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Manya Parmar

वे जो बच्चियां कामयाब हुई है नाम रोशन किया है अपना और अपने अपनो का उन्हें उतनी मात्रा में शिक्षा, साथ, समय,पैसा और अपनो का सहारा मिला जिसके #Motivational

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Manya Parmar

पिता तो जानते है दुनियादारी, सबसे ज्यादा समझ होती है उनमें, अगर वाकई होता पितृ सत्तात्मक समाज तो हर बेटी कामयाब काबिल, शोषण ना सहने वाली, बे #Motivational #घरेलूहिंसा #MissionMaanyMaang

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ । निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ । हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह- रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्र #कविता

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सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ ।
निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ ।
हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह-
रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्रीति-रीति की छोड़ ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सुमिरन जो माया करे , रिश्ते नाते तोड़ ।
निकल वही आगे बढ़े , राहें अपनी मोड़ ।
हमको भी सब दे रहे , मिलकर यही सलाह-
रखो स्वार्थ तुम भी प्रखर, प्र

PURAN SING‌H CHILWAL

उत्तराखंड के रीति रिवाज समाज और संस्कृति बैंड बाजा 🌷🌷🌷🙏🏼🙏🏼🌷🌷🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🕉🕉🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌷 #वीडियो

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Death_Lover

N S Yadav GoldMine

#Couple {Bolo Ji Radhey Radhey} हजारों तीर्थ, त्योहार, व्रत, पूजा, रस्मो, रीति-रिवाज, व देवी - देवताओं से भरा सर्वश्रेष्ठ हमारा भारत हैं, जि #विचार

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Manya Parmar

बचपन से जवानी, जीवन के हर पग पर नारी को कम आंका कम बताया,खुद पर भरोसा न करना सिखाया, चुप रहना, बुराई सहना सिखाया, घर के काम इसकी राजनीति में #Shayari

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Manya Parmar

हर बहन का सपना होता है उनके भाई उनसे भी ज्यादा पढ़े अफसर बनें, बड़े अधिकारी, जानी मानी हस्ती बनें, उसके लिए हर बहन अपनी इच्छा सपने कम करती ह #Shayari #घरेलूहिंसा #MissionMaanyMaang

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का #कविता

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घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल ।
छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।।

लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल ।
आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।।

आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल ।
हे राधा छू लेन दो , यही  नन्द के लाल ।।

हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल ।
मैं कोई नादान हूँ ,  सब समझूँ मैं चाल ।।

भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल ।
तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।।
रिश्ता :-
रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल ।
छुपा किसी से है नही ,  हम दोनो का हाल ।।

रिश्ते की बुनियाद है ,  अटल हमारी प्रीति ।
क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।।

रिश्ते में हम आप हैं , पति पत्नी का रूप ।
मातु-पिता को मानते , हैं हम अपने भूप ।।

रिश्तों की बगिया खिली , तनय उसी के फूल ।
लेकिन उनमें आज कुछ ,  बनकर चुभते शूल ।।

एक रंग है रक्त का , जीव जन्तु इंसान ।
जिनका रिश्ता ये जगत  , जोड़ गया भगवान ।।

रिश्ता छोटा हो गया , पति पत्नी आधार ।
मातु-पिता बैरी बने , साला है परिवार ।।

०७/०३/२०२४     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल ।

छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।।


लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल ।

आज तुम्हारी चाल का

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।। #कविता

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दोहा :- चंचल

चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार ।
दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
च़चल मन की वो खुशी , देख सके क्या आप ।
मन ही मन खिलता रहा , सुनकर ये पदचाप ।।
चंचल मन ने बाँध ली , आज प्रेम की डोर ।
कैसे निकलेंगे सजन , नैना है चितचोर ।।
चंचल दिखती है पवन ,  छेड़े मन के तार ।
आने वाले हैं सजन , लायी खत इस बार ।।
चंचल मन वैरी हुआ , करके उनसे प्रीति ।
सुधि भी वह लेता नहीं , निभा रही मैं रीति ।।

२७/०२/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- चंचल


चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार ।

दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
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