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Stories related to नाज़नीं

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Rudra Pratap Singh

ग़ौरतलब*: गौर करने योग्य नाज़नीं*: रूपवान स्त्री

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ग़ौरतलब है, वो इतना नाज़नीं सा है. 
की उससे इश्क़ होना, बेशक लाज़मी सा है.
                            -रूद्र प्रताप सिंह




(Plz refer to caption for meaning) ग़ौरतलब*: गौर करने योग्य
नाज़नीं*: रूपवान स्त्री

رخسار سییدا

हाजत नहीं बनाओ की ऐ नाज़नीं तुझे ज़ेवर है सादगी तिरे रुख़्सार के लिए #Shayari

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avialfaaz

तुम बेहतर से ज्यादा बेहतरीन हो तुम्हें मालूम नहीं तुम कितनी हसीन हो तुम सा नहीं इस कायनात में दूसरा कोई तुम खुदा की बनाई बेशकीमती नाज़नीं #शायरी #Youme

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तुम बेहतर से ज्यादा बेहतरीन हो 
तुम्हें मालूम नहीं तुम कितनी हसीन हो 
तुम सा नहीं इस कायनात में दूसरा कोई 
तुम खुदा की बनाई बेशकीमती नाज़नीं हो 



✍अविनाश दुबे

©_avialfaaz_mr_ad_ तुम बेहतर से ज्यादा बेहतरीन हो 
तुम्हें मालूम नहीं तुम कितनी हसीन हो 
तुम सा नहीं इस कायनात में दूसरा कोई 
तुम खुदा की बनाई बेशकीमती नाज़नीं

Abeer Saifi

इक साक़ी से गुफ़्तगू...... 💔 नाज़नीं - महबूबा तक़ाज़ा - demand रहबर - रास्ता दिखलाने वाला अहल-ए-नज़र - होशियार लोग मैकदा - शराबखाना ता-बा #cinemagraph

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बहुत   पी  चुके   आप   घर  जाइए
कसम   नाज़नीं   की   सँवर  जाइए

हुआ  वो  न   हासिल  बला  से  मेरी 
ज़रूरी    नहीं    है    बिखर   जाइए 

तक़ाज़ा   सफ़र  का  मुसाफ़िर  यही
जो  रहबर  ही  ना  हो  उतर  जाइए 

समां   को  बनाते   हो  तुम  ग़मज़दा 
ये  कहते   हैं  अहल-ए-नज़र  जाइए 

कि   खुलता   नहीं  रात  भर  मैकदा
जो   रुकना  हो  ता-बा-सहर  जाइए 

समय  है  अभी कुछ भी बिगड़ा नहीं 
मुहौबत   से   अब  तो  मुकर  जाइए इक साक़ी से गुफ़्तगू...... 💔

नाज़नीं - महबूबा
तक़ाज़ा - demand
रहबर - रास्ता दिखलाने वाला 
अहल-ए-नज़र - होशियार लोग 
मैकदा - शराबखाना
ता-बा

Abeer Saifi

इक साक़ी से गुफ़्तगू...... 💔 नाज़नीं - महबूबा तक़ाज़ा - demand रहबर - रास्ता दिखलाने वाला अहल-ए-नज़र - होशियार लोग मैकदा - शराबखाना ता-बा #cinemagraph

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बहुत   पी  चुके   आप   घर  जाइए
कसम   नाज़नीं   की   सँवर  जाइए

हुआ  वो  न   हासिल  बला  से  मेरी 
ज़रूरी    नहीं    है    बिखर   जाइए 

तक़ाज़ा   सफ़र  का  मुसाफ़िर  यही
जो  रहबर  ही  ना  हो  उतर  जाइए 

समां   को  बनाते   हो  तुम  ग़मज़दा 
ये  कहते   हैं  अहल-ए-नज़र  जाइए 

कि   खुलता   नहीं  रात  भर  मैकदा
जो   रुकना  हो  ता-बा-सहर  जाइए 

समय  है  अभी कुछ भी बिगड़ा नहीं 
मुहौबत   से   अब  तो  मुकर  जाइए इक साक़ी से गुफ़्तगू...... 💔

नाज़नीं - महबूबा
तक़ाज़ा - demand
रहबर - रास्ता दिखलाने वाला 
अहल-ए-नज़र - होशियार लोग 
मैकदा - शराबखाना
ता-बा

shaukat ali shaukat

दुल्हन सुहाग रात है घूंघट उठाने से पहले करो ये वादा कि मुझको कभी न छोड़ोगो अगर मैं भुल से कर दूँ कोई ख़ता तो भी नाराज़ हो के कभी मुझसे मु

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दुल्हन 
सुहाग   रात   है   घूंघट   उठाने   से   पहले 
करो ये वादा कि मुझको कभी न छोड़ोगो
अगर मैं  भुल से  कर दूँ  कोई ख़ता तो भी
 नाराज़ हो  के  कभी  मुझसे मुंह न मोड़ोगे 





