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Ek villain
चुनाव प्रचार के समय धर्म जाति संप्रदाय भाषा क्षेत्र लिंग आदि पर आधारित भेदभाव प्रतिबंध राजनीति दलों को अपनी नीतियों को इस प्रकार प्रचार करना चाहिए कि वह संप्रदाय या जाति वादी प्रतीति ना होवे विडंबना यह है कि समाचार पत्रों या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जब भी चुनाव में संभावित का विश्लेषण किया जाता है सर्वप्रथम हिंदू मुस्लिम के आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं इसके बाद हिंदुओं की जाति आधारित संख्या ब्राह्मण ठाकुर निषाद यादव जाट बनिया आदि पाठ पर दृष्टिगोचर होने लगती है मुस्लिम के भीतर फिर के होते हैं तथा सिया सुधि अहां में दिया खरीद कुर्ती आदि लेकिन जानबूझकर खुशी में पैदा की जाती है यही एकजुट होकर मतदान करते हैं विभिन्न राजनीतिक दल ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करते हैं एक मुस्लिम यादव का तो दूसरा दलित मुस्लिम का नारा दलित का कुछ राजनीतिक दल ऐसे में भी जो सारे मुस्लिम को अपने लिए लाना चाहते हैं यह सारे प्रयास आश्रय दैनिक हैं सुप्रीम कोर्ट को संज्ञा लाते हुए ऐसे विश्लेषण ऑफर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए ©Ek villain # उच्चतम न्यायालय समझाई बात #Walk
Ek villain
उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का यह सुझाव की सभी सरकार जांच एजेंसी एक छात्र प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत सम्मिलित होने चाहिए बहुत तार्किक और महत्व है सरकार को इस जगह को तुरंत स्वीकार कर लेना चाहिए सुझाव जिस स्तर पर आया है वह देश की न्याय प्रणाली समाप्त होती है देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई प्रवर्तन निर्धारित सीरियस पेंडिंग इन्वेस्टिगेशन संगठन नोटिफिकेशन 138 प्रशासन व्यवस्था के अंतर्गत कराए गिर जाएगी जो समय पर निर्णय लेने में सक्षम होगी और सफलतापूर्वक तिरुपति से भ्रष्टाचार को समाप्त कर और दोषी को दंड दिलवाने में बेहतर संपर्क करें काम करेगी अभी तो उलझा हुआ सरकारी तंत्र भ्रष्ट तंत्र नहीं है अगर आप देश की जनता का बहुत नुकसान हो चुका है दोषी को दंडित होने तक का महत्व और सार्थक समाप्त हो जाती है ©Ek villain #उचित सुझाव उच्चतम न्यायालय का #VantinesDay
#उचित सुझाव उच्चतम न्यायालय का #VantinesDay #Society
read moreRavi Shankar Kumar Akela
भारत में 6 प्रकार के न्यायालय स्थापित किए गए हैं| वह 6 न्यायालय कुछ इस प्रकार हैं, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला और अधीनस्थ न्यायालय, ट्रिब्यूनल, फास्ट ट्रेक कोर्ट और लोक अदालत। भारत का शीर्ष न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय है , जो कि राजधानी दिल्ली में स्थित है। ©Ravi Shankar Kumar Akela भारत में 6 प्रकार के न्यायालय स्थापित किए गए हैं| वह 6 न्यायालय कुछ इस प्रकार हैं, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला और अधीनस्थ न्यायालय,
भारत में 6 प्रकार के न्यायालय स्थापित किए गए हैं| वह 6 न्यायालय कुछ इस प्रकार हैं, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला और अधीनस्थ न्यायालय, #पौराणिककथा
read morePriyanka Sharma
