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Stories related to सर्पदंश लक्षणे

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vasundhara pandey

"परित्यक्त " परित्यक्त होना एक बूँद हलाहल के घूँट सा, दाह्य हृदय सिथिल होता अनाथ सा! अवसर या अपराध सब अज्ञात हो, रह बचा बस ख़ामोशी का अल

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"परित्यक्त "

 
चीखता जब ह्रदय, प्रयास ये अभी अपूर्ण है!
  "परित्यक्त "

परित्यक्त होना एक बूँद हलाहल के घूँट सा, 
दाह्य हृदय सिथिल होता अनाथ सा! 
अवसर या अपराध सब अज्ञात हो,  
रह बचा बस ख़ामोशी का अल

Shree

तुम्हारी शतरंज और मेरी कविताएं ********************* धुल देती है शतरंज की बिसात बिछ गई जो कविताएं! मन की बातें बन काले घरों में छुपे दबे मेर #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #musingtime #a_journey_of_thoughts #euphonichymns #unboundeddesires #ehplainbg1138

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तुम्हारी शतरंज 
और मेरी कविताएं तुम्हारी शतरंज और मेरी कविताएं
*********************
धुल देती है शतरंज की बिसात बिछ गई जो कविताएं!
मन की बातें बन काले घरों में छुपे दबे मेर

रजनीश "स्वच्छंद"

हाय जवानी।। हूँ यौवन के दहलीज़ खड़ा, अपने ही कर्मों से खीझ पड़ा। रवानी रहीं वो खूं की नहीं, कहानी रही वो जुनूँ की नहीं। #Poetry #kavita

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हाय जवानी।।

हूँ यौवन के दहलीज़ खड़ा,
अपने ही कर्मों से खीझ पड़ा।

रवानी रहीं वो खूं की नहीं,
कहानी रही वो जुनूँ की नहीं।

बुद्धि भी रही अब तीक्ष्ण नहीं,
आवेशित है पर है उद्विग्न नहीं।

मेहबूब भी है महबूबा भी रही,
अवसादपूरीत लघुता ही रही।

सर्पदंश सी वाणी थी मुखरित,
थी भावविहीन स्वालम्ब रहित।

जननी की छाती भी कोस रही,
क्यूँ सर्प आस्तीन में पोस रही।

दिशा नहीं बस उहापोह है,
छली व स्वार्थी प्रेम मोह है।

दिकभ्रमित खड़ा तलवार लिए,
युद्धक, पर बिन सरोकार लिए।

आंदोलित तो है पर दिशाहीन,
भाव भी कुंठित और प्रिशाहीन।

उद्गार तो है पर उद्वेलन तो नहीं,
मिलन तो है पर सम्मेलन तो नहीं।

बोलो ये देश भी किसकी पुकार करे,
सोये पूतों के बल क्या हुंकार भरे।

गर्जन क्या जो कानों तक भी ना पहुंचे,
निजमन में हो पर कोई कभी भी ना बूझे।

देखो हैं टूट रहे अब अश्रुबाँध,
जाएं न कहीं मर्यादा ये लांघ।

कब माता देती है शाप किसे,
सुनाए भी तो अपना संताप किसे।

निरन्तर समयचक्र बलवान बड़ा है,
तू जो यौवन को लिए मसान खड़ा है।

कुछ जुगत लगा और विचार कर,
कुंठित तंद्रा की मंद तू धार कर।

कुछ कर ऐसा की माता भी गर्व करे।
पुनर्जीवित तुझको करने को गर्भ धरे।

©रजनीश "स्वछंद" हाय जवानी।।

हूँ यौवन के दहलीज़ खड़ा,
अपने ही कर्मों से खीझ पड़ा।

रवानी रहीं वो खूं की नहीं,
कहानी रही वो जुनूँ की नहीं।

Roopanjali singh parmar

#emptiness रात्रि क्या है? तुम्हें क्या लगता है, क्या केवल सूर्य का अस्त होने ही रात्रि है..? नहीं! किसी चूर-चूर हो चुके स्वप्न के लिए रात #Night #Dark #Roop #रूपकीबातें #roopkibaatein #roopanjalisingh #Roopanjalisinghparmar

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रात्रि क्या है?

तुम्हें क्या लगता है, क्या केवल सूर्य का अस्त होने ही रात्रि है..?
नहीं!
किसी चूर-चूर हो चुके स्वप्न के लिए रात्रि वरदान नहीं, मन के लिए विश्राम नहीं, अपितु अभिशाप की भांति है।
जो निगल जाती है, भीतर कहीं प्रकाश को, और फैला देती है समुची दिशा में घोर अंधकार।

रात्रि केवल समय का एक चक्र नहीं अपितु भयभीत करने वाला वह चक्र है जो हृदय की गति को बढ़ा देता है। 
एक ऐसा अंधकार जो ना केवल बाहरी अपितु अन्तर्मन को भी सर्पदंश की भांति विषैले अंधकार से भर देता है।

जिनका हृदय खण्ड-खण्ड में विभाजित हो, जिनकी मनःस्थिति सही ना हो, उनके लिए यह केवल रात्रि नहीं होती। एक ऐसा भारी समय होता है, जिसका प्रत्येक क्षण घड़ी के कांटे के समान चुभता है, जो अनेक प्रयत्नों के बाद भी केवल कष्टकारी ही प्रतीत होता है।