दूल्हा 
ये  मेरा  वादा  है  तुमसे   ऐ  नाज़नीं   मेरी 
मैं जीते जी नहीं तुमको कभी भी छोड़ूंगा 
करो यक़ीन मेरी जान मैं ख़ुदा की क़सम 
नाराज़ हो  के कभी  तुझसे मुंह न मोड़ूंगा 
शौकत अली 'शौकत' दुल्हन 
सुहाग रात है घूंघट उठाने से पहले 
करो ये वादा कि मुझको कभी न छोड़ोगो 
अगर मैं भुल से कर दूँ कोई ख़ता तो भी
नाराज़ हो के कभी मुझसे मु

Shabdkarita (शब्दकारीता)

इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके जिस ने ये पहनाई है उस दिलदार के सदके उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान लब-ओ-र

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इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके


इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके
जिस ने ये पहनाई है उस दिलदार के सदके

उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान लब-ओ-रुक़सार के सदके
हर जलवा था इक शोला हुस्न-ए-यार के सदके

जवानी माँगती ये हसीं झंकार बरसों से
तमन्ना बुन रही थी धड़कनों के तार बरसों से
छुप-छुप के आने वाले तेरे प्यार के सदके
इस रेशमी पाज़ेब की ...

जवानी सो रही थी हुस्न की रंगीं पनाहों में
चुरा लाये हम उन के नाज़नीं जलवे निगाहों में
क़िस्मत से जो हुआ है उस दीदार के सदके
उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान ...

नज़र लहरा रही थी ज़ीस्त पे मस्ती सी छाई है
दुबारा देखने की शौक़ ने हल्चल मचाई है
दिल को जो लग गया है उस अज़ार के सदके
इस रेशमी पाज़ेब की ... इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके


इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके
जिस ने ये पहनाई है उस दिलदार के सदके

उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान लब-ओ-र

Technocrat Sanam

ये आशिकी अपने बस की बात नहीं बहुत तुतलाना पड़ता है यार मनाने के लिए 😅🤗😉😂 For your ease of eyes 👀 👇 खुशामद खोर.. मोती किनारे पर नहीं मिला

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मोती किनारे पर नहीं मिला करते साहब
गहराई तक जाना होता है ख़ज़ाने के लिए

छेद बाँसुरी में सात कर लो या सात हजार 
फूँक तो मारनी ही पड़ेगी बजाने के लिए

जब जी चाहता है भीग लेते हैं हम आँसुओं से 
अर्से से पानी हाथ लगाया नहीं नहाने के लिए

ये आशिकी हम जैसे सयानों के बस की नहीं 
बहुत तुतलाना पड़ता है यार मनाने के लिए

जानते हैं मर्ज़ और बढ़ेगा हाथ लगाने से मगर 
उँगलियाँ आप ही उठ जाती हैं खुजाने के लिए

वो इस क़दर अकेले नाज़नीं है सारे महकमें में 
खुशामद खोर तैयार रहते हैं पलकें उठाने के लिए

ना तो मौसम सर्द है, ना ही कोई और मर्ज़ है 
'सनम' यूँ धूप में बैठा है ज़ख्म सुखाने के लिए
©technocrat_sanam 



 ये आशिकी अपने बस की बात नहीं 
बहुत तुतलाना पड़ता है यार मनाने के लिए 
😅🤗😉😂
For your ease of eyes 👀 👇
खुशामद खोर.. 

मोती किनारे पर नहीं मिला

Ajay Prakash

ग़ज़ल.... ख़्वाब जलते गए शौक सारा गया! हिज्र हम पर बहुत ही करारा गया! बे-ज़बाँ हो गए ये अलग बात है! मुद्दतों पर तुम्हीं को पुकारा गया!

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ग़ज़ल.... 

ख़्वाब जलते गए शौक सारा गया! 
हिज्र हम पर बहुत ही करारा गया! 

बे-ज़बाँ हो गए ये अलग बात है! 
मुद्दतों पर तुम्हीं को पुकारा गया! 

वस्ल में वस्ल भी यूँ गुज़ारा नहीं! 
हिज्र में हिज्र जैसे गुज़ारा गया!

और भी थी हसीं दिलनशीं नाज़नीं! 
क्यों भला तुम प ही दिल हमारा गया! 

इश्क़ है कह के यां इश्क़ के नाम पर! 
दिल से खेला गया दिल को मारा गया! 

एक पल को तिरी याद आई थी कल! 
घंटो शीशे में ख़ुदको निहारा गया! 

इश्क़ में है मज़ा इश्क़ है इक सज़ा! 
इश्क़ जिसने किया वो बिचारा गया! 

ले दे के जिस्म था बच गया मुझ में सो!
तन जला के सुख़न को निखारा गया! 

तुम को,मुझ को,मुहब्बत नचाती रही! 
कुछ खोया हमने और , कुछ तुम्हारा गया! 

हिज्र में कुछ मयस्सर बचा ही नहीं! 
बाद तेरे हरिक शय को हारा गया!

इक तुम्हारी कमी खल रही थी हमें!
चाँद कल शब ज़मीं पर उतारा गया! ग़ज़ल.... 

ख़्वाब जलते गए शौक सारा गया! 
हिज्र हम पर बहुत ही करारा गया! 

बे-ज़बाँ हो गए ये अलग बात है! 
मुद्दतों पर तुम्हीं को पुकारा गया!
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