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Manya Parmar
Manya Parmar
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ । निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ । हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह- रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्रीति-रीति की छोड़ ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ । निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ । हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह- रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्र
PURAN SINGH CHILWAL
Death_Lover
White राम जगत की रही है रीति यही, माया से ही है प्रीति सही॥ ◆मेरे_राम◆ ©Death_Lover #Sad_Status #मेरे_राम #प्रेम #माया #रीति #बोध #जागृति #मृत्यु #अनन्त #Awareness
N S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} हजारों तीर्थ, त्योहार, व्रत, पूजा, रस्मो, रीति-रिवाज, व देवी - देवताओं से भरा सर्वश्रेष्ठ हमारा भारत हैं, जिसमें हम सब है, यहाँ इन सबको अपनाकर इस जीवन मे एक अकेला व्यक्ति कुछ नही करता, घर की औरत इन सब को पूरा करती है, या करवाती है, या निभाती हैं, पर एक अकेला व्यक्ति नही करता, वह घर नही केवल एक मकान ही होता है। ©N S Yadav GoldMine #Couple {Bolo Ji Radhey Radhey} हजारों तीर्थ, त्योहार, व्रत, पूजा, रस्मो, रीति-रिवाज, व देवी - देवताओं से भरा सर्वश्रेष्ठ हमारा भारत हैं, जि
Manya Parmar
Manya Parmar
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।। आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल । हे राधा छू लेन दो , यही नन्द के लाल ।। हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल । मैं कोई नादान हूँ , सब समझूँ मैं चाल ।। भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल । तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।। रिश्ता :- रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल । छुपा किसी से है नही , हम दोनो का हाल ।। रिश्ते की बुनियाद है , अटल हमारी प्रीति । क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।। रिश्ते में हम आप हैं , पति पत्नी का रूप । मातु-पिता को मानते , हैं हम अपने भूप ।। रिश्तों की बगिया खिली , तनय उसी के फूल । लेकिन उनमें आज कुछ , बनकर चुभते शूल ।। एक रंग है रक्त का , जीव जन्तु इंसान । जिनका रिश्ता ये जगत , जोड़ गया भगवान ।। रिश्ता छोटा हो गया , पति पत्नी आधार । मातु-पिता बैरी बने , साला है परिवार ।। ०७/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।। च़चल मन की वो खुशी , देख सके क्या आप । मन ही मन खिलता रहा , सुनकर ये पदचाप ।। चंचल मन ने बाँध ली , आज प्रेम की डोर । कैसे निकलेंगे सजन , नैना है चितचोर ।। चंचल दिखती है पवन , छेड़े मन के तार । आने वाले हैं सजन , लायी खत इस बार ।। चंचल मन वैरी हुआ , करके उनसे प्रीति । सुधि भी वह लेता नहीं , निभा रही मैं रीति ।। २७/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।