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अज्ञात
अंग अंग है अभ्र सी आभा कंठ सुराहीदार.. चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा मोह लियो संसार.. श्यामल श्यामल केश तुम्हारे पवन रही लिपटाय जैसे जनम जनम की प्यासी बिरहन राग लगाय मस्त मस्त दो नयनकमल उनमे कजरे की धार तरस रहे हैं कब मिल जाये एक झलक दीदार.. चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा मोह लियो संसार.. रंग गुलाबी लिये अधर जब तनक भरें मुस्कान सम्मोहन की कला दिखाकर घायल करे जहान जिस पथ को बढ़ जाओ तुम हो लाखों दिल कुर्बान बाम गाल में इसीलिए तिल नज़र करे न वार.. चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा मोह लियो संसार.. बिन सोलह श्रृंगार तुम्हारा कंचन बदन कमाल नखशिख ऐसी शोभा तेरी नज़र पड़े वो निहाल एक तुम्हीं हो रुप की रानी बाकी सब कंगाल जिसको नज़र उठाकर देखो जीवन जाये हार.. चंद्रमुखी क्या रूप तुम्हारा मोह लियो संसार.. ©अज्ञात #गीत
Shashi Bhushan Mishra
रास्ता सुनसान जैसा, युद्ध के मैदान जैसा, वेदना करती कवायद, वक़्त इम्तिहान जैसा, कामना की चाह में दिल, जल रहा लोबान जैसा, ख़्वाहिशों की मटरगश्ती, बदलते ईमान जैसा, करूँ निगरानी कृषक सा, खेत में मचान जैसा, मिले पलभर का सुकूँ भी, गाँव के दालान जैसा, मीत ऐसा मिला 'गुंजन', गीत के उन्वान जैसा, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra #गीत के उन्वान जैसा#
हिमांशु Kulshreshtha
White अल्फाजों में रूह मेरी, कविता में है जीवन मेरा मेरी दुनियां गीत मेरे , गजलों में है साँस मेरी अनंत प्रेम के भाव झलकते दुख सुख के छलकते भाव लिखने बैठूं जो, लिख नहीं पाता जब तक मन के रिसते नहीं घाव ©हिमांशु Kulshreshtha मेरे गीत...
मेरे गीत... #शायरी
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