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Parasram Arora

दुर्गन्ध #शायरी

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Arora PR

गंध दुर्गन्ध #कविता

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Deepak Kanoujia

ज़रा सोचो कैसे पथराई, सूखी, झूठी मुस्कुराती आँखें लिए घूम रहा हूंगा मैं अब...सुनो नयी नयी खुशबुएं बन जो महकते रहते हो मुझमें, कभी कभी नए नए र #mahadev #eyelover #eyesquotes #shivparvati #gaurishankar #modishtro #deepakkanoujia #pradhunik

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तुझे नहीं पता
एक जलाशय है मेरी आँखों में,
तुझे नहीं पता
ना देखूं तुझे कुछ दिन तो ये सूख जाता है... ज़रा सोचो कैसे पथराई, सूखी, झूठी मुस्कुराती आँखें लिए घूम रहा हूंगा मैं अब...सुनो नयी नयी खुशबुएं बन जो महकते रहते हो मुझमें, कभी कभी नए नए र

Harshita Dawar

Insta@dawarharshita गिनती किसकी कितनी रहती हैं अंतिम स्वाश तक ही नाम की रहती हैं फिर सिर्फ़ एक दुर्गन्ध शरीर की रहती हैं, कमी या कमाई जितनी #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqquotes

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Insta@dawarharshita
गिनती किसकी कितनी रहती हैं
अंतिम स्वाश तक ही नाम की रहती हैं
फिर सिर्फ़ एक दुर्गन्ध शरीर की रहती हैं,
कमी या कमाई जितनी भी हो जीवन में 
मैं भी धरी की धरी रहती हैं,
बराबरी तो सिर्फ़ उस खुदा ने ही की हैं,
खाली भेजते लौटकर भी खाली ही बुलाते हैं,
कर्मों के हिसाब भी बस मिट्टी में पलते मिट्टी में मिल जाते हैं, Insta@dawarharshita
गिनती किसकी कितनी रहती हैं
अंतिम स्वाश तक ही नाम की रहती हैं
फिर सिर्फ़ एक दुर्गन्ध शरीर की रहती हैं,
कमी या कमाई जितनी

Kulbhushan Arora

1 नवंबर, 1984 स्तब्ध शहर के भीतर सेबंद दरवाज़े, बंद खिड़कियों से झांकती आंखें, दहशत की गन्ध,फैली दुर्गन्ध सी, खुले होंटों मेंअटकी खामोश आवाज #yqquotes #yqdiary #yqकुलभूषण #yqriot

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1नवंबर 1984
मेरे जीवन का
सबसे काला दिन



असहाय से हम सब
देखते रह गए
लोगों की जीवित जलते
 1 नवंबर, 1984
स्तब्ध शहर के भीतर सेबंद दरवाज़े,
बंद खिड़कियों से झांकती आंखें,
दहशत की गन्ध,फैली दुर्गन्ध सी,
खुले होंटों मेंअटकी खामोश आवाज

Darshan Blon

खिड़की बंद पड़ी है कब से और ताला लगा है दरवाज़े पर! तोड़ दे उस ताले को, खोल दे उस बंद खिड़की को देख! ये किरणे बेताब है कब से तेरे घर के भीतर आने #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine

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खिड़की बंद पड़ी है कब से
और ताला लगा है दरवाज़े पर!

तोड़ दे उस ताले को,
खोल दे उस बंद खिड़की को
देख! ये किरणे बेताब है कब से
तेरे घर के भीतर आने को!

उफ़! ये दुर्गन्ध, 
ये मकड़ी के जालें,
ये धूल का मोटा परत,
ये चूहों का आतंक... 

ख़तम हो जाएगा इनका दबदबा,
बस!तू खाली एक दफ़ा 
खोल दे ये बंद पड़ी खिड़की
और आने दे स्वच्छ हवा को अंदर,
छूने दे किरणों को हर गोशा और कोना
तभी न जाके बदलेगा तेरे 
एकांत और खिन्न घर का ये मंज़र! खिड़की बंद पड़ी है कब से
और ताला लगा है दरवाज़े पर!

तोड़ दे उस ताले को,
खोल दे उस बंद खिड़की को
देख! ये किरणे बेताब है कब से
तेरे घर के भीतर आने

Pnkj Dixit

🚩 देव - संस्कृति 🚩 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 देव संस्कृति की यह विशेषता रही है कि समय-समय पर मनीषी अवतरित होते रहे हैं एवं युगानुकुल परिस्थितियों को दृष #कहानी #विचार #आजकाज्ञान

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🚩 देव - संस्कृति 🚩
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
देव संस्कृति की यह विशेषता रही है कि समय-समय पर मनीषी अवतरित होते रहे हैं एवं युगानुकुल परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए अपेक्षित सुधार परिवर्तन धर्म-दर्शन में करते रहे हैं । वें यह भली भांति जानते हैं कि मूल तत्व दर्शन एक होते हुए भी समय के अनुसार धर्म सम्प्रदायों के कलेवर में परिवर्तन करना पड़ सकता है। रूका हुआ पानी सड़ता व कीचड़ बनकर दुर्गन्ध फैलाता है । यदि प्रवाह न बनाया जाए तो विकृतियां समाज के वातावरण को दूषित कर सकतीं हैं। समय-समय पर पुनिरीक्षण एवं तर्क तथ्य , प्रमाणों के आधार पर विवेचन कर इसीलिए संस्कृति का परिशोधन किया जाता रहा है। यही एक महत्वपूर्ण कारण है कि अनेकों मत-मतांतर होते हुए भी देव संस्कृति एक बनी हुई है । पूर्वाग्रहों की विडम्बना से वह सर्वथा मुक्त है।
जय वैदिक सनातन धर्म संस्कृति 🚩
हरि ॐ तत् सत् 🚩
जय श्री राम 🚩

३०/०६/२०१९
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 🚩 देव - संस्कृति 🚩
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
देव संस्कृति की यह विशेषता रही है कि समय-समय पर मनीषी अवतरित होते रहे हैं एवं युगानुकुल परिस्थितियों को दृष

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 13 - आशा - उचित-अनुचित 'नम्बर सात ताला-जंगला सब ठीक है।' बड़े ऊंचे स्वर में पुकारा प

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
13 - आशा - उचित-अनुचित

'नम्बर सात ताला-जंगला सब ठीक है।' बड़े ऊंचे स्वर में पुकारा प

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 13 - आशा - उचित-अनुचित 'नम्बर सात ताला-जंगला सब ठीक है।' बड़े ऊंचे स्वर में पुकारा

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 || श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8


।।श्री हरिः।।
13 - आशा - उचित-अनुचित

'नम्बर सात ताला-जंगला सब ठीक है।' बड़े ऊंचे स्वर में पुकारा

काव्याभिषेक

ये जो #संत हैं , साक्षात् #अरिहंत हैं। मेरे भगवन्त हैं , अनादि अनन्त हैं । वीतराग #संत हैं, स्वयं एक पंथ हैं। दीप ये ज्वलंत हैं, चारित्र की #हिंदी #बसंत #प्रतिभा #पूर्णिमा #विद्या #इतिहास #ज्ञान #पाप #णमोकार

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ये जो संत हैं ,
साक्षात् अरिहन्त हैं । ये जो #संत हैं ,
साक्षात् #अरिहंत हैं।
मेरे भगवन्त हैं ,
अनादि अनन्त हैं ।
वीतराग #संत हैं,
स्वयं एक पंथ हैं।
दीप ये ज्वलंत हैं,
चारित्र की
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