#न्यायाधीश# खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। मेरी कमियां गिना,खुद को सर्वश्रेष्ठ आंकते हो, सच कहूं तो,हंसी आती हैं और तरस भी, क्योंकि दोहरी शख्सियत रखते हो तुम। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। अपनी धूर्त्तता और झूठ को,होशियारी समझते हो तुम, पर मुझे हताश करते रहने की कोशिश में, खुद ही उलझते रहते हो तुम। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। मेरी सोच की गहराई का आकलन कर सको, तुम्हारी संकीर्ण मानसिकता की उतनी बिसात नही। दूसरों के विचारों, गुणों के मापदंड के मानक बने बैठे तुम, पहले अपने वक्त को जी लो,क्योंकि दो पल की है ज़िंदगी। समय के पहियों को उल्टा घूमाने कि किसी की औकात नही। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। दूसरों के हुनर और परिपक्वता पर उंगली उठाने वाले, बालों की सफेदी पर अगर बुद्धिमता की परख होती तो, लोगों में प्रतिभा नही बुजुर्गियत ही दिखती। जिसने अपने जीवन का लेखन खुद किया हो, उसे क्या आंक सकोगे तुम। भीतर एक शांत समंदर है, दृष्टि वाले नेत्रहीन ,उसमे क्या झांक सकोगे तुम। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। मुश्किल लहरों के थपेड़ों ने मुझे तैरना सिखाया है। तुम क्या मेरे मार्गदर्शक करोगे? मेरे हौसले ने खुद ही अपने पंखों को फैलाकर, मुझें उड़ना सिखाया है। दिखावटी प्रेम को परिभाषित कर, अपनी खोखली बुद्धि के परिचायक हो तुम। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। सोचते हो तुम्हारी कुटिल मुस्कान से अनभिज्ञ हूं मैं। तुम्हारी बातों में उतना वजन नहीं, सहूलियति झूठी बातों से खेलने वाले,क्यों यकीं करु तुम्हारा?, तुम संत तो हो नहीं,जहां सब बातें सही हो, तुम्हारी वाणी ही तो हैं बस, कोई भजन नही। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। कोशिशें बेकार तुम्हारी,इनसे न कोई चुभन महसुस होती, न उठती कोई टीस।।२।। इतनी महत्ता नही तुम्हारी मेरे जीवन में, अपने विचारों, हूनर, उसूलों के लेखन जोखन का, परीक्षक बताकर, तुम्हें बना दूं,अपने जीवन का न्यायाधीश! ©Priyanka Sharma # न्यायाधीश
# न्यायाधीश
read moreVicky Yadav
फैसला जो भी होगा स्वंय देखेंगे श्री राम जी। शांत हिंदुस्तान में ले हम,शांति से काम जी।। होना ना होना छोड़ा है, सब आज भगवान पर। बस विवेक ना मरे किसी का अपने ज्ञान पर।। आज के हर फैसले को प्यार से समझाइए। संग खड़े है राम स्वंय किंचित नही घबराइए।। सरकारे रहे चौकन्नी कोई आंच ना आने सके। देश की अखंडता पर,कोई जांच ना आने सके।। होगा वही जो अब प्रभु ने,है किया सब के लिए। बस वतन में न्याय हो, सद्भावना के जलते दिए।। धैर्य,धर्म, अखंडता संग न्याय का सम्मान हो। तुझमे बसे रहीम हो या मुझमें बसे भगवान हो।। विक्की यादव "शौर्य" सर्वोच्च न्यायालय के नय को सम्मान हो
सर्वोच्च न्यायालय के नय को सम्मान हो
read moreRahul Shastri worldcitizens2121
ईश्वर और न्यायाधीश March 13,2020 मैं उस ईश्वर के बारे मैं जानने को अतिउत्सुक हूँ जिसने 100% सन्तोष जनक न्यायाधीशों की स्थापना की हो! जो न्यायाधीश सम्राटों/देवताओं को भी को तुरंत स्थायी मृत्युदंड देता हो। जिसका न्याय समय के पैमाने पर भी सबसे सही प्रमाणित होता हो और समय के परे भी। जो 9 ग्रहो के स्थाई ठेके को भी नष्ट करता हो औऱ देवताओं और भगवान के स्थाई अमरता के अधिकार को भी। राहुल शास्त्री discoverhiddennectar@gmail.com ईश्वर औऱ न्यायाधीश
ईश्वर औऱ न्यायाधीश
read moreJitendra Kumar Som
