फ़ाज़ बनना चाहती हूँ जो पन्नो पर उतारे तो शायरी बन जाये वो लफ्ज़ बनना चाहती हुँ में इक शायर की ग़ज़ल बनना चाहती हूँ जो खुद को भूल, मुझमें खो जाए जो रात दिन मेरे ख्यालों में डूब रहे वो कशिश वाली शायरी बनना चाहती हूँ में इक शायर की बेपनाह मोहब्बत बनना चाहती हूँ ©महिमा अग्रवाल शायर की ग़ज़ल
SURESH SHARMA
किन अल्फाजो मै इतनी दर्दीली इतनी कसेली बात लिखू । शायर की मै तहजीब निभाऊं या अपने हालात लिखू ।। गम नही लिखू क्या मै गम को जश्न लिखू क्या मातम लिखू । जो देखे है जनाजे मेने उनको क्या मै बारात लिखू ।। शायर की मै ,,,, कैसे लिखू मै चाँद के किस्से कैसे मै फूल की बात लिखू । गर्म हवा रेत उड़ाये तो कैसे मै बरसात लिखू ।। शायर की मै तहजीब निभाऊं या अपने हालात लिखू ।। ( copy pest ) शायर की मै ___
Adarsh Raj
बहुत भीड़ थी,,उनके दिल में, खुद ना निकलते,तो निकाल दिए जाते...! शायर की पसंद
Sanjoo Rathod
ये कलम के पीछे चुपे हुए शायर तेरी सख्सियत तो दिखा, क्यु बना फिरता है झूठा तेरी असलियत तो दिखा, लिख लेता है अपने गुनाहों को कुछ शब्दों में, बाजार में बेचूें उन्हें, तो कोड़ी के मौल भी न बिखा। शायर की कीमत##
Ajay Tondwal
सुनो ..... एक शायर की मोहब्बत हो तुम... वादा है मेरा.. गम मै भी... याद कर के मुस्कुराओगी **अजय** शायर की मोहब्बत...
ज़िंदादिल संदीप
शायर की मेहबूबा दिलबर ही हो कहां लिखा रखा है? हमने तो फिर ..कितने खयालों को ...सुलझा रखा है.. कब होते है ..इश्क़ बेपरवाह से साकी से ही ज़िंदादिल.. इंकलाब की आंधियों को कितने ने दिलों में सुलगा के रखा है ।।। बेबस ही सही ..रोज़ी रोटी की तलाश जारी है .. ऐसे ही कई अल्फ़ाजो को हमने बना रखा है ... ना हिन्दू हूं मैं..ना मुसलमां मैं हूं गालिब... हमने हर मजहब को खुद में समा रखा है .. चिड़ियों की जुगलबंदी की तरह ..गाते है हर दिन.. अपना ये नगमा ..हमने खुद ही बना रखा हैं.. वतन ए हिन्द की बेटियां हो बेशक ही रोशन सितारों सी अक्सर.. हमने कब ऐसे झूठे वादों की इश्तियार और बहाने बना रखा है.. है गुलाम सभी अपनी मजबूरियों की बोझा सुनाते हुए अब .. हमने कब कोई शायरी इश्क़ का किसी को सुना रखा है ? है मेहबूब मेरा तो मेरे ही जज्बात चुप जो रहे.. हमने बेखूबी से अब इनको भी किताबों की पन्नों में छुपा रखा हैं.. शायर की मेहबूबा दिलबर ही हो ..ये कहां लिखा है ? शायर की मेहबूबा..
Vickram
शायरी तो सिर्फ दर्द के जरिए ही लिखी गई जिसने लिखी बारीकी से जिंदगी को पढा उसने जहां कुछ मिला हर एहसास जमा करता गया जिंदगी से हटकर जिंदगी के बारे में लिखा उसने हर बेरंग चीज में भी रंग भरता चला गया वो सफर अधूरा किया पर सफर का अंत लिखा उसने बहुत अलग तरीका होता है इनके देखने का हर बुरी चीज को भी लाजवाब लिखा उसने,, ©Vickram शायर की शायरी,,,