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dilkibaatwithamit

ख़ुद से लड़कर तुझसे हारे, ठीक हुआ आँख से निकले अश्क के धारे, ठीक हुआ भूलने वाले 1 जनवरी भूल गया भूल न पाए हम बेचारे, ठीक हुआ जो मेरा होने

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White ख़ुद से लड़कर तुझसे हारे, ठीक हुआ
आँख से निकले अश्क के धारे, ठीक हुआ

भूलने वाले 1 जनवरी भूल गया
भूल न पाए हम बेचारे, ठीक हुआ

जो मेरा होने का दावा करते थे
झूठे निकले यार वो सारे, ठीक हुआ

उसको इनाम में इक और दुनिया मिली
मेरे हिस्से आए ख़सारे, ठीक हुआ

पाँव मलते-मलते उसकी बस्ती से
घर को लौटे हम बेचारे, ठीक हुआ

उसकी छत पे जाने से तो बेहतर था
रातें गुज़ारी गिनकर तारे, ठीक हुआ

©dilkibaatwithamit ख़ुद से लड़कर तुझसे हारे, ठीक हुआ
आँख से निकले अश्क के धारे, ठीक हुआ

भूलने वाले 1 जनवरी भूल गया
भूल न पाए हम बेचारे, ठीक हुआ

जो मेरा होने

dilkibaatwithamit

हाल-ए-दिल हम ने सुनाया तो बुरा मान गए अश्क आँखों में जो आया तो बुरा मान गए वा'दा करके जो न आए तो कोई बात नहीं बेवफ़ा कह के बुलाया तो बुर

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White हाल-ए-दिल हम ने सुनाया तो बुरा मान गए 
अश्क आँखों में जो आया तो बुरा मान गए 

वा'दा करके जो न आए तो कोई बात नहीं 
बेवफ़ा कह के बुलाया तो बुरा मान गए 

जिस के हर लफ़्ज़ में हर बंद में नाम उन का था 
हम ने वो गीत सुनाया तो बुरा मान गए 

वो जो ग़ैरों से हम-आग़ोश हुआ करते हैं 
उन को पहलू में बिठाया तो बुरा मान गए 

आप ने जश्न चराग़ों का मनाया लेकिन 
इक दिया हम ने जलाया तो बुरा मान गए 

जाम पे जाम उठाते रहे पीने वाले 
हम ने जो हाथ बढ़ाया तो बुरा मान गए 

नाज़ पे नाज़ उठाया तो बड़े अच्छे थे 
नींद से उन को जगाया तो बुरा मान गए 

ऐब हर शख़्स में जो ढूँड रहे थे '
आइना उन को दिखाया तो बुरा मान गए....

©dilkibaatwithamit हाल-ए-दिल हम ने सुनाया तो बुरा मान गए 
अश्क आँखों में जो आया तो बुरा मान गए 

वा'दा करके जो न आए तो कोई बात नहीं 
बेवफ़ा कह के बुलाया तो बुर

Anant Nag Chandan

#Sad_Status अश्क आँखों से गिरते-गिरते रह गए, हम ख़ुदकुशी को सोचते-सोचते रह गए। अनंत

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White अश्क आँखों से गिरते-गिरते रह गए,
हम ख़ुदकुशी को सोचते-सोचते रह गए।
अनंत

©Anant Nag Chandan #Sad_Status अश्क आँखों से गिरते-गिरते रह गए,
हम ख़ुदकुशी को सोचते-सोचते रह गए।
अनंत

shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं.... जार जार होते अल्फ़ाज़ बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कता

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White ©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं....
जार जार होते अल्फ़ाज़
बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कतार अश्क, अलूदा चश्म से आलूदा  कजरारी पलके....
वो कुछ बुने हुए ख्वाब
कुछ गिले_शिकवे....?जो इब्न_आदम इल्म रखते हुए भी,औरत के अंतर्मन को जानबूझकर बेझिझक उसके द्वारा नजर अंदाज कर देना....
हां मैं लिखती हूं तरतीब से लफ्जों को पिरोकर,
तमाम आलमी औरत के अंतर्मन को,उनके मन में चलते शोरगुल करते सांय सांय सन्नाटे को....
गर रही हयात तो मै बहुत कुछ लिखूंगी इन
इब्न आदम पर भी ....
#Shamawritesbebaak

©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर ©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं....
जार जार होते अल्फ़ाज़
बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कता

MSA RAMZANI

सितारों से आगे जहां और भी है अभी अश्क के इम्तिहां और भी है तु शाहीन है परवाज है काम तेरा तेरे सामने आसमां और भी है Pooja Udeshi Deepika

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White सितारों से आगे जहां और भी है 
अभी अश्क के इम्तिहां और भी है 
तु शाहीन है परवाज है काम तेरा 
तेरे सामने आसमां और भी है
30/3/15

©MSA RAMZANI सितारों से आगे जहां और भी है 
अभी अश्क के इम्तिहां और भी है 
तु शाहीन है परवाज है काम तेरा 
तेरे सामने आसमां और भी है
 Pooja Udeshi  Deepika

theABHAYSINGH_BIPIN

#sad_quotes ये कैसा प्यार मैं कर बैठा, उनकी नज़रों में खुद को गिरा बैठा। अब तो रातें तन्हा ही कटती हैं, सुकून ये इश्क़ भी गवां बैठा।

