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Shailendra Anand
रचना दिनांक ५,,,११,,,२०२३ वार रविवार समय ््सुबह आठ बजे ्््् शीर्षक ्् शीर्षक छाया चित्र में दिखाया गया भावचित्र प्रेम शब्द से बिन्दु से सजाया गया छाया चित्र वीथिका शीर्षक है।। ्््््् बिन्दु में एक अनोखा अंतर्मन दंव्दं चलता है,, जो अपनो से उपर अलग होकर भी एक होता है।। लेकिन अंहकार बोलता है हम सुनते है,, जो हमारी विवशता दर्शाता है।। जो अपनो की वजह से वो हम खामोशी से देखते है ,, लेकिन सब कुछ भाग्य की किरणों में प्रकाश बिन्दु,, की कल्पना में एक जीवंत प्रयास कर रहे आशा की किरणें उत्पन्न होती है जिसे अपने मकसद का नाम है।। जो कहते है ,, वो लफ्जो से भावना से मन की तरंगों से एकाग्रता से ध्यान की वंदना योग साधना का आज्ञा चक्र बन रेचक से आज्ञा चक्र में स्थित योगिस्थ होकर।। कूण्डलिनी जागृत कर समाधिस्थ मनोतेज होकर आत्मवायु को प्राणवायु में केन्दीत कर ,, मस्तिष्क में समाधिस्थ अभ्यास ही योगिराज परब्रह्म परमात्मा प्रभु में समविलीन आत्मबिन्दू में सदैव के लिए सम्पूर्ण लोक में भ़मण करती मेरी आत्मा का पूनर्रजन्म नहीं होता है ।। यह क़िया क़ियात्मक वेदोक्त पूराणोक्त ,, शाश्वत सत्य रोग पीडा नाशक कल्याण दायनी।। शक्ति प्रदायिनी जीवन चक्र बिन्दु से लेकर जीवन में,, कर्मयोग कुंडलिनी जागरण अभियान संवाद सम्बोधन से मजबूत हो।। यही ईश्वरीय परिदृष्य से मानवता का पाठ दर्शन ,, सनातन विचार का सैद्धांतिक रूप मूल दस्तावेज उदगम स्थल आयना नजरिया है।। ्््््् कवि शैलेंद्र आनंद ५,,, नवम्बर २०२३ ©Shailendra Anand #MoonShayari छाया चित्र बिन्दु पर योग साधना मोक्ष कारक ज्ञान यज्ञ शुभकारकं देवारपणं करिष्यामि।।
Rajesh rajak
#Motivation सांझ हुई दिन ढल गया,बाघ ने घेरी गाय,, गाय बेचारी न मरे,बाघ न भूखा जाय। जीवन रूपी सांझ,यम रूपी बाघ,आत्मा रूपी गाय।
Desi Chhora
desi chhora ©Desi Chhora शिक्षक वह व्यक्ति जो अपने कलम(चॉक) रूपी ज्ञान से बालक के मस्तिष्क रूपी श्यामपट्ट का अंधकार(अज्ञान) रूपी कालापन दुर करता है। #Quote #desich
manoj kumar jha"Manu"
देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम। देवता और पितरों के कार्यों में मनुष्य को आलस्य नहीं करना चाहिए। (तैत्तिरीय उपनिषद, १/११/१) पितृ यज्ञ अवश्य करें।
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। नाभिं॑ य॒ज्ञानां॒ सद॑नं रयी॒णां म॒हामा॑हा॒वम॒भि सं न॑वन्त। वै॒श्वा॒न॒रं र॒थ्य॑मध्व॒राणां॑ य॒ज्ञस्य॑ के॒तुं ज॑नयन्त दे॒वाः ॥ पद पाठ नाभि॑म्। य॒ज्ञाना॑म्। सद॑नम्। र॒यी॒णाम्। म॒हाम्। आ॒ऽहा॒वम्। अ॒भि। सम्। न॒व॒न्त॒। वै॒श्वा॒न॒रम्। र॒थ्य॑म्। अ॒ध्व॒राणा॑म्। य॒ज्ञस्य॑। के॒तुम्। ज॒न॒य॒न्त॒। दे॒वाः ॥ हे मनुष्यो ! (देवाः) विद्वान् जन जिस (यज्ञानाम्) सत्यक्रियामय यज्ञों के (नाभिम्) बीच के भाग को और (महाम्) महान् (रयीणाम्) धनों के (सदनम्) स्थान और (आहावम्) चारों ओर से स्पर्द्धा करने योग्य (वैश्वानरम्) सर्वत्र प्रकाशमान (रथ्यम्) रथको बहाने के योग्य (अध्वराणाम्) नहीं नष्ट करने योग्यों के (यज्ञस्य) प्राप्त होने योग्य व्यवहार के (केतुम्) जनानेवाले को (सम्, जनयन्त) अच्छे प्रकार प्रकट करते हैं और (नवन्त) स्तुति करते हैं उसकी आप लोग (अभि) सम्मुख प्रशंसा करिये ॥ Hey man (Deva:) scholarly jana jis (yagyanam) Satyakramayya Yajna's (naamvam) the middle part and (maham) great (ryamna) of wealth (saddhanam) place and (ahavam) from all around (vivanaram) sarvatra prakashmana (rathayam) ) Do not destroy the chariot worthy of (excruciating) (Yajnasya) worthy of (Yajnasya) attainable behavior (Ketum) to the person who is good (Sama, Janyant), and praises (Navant) his people (Abhi) before him. Praise ( ऋग्वेद ६.७.२ ) #ऋग्वेद #मंत्र #वेद #यज्ञ