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Divyanshu Pathak
ककड़ी तरबूजों के खेतों में हम छुप कर सेंध लगाते थे । खट्टी मीठी अमियां बेख़ौफ़ तोड़ कर लाते थे । रखवाली करने बाले जब हमें पकड़ने आते थे । दिखा अंगूठा हम भगते पर हाथ न उनके आते थे । रोज शाम सोने से पहले बडी शिकायत होती थी । फिर अपनी सेवा भी ढंग से घर डंडे से होती थी । गर्मियों की यादें.....☺😊
Vivek Singh rajawat
"गर्मियां" ये महज़ एक मौसम नही एक त्योहार हैं, कितनो को बस इसका ही इन्तेजार हैं, हाँ कुछ को इससे शिकायतें भी हज़ार हैं, क्योंकि मई-जून में पारा 45 के पार हैं, लेकिन यक़ीनन ये एक त्योहार हैं, आते हैं वो जिसका साल भर से इंतजार हैं, वो रस भरे,जिनका स्वाद सरोबार हैं, छुट्टियों का आलम भी बेशुमार हैं, घर मे चहल-पहल,बच्चों को होमवर्क हज़ार हैं, देखो ये गर्मियां एक त्योहार हैं, नानी-दादी को बच्चों का इन्तेजार हैं, छत पर सूखता हुआ आम,नींबू का अचार हैं, ठंडी कुल्फ़ी का मजा औऱ शिकंजी ही तो प्यार हैं, गरम दोपहरी में आलस्य पर नींद नागवार हैं, तभी तो फिर से पुराना लूडो स्टार हैं, पकी बालियां गेंहू की प्रकृति का आभार हैं, लू से बचने के लिए सत्तू देसी उपचार हैं, यार ये गर्मी बस एक त्योहार हैं। विवेक सिंह राजावत। गर्मियों की बात कुछ अलग ही होती हैं।
Chetna Suthar
चिड़ियों की चरपट और मेरी करवट ज़रा सी हरक़त जगता कौतूहल सरपट सुबह की अरनिमा कोयल की कुकार मोर की पुकार घंटियों की टंकार चढ़ती हुई धूप और छत पर लेटे हम हवाओं का सुर्ख और जीवन का रुख ढेर सारे पंछियो का ये मधुर मधुर गान उस पर थिरकते यू सूरज चाचू महान् ये गर्मियों की छुट्टियों का एहसास और नानी ननिहाल का लाड़-दुलार मम्मी की शिकायत करने का मौका और उनके जीवन के किस्से कांड दही घाट छास प्याज और सुखी रोटी के पाँच पकवान माना अब सब कुछ बदल गया हैं पर यादों में नानी ननिहाल सभी के रहा हैं ©Chetna Suthar गर्मियों की छुट्टियाँ नानी और ननिहाल #chhat #nojato #Nojoto
BANDHETIYA OFFICIAL
धुंध की बात जहां तक है, शीतलहरी का सबब तो लू की भी वजह है, छंट जाना इसका रास्ता ही नहीं, मौसम भी साफ करे, मिजाज गर्मी से ऊबके, आंखें सिंक जायं - कलेजे का ठंडापन तो महसूस करें , गर्मियां कब नहीं हैं-- जवानी,दौलत, बदमिजाजी । ©BANDHETIYA OFFICIAL गर्मियों वाले दिन-रात! #Suicide
khusi
गर्मियों के दिन। वह भी क्या दिन हुआ करते थे, जबहम सभी एक साथ घर पर रहा करते थे ।आज भी साथ रहते हैं मगर अब वह वाली बात नहीं रही है गर्मियों में ।आज भी गर्मी आती है मगर पहले जैसी यादें दे कर नहीं जाती। बात उस समय की है जब हम छोटे हुआ करते थे । उतनी ज्यादा समझ ना थी ,ना थोड़ी सी भी कुछ ख्वाहिशें थी। एक साथ सारा परिवार गर्मियों की रात छत पर बिताता था ।एक साथ सब छत पर लेटे रहते प्यार से पापा मम्मी के पास बैठे रहते , और एक टक तारे को देखकर कहां करते हैं ,कि यह कितना दूर है? काश उसे हम छु पाते ? हमेशा सोचते की काश इतनी दूर पहुंच पाते और अब देखो भूल गए है वो सारी बातें। अब सब बड़े हो गए हैं अपने अपने दुनिया मै खो गए हैं । पास रहने का मौका ही नहीं मिलता सब अपने अपने मोबाइल फोन में बिजी हो गए है ।भूल गए है वह खट्टी मीठी सारी यादें ।धुंधली पड़ी हुई है कहीं वह सारी यादें। आज भी जब ऊपर आसमां को देखती हूं, याद करती हूं वह बचपन जहां एक साथ अपने भाई बहन के साथ बैठ करती थी ।जो सबसे ज्यादा हवाई जहाज देखेगा ओर दिखाएगा वह आज का विजेता कहलाएगा।यह सारी बाते ना जाने कहां खो गई है। यह उन दिनों की बात है जब हम छोटे हुआ करते थे ना कोई फोन था , ना कोई अपना सीक्रेट था। सब एक साथ मिलजुल कर हंसा करते थे। यह बात उन दिनों की है, जब हम छोटे हुआ करते थे। अब याद आते हैं वह दिन गर्मियों के। #गर्मियों के दिन#yosto wrimo#