सियार न्यायधीश किसी नदी के तटवर्ती वन में एक सियार अपनी पत्नी के साथ रहता था। एक दिन उसकी पत्नी ने रोहित (लोहित/रोहू) मछली खाने की इच्छा व्यक्त की। सियार उससे बहुत प्यार करता था। अपनी पत्नी को उसी दिन रोहित मछली खिलाने का वायदा कर, सियार नदी के तीर पर उचित अवसर की तलाश में टहलने लगा। थोड़ी देर में सियार ने अनुतीरचारी और गंभीरचारी नाम के दो ऊदबिलाव मछलियों के घात में नदी के एक किनारे बैठे पाया। तभी एक विशालकाय रोहित मछली नदी के ठीक किनारे दुम हिलाती नज़र आई। बिना समय खोये गंभीरचारी ने नदी में छलांग लगाई और मछली की दुम को कस कर पकड़ लिया। किन्तु मछली का वजन उससे कहीं ज्यादा था। वह उसे ही खींच कर नदी के नीचे ले जाने लगी। तब गंभीरचारी ने अनुतीरचारी को आवाज लगा बुला लिया। फिर दोनों ही मित्रों ने बड़ा जोर लगा कर किसी तरह मछली को तट पर ला पटक दिया और उसे मार डाला। मछली के मारे जाने के बाद दोनों में विवाद खड़ा हो गया कि मछली का कौन सा भाग किसके पास जाएगा। सियार जो अब तक दूर से ही सारी घटना को देख रहा था। तत्काल दोनों ही ऊदबिलावों के समक्ष प्रकट हुआ और उसने न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव रखा। ऊदबिलावों ने उसकी सलाह मान ली और उसे अपना न्यायाधीश मान लिया। न्याय करते हुए सियार ने मछली के सिर और पूँछ अलग कर दिये और कहा - "जाये पूँछ अनुतीरचारी को गंभीरचारी पाये सिर शेष मिले न्यायाधीश को जिसे मिलता है शुल्क।" सियार फिर मछली के धड़ को लेकर बड़े आराम से अपनी पत्नी के पास चला गया। दु:ख और पश्चाताप के साथ तब दोनों ऊदबिलावों ने अपनी आँखे नीची कर कहा- "नहीं लड़ते अगर हम, तो पाते पूरी मछली लड़ लिये तो ले गया, सियार हमारी मछली और छोड़ गया हमारे लिए यह छोटा-सा सिर; और सूखी पुच्छी।" घटना-स्थल के समीप ही एक पेड़ था जिसके पक्षी ने तब यह गायन किया - "होती है लड़ाई जब शुरु लोग तलाशते हैं मध्यस्थ जो बनता है उनका नेता लोगों की समपत्ति है लगती तब चुकने किन्तु लगते हैं नेताओं के पेट फूलने और भर जाती हैं उनकी तिज़ोरियाँ।" ©Jitendra Kumar Som #KiaraSid सियार न्यायाधीश
Aurangzeb Khan
बुझते हुए चराग को हवा दे गया कोई मौसम ए खिजा में भी गुल खिला गया कोई थम चुकी थी जिनकी उम्मीदें इंसाफ के लिए इस जुल्म के अंधेरों में वक्त रहते ही इंसाफ का दीया फिर जला गया कोई #सर्वोच्च न्यायालय ©Aurangzeb Khan #सर्वोच्च न्यायालय
Shiv
मुन्सिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते मुंशिफ़-न्यायाधीश #urdupoetry #CityEvening
मुंशिफ़-न्यायाधीश #urdupoetry #CityEvening #शायरी
read moreKavita jayesh Panot
न्याय की कतार अन्यायों की बस्तियों में, देखो न्याय के लिए कतार लगी है। छोटी नही है कोई आवाजे , दिल की गहराइयों से गुहार लगी है। सुनने वाला जैसे बेहरा हो, आँखों से दृष्ट राज । राज सभा में द्रोपतियो की भीड़ लगी है। सरेआम छल ली जाती है , इज्जत बाजारों में किसी बेकसूर की। जैसे किसी हैवान की वासना मुख में सजी हो। किसी के घर पकवानों की थालियां सजती है, तो कोई भूख से तड़प कर मौत की नींद सो जाता है। कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा, कोई लुटा देता है अपनी बुढ़ापे की जमा पूँजी भी, एक न्याय की आस में। फिर भी वर्षो से कागजातों में बंद उम्मीदे पड़ी है। कोई अपने हक की कमाई के लिए , गिड़गिड़ाता है, लाठी के सहारे भी पेंशन आफिस के चक्कर लगाता है। न जाने ये न्याय का कैसा रास्ता है? अधिकारों और न्याय की सुनवाई तो, मन्दिरों के द्वार पर भी धागों में बंधी है। अन्याय की इस बस्ती में , न्याय की कतारें लगी है। न्याय की गद्दी पर बैठा अंधा है, अन्यायों की महफ़िल हर जगह जमी है। कोई मखमली लिबाज पहनें तो, किसी को कफ़न भी न नसीब है। ईश्वर ने बनाया इंसान , ये इतनी सारी अलग -अलग पहचान कैसे ,क्यों बनी है? चलो अब इंसानियत को अपना मूल धर्म बना, भेदों को जहाँ से मिटा दे। हर इंन्सा को उसके मूलभूत अधिकार दिला, ख़ुशनुमा औरो के जीवन भी बना दे। चलो आज समाज को सामाजिक न्याय और, कर्तव्यों के सही मायने सीखा , अन्याय की बस्ती में आग लगा दे।। कविता जयेश पनोत ©Kavita jayesh Panot #न्यायालय #न्याय#इंसानियत