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Jyoti
mujhe ye baat samjh nhi aa rhi log film ko buycutt kar rhe kyon karina ne kuch bol diya isliye bolne ko to bahut log bahut kuch bol jaate par unka koi buycutt nhi karta ye samaz bhed chaal hai jis disha main sab jaa rhe ussi disha main nikal padhte hai movie na dekho sirial na dekho inka news dekho bhadkau, inke tik tok dekho aur kya bole ©Jyoti भड़काऊ समाज #Journey
Ek villain
देश के 5 राज्यों में फिलहाल विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेजी है चुनाव तो बस्ती में नेताओं की जुबान खूब से चल रही है अक्सर उन्हें वक्त मर्यादा की रेखा लाकर हते स्पीच यानी भड़काऊ या नफरत ही भाषण की श्रेणी में आ जाते हैं जिससे सामाजिक सौंदर्य बिगड़ता है इस बीच सियासी गलियारों तक सीमित नहीं है कोई अन्य मंत्री ऐसा भाषण खूब दिया जा रहे हैं बीते दिन हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में शामिल हुए कुछ लोगों के पहली धारा धर्म जाति और भाषा आदि आधारों पर विभिन्न समुदाय के बीच शत्रुता और दुर्व्यवहार चलाने को दंडनीय बताती है दूसरी धारा किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर ठेस पहुंचाना या उसे अपमानित करने को डंडे यह कहती है विचित्र बात यह है कि पिछले कई दशकों से एक समुदाय विशेष के नेता खुलकर दूसरे समुदाय के देवी-देवताओं प्रतीकों और ग्रंथ आदि का सम्मान करते रहे इंटरनेट मीडिया पर इस के आसन के उदाहरण एक समुदाय विशेष के नेता खुलेआम धमकी देते हैं कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटा ली जाए तो वह क्या क्या कर सकते हैं दुख की बात यह है कि ऐसे बयानों पर प्रशासन ने न्यायपालिका कम ध्यान नहीं देते और देते भी है तो उन्हें अनसुना कर अपेक्षा कर देते हैं इससे हॉट स्पीच की स्थान मिलता है तभी ऐसा बयान बार-बार दोहरा जाते हैं ©Ek villain #भड़काऊ बयानों पर ध्यान दें सरकार #friends
Subhasish Pradhan
कोई अपना बचपन हार गया, माँ बाप अपनी बच्चे हार गए।। वो शहर बिहार है जो तड़प रहा है, बीमारी से लड़ते हुए रोज रोज मर रहा है।। बिहार में बच्चों के लिए कहर बने चमकी बुखार ने अबतक 135 मासूमों की जान ले ली. एक्यूट एंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (दिमागी) बुखार से मुजफ्फरपुर में अ
पूर्वार्थ
मिसिंग ट्रायल सिंड्रोम ©purvarth मिसिंग टाइल सिंड्रोम एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जिसमें हमारा सारा ध्यान जीवन की उस कमी की तरफ रहता है जिसे हम नहीं पा सके हैं | और यहीं बात ह
Writer1
विकलांगता ******************** अखिलेश्वर कि हम भी देन हैं, ना करो हमसे गिरना आखिर हम भी इंसान हैं, विकलांग हुए तो क्या हुआ सोच तो विकसित है, हर क्षेत्रों में नाम हमारा ही गौरवंत हैं। शेष अनुशीर्षक में पढ़ें 👇👇👇👇👇👇👇 इतिहास गवाह है हमारी गाथाओं का, क्या क्या करूं वर्णन अपनी कविता में, निकोलस जेम्स वुजिकिक एक प्रेरक वक्ता है, जो टेट्रा-अमेलिया सिंड्रोम के
ankush gogiyane
क्या करना हमें किसी बाहर वाले की बुराइयां जान कर... क्यों ना थोड़ी देर बस काम की बात पे आते है। चलो कुछ अच्छा दिखाते है। full piece in caption👇 चलो कुछ अच्छा दिखाते है... फिर से वहीं भाषण जो शायद वो नेता कई बरसों से दे रहा है। क्यों ना थोड़ी देर के लिए उसे चुप कराते है। चलो कुछ अच्छ
Sahil Bhardwaj