रात्रि केवल रात्रि नहीं होती, अपितु ना काट सकने वाली उस धातु के समान है, जो तीव्र ज्वाला में रक्त की भाँति लाल होकर केवल और केवल सुख का दहन करती है।
एक ऐसी अग्नि के समान है जो असीमित तीव्रता से शरीर का विनाश करती है।

रात्रि मित्र नहीं शत्रु है। यह केवल वार करती है उस स्थान पर और उस समय जब आप असहाय होते है। जब आप दुःखी होते हैं।

यह केवल अपने अंधकार को बढ़ाती है आपके कष्ट को बढ़ाने के लिए, और एक समय ऐसा भी आता है, जब आप खुद के घुटने टेक देते हैं, और हार को स्वीकार कर उन स्मृतियों में पहुँच जाते हैं जो केवल आपको पीड़ा पहुँचाती हैं।
#रूपकीबातें
#roopanjalisingh #emptiness 
रात्रि क्या है?

तुम्हें क्या लगता है, क्या केवल सूर्य का अस्त होने ही रात्रि है..?
नहीं!
किसी चूर-चूर हो चुके स्वप्न के लिए रात

N S Yadav GoldMine

#SunSet {Bolo Ji Radhey Radhey} अग्नि पुराण अति प्राचीन पुराण है। शास्त्रीय व विषयगत दृष्टि से यह पुराण बहुत ही महत्वपूर्ण पुराण है। अग्नि प #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
अग्नि पुराण अति प्राचीन पुराण है। शास्त्रीय व विषयगत दृष्टि से यह पुराण बहुत ही महत्वपूर्ण पुराण है। अग्नि पुराण में 12 हजार श्लोक, 383 अध्याय उपलब्ध हैं। स्वयं भगवान अग्नि ने महर्षि वशिष्ठ जी को यह पुराण सुनाया था। इसलिये इस पुराण का नाम अग्नि पुराण प्रसिद्ध है। विषयगत एवं लोकोपयोगी अनेकों विद्याओं का समावेश अग्नि पुराण में है।

आग्नेये हि पुराणेस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः     (अग्नि पुराण)

पद्म पुराण में पुराणों को भगवान बिष्णु का मूर्त रूप बताया गया है। उनके विभिन्न अंग ही पुराण कहे गये हैं। इस दष्ष्टि से अग्नि पुराण को श्री हरि का बाँया चरण कहा गया है।

अग्नि पुराण में अनेकों विद्याओं का समन्वय है जिसके अन्तर्गत दीक्षा विधि, सन्ध्या पूजन विधि, भगवान कष्ष्ण के वंश का वर्णन, प्राण-प्रतिष्ठा विधि, वास्तु पूजा विधि, सम्वत् सरों के नाम, सष्ष्टि वर्णन, अभिषेक विधि, देवालय निर्माण फल, दीपदान व्रत, तिथि व्रत, वार व्रत, दिवस व्रत, मास व्रत, दान महात्म्य, राजधर्म, विविध स्वप्न, शकुन-अपशकुन, स्त्री-पुरूष के शुभाशुभ लक्षण, उत्पात शान्त विधि, रत्न परीक्षा, लिंग का लक्षण, नागों का लक्षण, सर्पदंश की चिकित्सा, गया यात्रा विधि, श्राद्ध कल्प, तत्व दीक्षा, देवता स्थापन विधि, मन्वन्तरों का परिगणन, बलि वैश्वदेव, ग्रह यंत्र, त्र्लोक्य मोहनमंत्र, स्वर्ग-नरक वर्णन, सिद्धि मंत्र, व्याकरण, छन्द शास्त्र, काव्य लक्षण, नाट्यशास्त्र, अलंकार, शब्दकोष, योगांग, भगवद्गीता, रामायण, रूद्र शान्ति, रस, मत्स्य, कूर्म अवतारों की बहुत सी कथायें और विद्याओं से परिपूर्ण इस पुराण का भारतीय संस्कष्त साहित्य में बहुत बड़ा महत्व है।

अग्नि पुराण का फल:-अग्नि पुराण को साक्षात् अग्नि देवता ने अपने मुख से कहा हे। इस पुराण के श्रवण करने से मनुष्य अनेकों विद्याओं का स्वामी बन जाता है। जो ब्रह्मस्वरूप अग्नि पुराण का श्रवण करते हैं, उन्हें भूत-प्रेत, पिशाच आदि का भय नहीं सताता। इस पुराण के श्रवण करने से ब्राह्मण ब्रह्मवेत्ता, क्षत्रिय राजसत्ता का स्वामी, वैश्य धन का स्वामी, शूद्र निरोगी हो जाता है तथा उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं जिस घर में अग्नि पुराण की पुस्तक भी हो, वहाँ विघ्न बाधा, अनर्थ, अपशकुन, चोरी आदि का बिल्कुल भी भय नहीं रहता। इसलिये अग्नि पुराण की कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिये।

अग्नि पुराण करवाने का मुहुर्त:-अग्नि पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। अग्नि पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन अग्नि पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।

अग्नि पुराण करने के नियम:-अग्नि पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। अग्नि पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।

©N S Yadav GoldMine #SunSet {Bolo Ji Radhey Radhey}
अग्नि पुराण अति प्राचीन पुराण है। शास्त्रीय व विषयगत दृष्टि से यह पुराण बहुत ही महत्वपूर्ण पुराण है। अग्नि प
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