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White ये कैसा प्यार मैं कर बैठा,
उनकी नज़रों में खुद को गिरा बैठा।

अब तो रातें तन्हा ही कटती हैं,
सुकून ये इश्क़ भी गवां बैठा।

कहाँ आती होगी सुकून की नींद,
उनकी आँखों से अश्क छलका बैठा।

कितनी दिलकश थीं हमारी यादें,
मैं उन्हें भी दुःख-दर्द दे बैठा।

अब उनके दिन कहाँ ख़ुशी के हैं,
तकिया-चादर भीगा मैं कर बैठा।

दर्द-ओ-ग़म से निकलना मुश्किल है,
कैसी मुसीबत में उन्हें डाल बैठा।

कैसे कह दूं कि वो भी खुश होंगी,
उनकी रातों को तन्हा मैं कर बैठा।

©theABHAYSINGH_BIPIN #sad_quotes 

ये कैसा प्यार मैं कर बैठा,
उनकी नज़रों में खुद को गिरा बैठा।

अब तो रातें तन्हा ही कटती हैं,
सुकून ये इश्क़ भी गवां बैठा।

Ruhi

मेरे बहते आंखों के अश्क कह रहे हैं तुमने मजबूरियां देखी है और लोगों ने तुम्हें मजबूर किया है।

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Unsplash   एक दिन मैं सब कुछ छोड़ जाऊंगी 
तुमसे दूर और अपनों से मु मोड़ जाऊंगी 
ज़माने भर से क्या मतलब....
मैं जहां से आई थी फ़िर उन्हीं राहों से लौट जाऊंगी ।
एक दिन मैं यूं ही किसी मिट्टी में हवा बन उड़ जाऊंगी,,
एक दिन तुम सब देखोगे और मैं सबके आंखों 
से धार बन कर बह जाऊंगी,,
एक दिन मैं इस दुनियां को अपनी से पराई कर जाऊंगी।
एक दिन तुम देखोगे लाश मेरी 
और मैं कब्र में आंखे मूंद सो जाऊंगी।

©Ruhi मेरे बहते आंखों के अश्क कह रहे हैं 
तुमने मजबूरियां देखी है 
और लोगों ने तुम्हें मजबूर किया है।

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर तुम्हे ही मुझसे हमदर्दी नहीं, तो किसे इत्येलाह करूं। तुम्हारे सुकून की ख्वाहिश में, खुद से भी गिला करूं। तुम्हीं न समझो मेरा द

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तुम्हे ही मुझसे हमदर्दी नहीं,
तो किसे इत्येलाह करूं।
तुम्हारे सुकून की ख्वाहिश में,
खुद से भी गिला करूं।

तुम्हीं न समझो मेरा दर्द,
तो और किससे वफा करूं।
जो अश्क छुपा रखे हैं पलकों में,
उन्हें कैसे रिहा करूं।

जिन लफ्ज़ों में था तेरा जिक्र,
अब उनका क्या सिलसिला करूं।
तुम्हारी खामोशी है गवाही मेरी,
तो शिकायत किससे भला करूं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
तुम्हे ही मुझसे हमदर्दी नहीं,
तो किसे इत्येलाह करूं।
तुम्हारे सुकून की ख्वाहिश में,
खुद से भी गिला करूं।

तुम्हीं न समझो मेरा द

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर ज़ख्म इतने हैं कि मरहम भी कहाँ तक रखते, दर्द ऐसा है कि लफ्ज़ भी शिकायत नहीं करते। हर मोड़ पर इक नया इम्तिहान मिलता है, कभी आँधि

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White ज़ख्म इतने हैं कि मरहम भी कहाँ तक रखते,
दर्द ऐसा है कि लफ्ज़ भी शिकायत नहीं करते।
हर मोड़ पर इक नया इम्तिहान मिलता है,
कभी आँधियाँ तो कभी अश्क राहत नहीं करते।
चल पड़े हैं सफर में तन्हा सवालों के साथ,
जवाब आने से पहले ही हालात नहीं थमते।
गुज़री है ज़िंदगी बस इक छांव की तरह,
जो भी छूने की चाह थी, वो हसरत नहीं भरते।
राह-ए-इश्क़ में ठहराव का इंतज़ार किसे,
ये धड़कनें भी सुकून की इजाज़त नहीं करते।
मोहब्बत की राह में हर कदम पर ये जाना,
 मंज़िलें तो हैं मगर वो क़ुर्बत नहीं करते।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
ज़ख्म इतने हैं कि मरहम भी कहाँ तक रखते,
दर्द ऐसा है कि लफ्ज़ भी शिकायत नहीं करते।
हर मोड़ पर इक नया इम्तिहान मिलता है,
कभी आँधि

संस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा तरु

चिलमन=पर्दे ख़लिश=शिकायत राफ़्ता= संबंधित दरमियां ए साहिल= मझधा, मुकद्दर(भाग्य) स्वलिखित गज़ल शीर्षक समंदर आंखों का विधा गज़ल भाव वास्त

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