हिन्दू और मुसलमान के नाम पे इंसानियत जाने क्यूं बांटी जा रही है मजहब कौम के नाम पे मंदिर-मस्जिदें क्यूं जलाई जा रही है.. शांति प्रदर्शनों के नाम पे आवाम में हिंसा क्यूं भड़काई जा रही है जनता के अहित के नाम पे राजनीतिकरण क्यूं की जा रही है.. CAA और NRC के नाम पे दो मजहबों की बीच दरार क्यूं डाली जा रही है जनता के लिए किसी ने ना पत्थर खाया, न किसी ने गोलियां खाईं फ़िर सहानुभूति के नाम पे लोगों को भड़काने की साज़िशें क्यूं रची जा रही है.. देशभक्ति और देशद्रोह के नाम पे हिन्दुस्तान के अमन में चिंगारी क्यूं लगाई जा रही है राष्ट्रविरोधी तत्वों के नाम पे गोलियां बरसाने की अफवाहें क्यूं फैलाई जा रही है.. राष्ट्रवाद के नाम पे भड़काऊ भाषण क्यूं दी जा रही है कौम के लोगों की फ़िक्र के नाम पे दूसरे कौम के लोगों को गोली मारने की सलाह क्यूं दी जा रही है.. नागरिकता के नाम पे लोगों के बीच झूठी भ्रम क्यूं फैलाई जा रही है बीस करोड़ इन्सानों को भला देश से बाहर निकाला जा सकता है क्या चुनावी फायदों के नाम पे फ़िर खौफ की बयार क्यूं बहाई जा रही है.. #Delhi_Riots हिन्दू और मुसलमान के नाम पे इंसानियत जाने क्यूं बांटी जा रही है मजहब कौम के नाम पे मंदिर-मस्जिदें क्यूं जलाई जा रही है..
ashutosh anjan
कोरोना का क़हर (लेख) कैप्शन 👇 में पढ़े। कोरोना वायरस, जिसकी शुरुआत पिछले साल चीन के वुहान प्रांत के सीफ़ूड और पोल्ट्री बाजार मे हुई है, आज दुनिया भर के लिए एक गंभीर मामला बन गयी ह
Upendra Dubey
क्या आपका बच्चा भी घंटों मोबाइल में बिजी रहता है, जानिए आंखों से लेकर दिमाग तक होने वाले नुकसान। सिंगरौली छोटी उम्र के बच्चों के फोन के इस्तेमाल के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। मात्र डेढ़ साल का बच्चा 5 घंटे तक मोबाइल में खोया रहता है। माता-पिता को बच्चे के फोन ज्ञान पर गर्व होता है। लेकिन बच्चे के रोने या किसी तरह की ज़िद करने पर बहलाने के लिए फोन देना उसे इस नई लत का ग़ुलाम बनाने का पहला क़दम हैं आंकड़ों के मुताबिक 1 से 5 साल की उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल की बढ़ोतरी देखी गई है ये स्क्रीन को आंखों के करीब ले जाते हैं और जिससे आंखों को नुकसान पहुंचता है। आंखें सीधे प्रभावित होने से बच्चों को जल्दी चश्मा लगने, आंखों में जलन और सूखापन, थकान जैसी दिक्कतेे हो रही हैं स्मार्टफोन चलाने के दौरान पलकें कम झपकाते हैं। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं। माता-पिता ध्यान दें कि स्क्रीन का सामना आधा घंटे से अधिक न हो। कम उम्र में स्मार्टफोन की लत की वजह बच्चे सामाजिक तौर पर विकसित नहीं हो पाते हैं। बाहर खेलने न जाने की वजह से उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता। मनोविशेषज्ञों के पास ऐसे केस भी आते हैं कि बच्चे पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर की तरह ही हरकतें करने लगते हैं इस कारण उनके दिमागी विकास में बाधा पहुंचती है बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल अधिकतर गेम्स खेलने के लिए करते हैं। वे भावनात्मक रूप से कमज़ोर होते जाते हैं ऐसे में हिंसक गेम्स बच्चों में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं बच्चे अक्सर फोन में गेम खेलते या कार्टून देखते हुए खाना खाते हैं। इसलिए वे जरूरत से अधिक या कम भोजन करते हैं अधिक समय तक ऐसा करने से उनमें मोटापे की आशंका बढ़ जाती है।