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कविताओं का संगम
बार-बार किसी को समझाने से बेहतर है। कि एक बार खुद को समझा लीजिए।। ©कविताओं का संगम #Chhuan#खुद को समझाइए#बेहतर है#
VAGHELA YOGESH
।। उम्मीदें मत रखिए ।। किसी के वापस आने की,वो आएंगी,वो मेरा साथ देंगी,मेरे साथ रहेंगी जिंदगी भर ऐसी किसी भी बातो की उम्मीद और जज़्बात मत रखिए । ©YESHKHU13 जिंदगी को समझाइए वो नही आयेगा #childlabour
जिंदगी को समझाइए वो नही आयेगा #childlabour #ज़िन्दगी
read moremanoj kumar jha"Manu"
हे वनस्पते, (वृक्षों) तुम हमें आयु, बल, यश, तेज, उत्तम सन्तान, पशु, धन, वेद, प्रज्ञा और मेधा दे। काठक संहिता (१०/४) पर्यावरण को सुरक्षित रखें।
पर्यावरण को सुरक्षित रखें।
read moreपथिक
मुझमें बसने आए थे वो जो घर मेरा उजाड़ चले #उजाड़ #बसना #nojoto
INDRAJEET KUMAR,
फ़ूलो सा ये महके हरा भरा संसार हो रहे सदा ये धरती 🌍 पर ऐसा कुदरत का ये उपहार हो ................. विश्व पर्यावरण दिवस #WorldEnvironmentDay आओ पर्यावरण को बचाये
#WorldEnvironmentDay आओ पर्यावरण को बचाये #विचार
read moreRohit Kahar
मनुष्य और भी आनंद में होगा जब दुनिया में शुद्ध हवा पानी होगा। शुद्ध हवा पानी जब होगा जब धरती पर वृक्षारोपण होगा वृक्षारोपण भी जब होगा जब मनुष्य जागरूक होगा तब मनुष्य और भी आनंद में होगा गांव गांव जाकर ये ऐलान हमें करना होगा, बढ़ती जनसंख्या पर लगाम हमें लगाना होगा, इसके लिए हर मनुष्य को जागरूक होना होगा, कल के लिए हमको अभी जल बचाना होगा। तब कल मनुष्य और भी आनंद में होगा। ,जब मनुष्य जागरूक होगा तब मनुष्य और भी आनंद में होगा हमें पर्यावरण को बचाना होगा ।
हमें पर्यावरण को बचाना होगा । #विचार
read moreHasanand Chhatwani
फिर नहीं बसते वो दिल जो एक बार उजड़ जातें है , कब्रें जितनी भी सज़ा लो ,पर कोई ज़िंदा नहीं होता #दिल #बसना #ऊजडना
Sunita Bishnolia
पर्यावरण (दोहे) हरी-भरी धरती रहे,नीला हो आकाश, स्वच्छ बहे सरिता सभी,स्वच्छ सूर्य प्रकाश।। पेड़ों को मत काटिए,करें धरा श्रृंगार। माटी को ये बांधते,ये जीवन आधार।। सुनीता बिश्नोलिया©® शुद्ध हवा में साँस लें,कोई न काटे पेड़। आस-पास भी साफ़ हो, सभी बचाएँ पेड़।। धरती माता ने दिए,हमें अतुल भण्डार, स्वच्छ पर्यावरण रखें, मानें हम उपकार।। कानन-नग-नदियाँ सभी,धरती के श्रृंगार। दोहन इनका कम करें,मानें सब उपहार।। साफ-स्वच्छ गर नीर हो,नहीं करें गर व्यर्थ। कोख न सूखे मात की, जल से रहें समर्थ। धूल-धुआँ गुब्बार ही,दिखते चारों ओर। दूषित-पर्यावरण हुआ,चले न कोई जोर।। कान फाड़ते ढोल हैं,फूहड़ बजते गीत, हद से ज्यादा शोर है,खोये मधुरिम गीत। हरी-भरी खुशहाली के,धरती भूली गीत। मैली सी वसुधा हुई,भूली सुर संगीत।। पर्यावरण स्वच्छ राखिये,ये जीवन आधार, खुद से करते प्यार हम,कीजे इससे प्यार। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर #पर्यावरण #स्वच्छ #पर्यावरण