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Hema Choudhary
वक़्त गुजरता गया,। लम्हा बीतता गया, याद आती रहीं और जाती रही , सासे रुकती भी थी, सासे चलती भी थीं। एक उम्मीद थी । के शायद तू कभी लौट आए इस दिल में , और गुलशन ए बहार आ जाए मेरे वीराने में आरज़ू ए दिल
SAHIL KUMAR
दिल कि आरज़ूऐ तो युही गुमनाम गलियों में खो जाती है जिंदगी में हर दिन एक नई निराशा भी मिल जाती है बस एक यार ही मिल जाता तो दिल को भी राहत मिल ही जाती शायद ©SAHIL KUMAR दिल -ए- आरज़ू
ANIL KUMAR
फेहरिस्त-ए-आरज़ू में तुझे आखरी लिखा मतलब की तेरे बाद कोई आरज़ू नहीं ©ANIL KUMAR फेहरिस्त-ए-आरज़ू
Raone
ना दबी रह गयीं कोई आरज़ू-ए-इश्क़ की मिल गयीं हैं सब हमें तेरे शोहरतें प्यार की जिस्म ना छूऊं तेरा पर छू लिया हूँ मन तेरा रूह तक थीं जो हसरतें रूह की मोहब्बतें बन गयीं रूह को चाहिए और क्या रूह से रूह जो मिल गयी बदल सकी ना जो कभी वो आशिकी हमें है मिल गयी ना जी सका है उम्रभर कोई हसरतों को पाल कर ज़रूरतें ख़तम ना हो सकीं पर ख़तम ज़िन्दग़ी हो गयी खो दिये हम वक़्त सभी एक बेहतरीन वक़्त की तलाश में ओर वक़्त मिला भी तो, लो ज़िन्दग़ी सिमट गयी..... राone@ज़िन्दग़ी ©Raone आरज़ू-ए-इश्क़ की
Manjeet Sharma 'Meera'
उसके लिए क़रीब है मंज़िल वफ़ाओं की जो आरज़ू-ए-इश्क़ में लुत्फ़-ए-विसाल ले। #आरज़ू-ए-इश्क़ उसके लिए क़रीब है मंज़िल वफ़ाओं की जो आरज़ू-ए-इश्क़ में लुत्फ़-ए-विसाल ले।
Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय"
मंज़िल-ए-आरज़ू ~°~°~°~°~°~°~°~ आशुफ़्ता हवा का झोका नहीं... अफ़सुर्दा ख़्वाब सा रोता नहीं... आतिश के बीज बोता नहीं.... अफ़सोस का बोझ ढ़ोता नहीं... अक़्सर अर्जमन्द अदीब होकर भी, ख़ुद को अदब-सा दिखाता है... ये अदा उस आक़िल की है "हृदय" जो कभी मंज़िल-ए-आरज़ू खोता नहीं... -रेखा "मंजुलाहृदय" * ©Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय" #मंज़िल_ए_आरज़ू #मंज़िल #MirzapurSeason2 #august 25th, 2020 #उर्दू #urdu_shayari #मंजुलाहृदय #Rekhasharma
Kirti Mishra
तिनको से खिलते ही रहे आशियाने में हम, आया भी और गया भी जमाना बहार का... इक दिल्लगी थी तेरे आने की, पर तेरे आहट से रूबरू हो ना सके हम आया भी और गया भी मुहब्बत पैग़ाम का.. #आरज़ू##
ankit saraswat
आरज़ू बस़ एक आरज़ू बाकी है, जब हो आँख बन्द मेरी, लवों पर हंसी हाथों में तिरंगा हो, इस माटी का कर्ज कोई चुका नहीं सकता, जब निकले साँस तन से, मेरा तन ये माटी मे सन रहा हो।। #अंकित सारस्वत# #आरज़ू
affu
आरज़ू पिंजरे में बंद पंछी उड़ने की आरजू कैसे करता खुद भूल गया था जो उसे उडना भी है आता कैद से परे जो है पंछी उडता रेहता है आरजू पूरी वही है पाता जाने कीतनो ने आरजू दफनाऐ है कैद मे और उड रहे है कुच आसमान की सैर मे छुप गए नीयमो के आड़ मे घुठ रहे बंदीश के वेहम में कैद है आरज़ू दिलोके कोने मे खामोशी के जोर में ज़माने के शोर मे गुमसुम है आरज़ू कैद है आज भी मेहफिल के डर से #आरज़ू