फोन के अधिक इस्तेमाल से वे बाहरी दुनिया से संपर्क करने में कतराते हैं। जब उनकी यह आदत बदलने की कोशिश की जाती है तो वो चिड़चिड़े, आक्रामक और कुंठाग्रस्त हो जाते हैं। माता-पिता एक राय रखें। यदि मोबाइल या किसी और चीज़ के लिए मां ने मना किया है तो पिता भी मना करें। वरना बच्चे यह जान जाते हैं कि किससे परमिशन मिल सकती है इंटरनेट पर कुछ अच्छा और ज्ञानवर्धक है तो उसे दिखाने के लिए समय तय निर्धारित करें और साथ बैठकर देखें। स्मार्ट टीवी का इस्तेमाल कर सकते हैं इससे आंखों और स्क्रीन के बीच दूरी भी बनी रहेगी। ©Upendra Dubey क्या आपका बच्चा भी घंटों मोबाइल में बिजी रहता है, जानिए आंखों से लेकर दिमाग तक होने वाले नुकसान। सिंगरौली छोटी उम्र के बच्चों के फोन के इस
khamosh khat
हम सभी स्वस्थ आैर स्वच्छ रहना चाहते हैं। अपने शरीर की बाहरी सफाई का ध्यान तो हम रख लेते हैं लेकिन शरीर के भीतर की सफाई का काम हमारी किडनी (गुर्दा) संभालता है। यह हमारे शरीर की विषाक्तता आैर अनावश्यक कचरे को बाहर निकालकर हमें स्वस्थ रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि हमारे शरीर में दो किडनी होती हैं लेकिन केवल एक किडनी ही सारी जिंदगी सभी महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने में अकेले ही सक्षम होती है। हाल के वर्षों में डायबिटीज आैर हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों की संख्या में तेजी हो रही वृद्धि भविष्य में किडनी रोगियों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि को दर्शाता है। यही वजह है कि दुनिया भर के सैकड़ों लोगों जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, को प्रभावित करने वाले किडनी रोग के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से हर साल मार्च के दूसरे बृहस्पतिवार को वल्र्ड किडनी डे मनाया जाता है। इस साल 10 मार्च को वल्र्ड किडनी डे मनाया जाएगा है। यह लोगों में किडनी की बीमारियों की समझ, उनकी रोकथाम और उनका जल्द उपचार शुरू करने के लिए जागरूकता उत्पन्न करता है। प्रतिवर्ष यह किसी थीम पर आधारित होता है आैर इस वर्ष की थीम है ‘बच्चों में किडनी रोग : बचाव के लिए जल्द प्रतिक्रिया करें! किडनी डिजीज बच्चों को कई रूपों में प्रभावित करती है जिसमें इलाज किये जाने वाले विकारों के साथ ही जीवन को खतरे में डालने वाले लंबे समय वाले परिणाम शामिल हैं। बच्चों में होने वाले मुख्य किडनी डिजीज- नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम यह एक आम किडनी की बीमारी है। पेशाब में प्रोटीन का जाना, रक्त में प्रोटीन की मात्रा में कमी, कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर और शरीर में सूजन इस बीमारी के लक्षण हैं। किडनी के इस रोग की वजह से किसी भी उम्र में शरीर में सूजन हो सकती है, परन्तु मुख्यत: यह रोग बच्चों में देखा जाता है। उचित उपचार से रोग पर नियंत्रण होना और बाद में पुन: सूजन दिखाई देना, यह सिलसिला सालों तक चलते रहना यह नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की विशेषता है। लम्बे समय तक बार-बार सूजन होने की वजह से यह रोग मरीज और उसके पारिवारिक सदस्यों के लिए एक चिन्ताजनक रोग है। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में किडनी के छन्नी जैसे छेद बड़े हो जाने के कारण अतिरिक्त पानी और उत्सर्जी पदार्थों के साथ-साथ शरीर के लिए आवश्यक प्रोटीन भी पेशाब के साथ निकल जाता है, जिससे शरीर में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है और शरीर में सूजन आने लगती है। श्वेतकणों में लिम्फोसाइट्स के कार्य की खामी के कारण यह रोग होता है ऐसी मान्यता है। इस बीमारी के 90 प्रतिशत मरीज बच्चे होते हैं जिनमें नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का कोई निश्चित कारण नहीं मिल पाता है। इसे प्राथमिक या इडीओपैथिक नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम भी कहते हैं। वीयूआर कई बार बड़े बच्चे भी बिस्तर खराब कर देते हैं। ऐसे में उन्हें वेसिको यूरेटेरिक रिफ्लक्स या वीयूआर की आशंका हो सकती है। यह वह रोग है, जिसमें (वाइल यूरिनेटिंग) यूरिन वापस किडनी में आ जाती है। वीयूआर में शिशु बार-बार मूत्र संक्रमण (यूटीआई) का शिकार होता है आैर इसके कारण उसे बुखार आता है। आमतौर पर फिजिशियन बुखार कम करने के लिए एंटीबायोटिक देते हैं लेकिन वीयूआर धीरे-धीरे आर्गन को डैमेज करता रहता है। वीयूआर नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों की आम समस्या है, लेकिन इससे बड़े बच्चे और वयस्क भी प्रभावित हो सकते हैं। सौ नवजात शिशुओं में से एक या दो शिशु वीयूआर से पीडि़त होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि वीयूआर से प्रभावित बच्चे के भाई या बहन में से 32 प्रतिशत में यह समस्या देखी गई है। वीयूआर एक आनुवांशिक रोग है। अगर शुरुआती दौर में वीयूआर का इलाज किया जाए तो आसानी से ठीक किया जा सकता है, लेकिन बाद की स्टेज में यह किडनी फेलियर आैर ट्रांसप्लांट का मुख्य कारण बनता है। यूटीआई बच्चों में यूटीआई को डायग्नोज करना कठिन होता है। उपचार न कराया जाए तो उम्र बढ़ने के साथ लक्षण भी बढ़ने लगते है जैसे नींद में बिस्तर गीला करना, उच्च रक्तचाप, यूरिन में प्रोटीन आना, किडनी फेलियर। लड़कियों में इसके होने की आशंका लड़कों से दुगनी होती है। अगर यूटीआई का उपचार नहीं कराया जाए तो किडनी के ऊतकों को स्थायी नुकसान पहुंचता है, जिसे रिफ्लक्स नेफ्रोपैथी कहा जाता है। जब यूरिन का बहाव उल्टा होता है तो किडनी पर सामान्य से अधिक दबाव पड़ता है। अगर किडनी संक्रमित हो जाती है तो समय के साथ उतकों के क्षतिग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है। इससे उच्च रक्तचाप और किडनी फेलियर होने का खतरा अधिक हो जाता है। क्रोनिक किडनी डिजीज यह शिशु में बर्थ डिफेक्ट (शिशु केवल एक किडनी के साथ या किडनी की असामान्य संरचना के साथ पैदा हो), आनुवांशिक रोग (जैसे पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज), इंफेक्शन, नेफ्रोटिक सिंड्रोम (ऐसे लक्षणों का समूह जिसमें यूरिन में प्रोटीन आैर पानी का खत्म होना आैर शरीर में नमक प्रतिधारणा जो यह किडनी डैमेज का संकेत दे), सिस्टेमिक डिजीज (जिसमें किडनी के साथ ही शरीर के कई अंग शामिल हों जैसे फेफेड़े), यूरिन ब्लॉकेज आदि शामिल है। जन्म से लेकर चार वर्ष तक बर्थ डिफेक्ट आैर आनुवांशिक रोग किडनी फेलियर का कारण बनते हैं। पांच से चौदह वर्ष की उम्र तक किडनी फेलियर का मुख्य कारण आनुवांशिक रोग, नेफ्रोटिक सिंड्रोम आैर सिस्टेमिक डिजीज बनता है। किडनी रोग के लक्षण चेहरे में सूजन -भूख में कमी मितली, उल्टी -उच्च रक्तचाप -पेशाब संबंधित शिकायतें, झांग आना -रक्त अल्पता, कमजोरी -पीठ के निचले हिस्से में दर्द -शरीर में दर्द, खुजली, और पैरों में ऐंठन – किडनी की बीमारियों की सामान्य शिकायतें हैं। मंद विकास, छोटा कद और पैर की हडिड्यों का झुकना आदि, किडनी की खराबी वाले बच्चों में आम तौर पर देखा जाता है। डॉक्टर सुदीप सचदेव | नारायाणा सुपेर्स्पेसियालिटी हॉस्पिटल गुरुग्रम हम सभी स्वस्थ आैर स्वच्छ रहना चाहते हैं। अपने शरीर की बाहरी सफाई का ध्यान तो हम रख लेते हैं लेकिन शरीर के भीतर की सफाई का काम हमारी किडनी (