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Sunil Kumar Maurya Bekhud

Mukesh Poonia

#mahashivaratri सारा जग है #प्रभु तेरी #शरण में सर झुकाते हैं #शिव तेरे चरण में हम बनें #भोले की चरणों की धूल आओ शिव जी पर चढ़ायें #श्रद्धा #फूल #महाशिवरात्रि #हार्दिक #शुभकामनाएं #hunarbaaz

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Jai sawaliya seth

*मरकर भी मिल जाए,* *शरण तेरी 🛕तो गम नहीं* *तुझे पाने कै खातिर सॉवरे * *हजारों जन्म लूटा देंगे..!!* मेरे सांवल सॉ वीरा 🫵 जाद #Bhakti

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Vs. Gaming

*मरकर भी मिल जाए,* *शरण तेरी 🛕तो गम नहीं* *तुझे पाने कै खातिर सॉवरे * *हजारों जन्म लूटा देंगे..!!* मेरे सांवल सॉ वीरा 🫵 जाद #Bhakti

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विजात छन्द :- हमारा श्याम खाटू है । हृदय मे देख टैटू है ।। हरे वो पीर सब मेरी । लगाये मत कभी देरी ।। #कविता

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विजात छन्द :-

हमारा श्याम खाटू है । हृदय मे देख टैटू है ।।
हरे वो पीर सब मेरी । लगाये मत कभी देरी ।।

भला सबका वही करता । सुनो विश्वास जग करता ।।
बुलावे पे नही जाना । करे जो दिल चले जाना ।।

हुआ हूँ आज दीवाना । उसी को आज सब माना ।।
करूँ क्यूँ चाहतें आधा । जपूँगा नाम नित राधा ।।

वही मुरली मनोहर है । उसी की सब धरोहर है ।।
बनूँ मैं दास मोहन का । यही अरदास जीवन का ।।

मुझे अपने शरण रखना । बुराई से बचा रखना ।।
न कलयुग की पड़े छाया । शरण तेरी चला आया ।।

सुनी तेरी कथा सारी , बहुत महिमा रही न्यारी ।।
तुम्हारे द्वार जब आऊँ, दरश हर बार मैं पाऊँ ।।

नजर जाये जिधर भी वह, रहे उजियार मधुवन वह ।।
करूँ क्यों बन्द मैं फेरी , कृपा होगी कभी तेरी ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विजात छन्द :-


हमारा श्याम खाटू है । हृदय मे देख टैटू है ।।

हरे वो पीर सब मेरी । लगाये मत कभी देरी ।।

Bharat Bhushan pathak

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Shivkumar

#navratri #navratrispecial #नवरात्रि #navratri2024 #ब्रह्माण्ड में चारों तरफ़ सिर्फ #अंधकार था व्याप्त । चौथे रुप में माता ने तब किया #मां #भक्ति #निर्माण #जीवों #महामाई

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी :- राधे राधे जप कर , बुलाते हैं गिरधर , दौड़े-दौड़े चले आते , मन से पुकारिये ।। राधा में ही श्याम दिखे , श्याम को ही राधा लखे #कविता

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मनहरण घनाक्षरी :-

राधे राधे जप कर , बुलाते हैं गिरधर ,
दौड़े-दौड़े चले आते , मन से पुकारिये ।।

राधा में ही श्याम दिखे , श्याम को ही राधा लखे ,
दोनो की ये प्रीति भली , कभी न बिसारिये ।।

रूप  ये बदल आये , देख निधिवन आये ,
मिले कभी समय तो , उधर निहारिये ।।

कट जाये जीवन यूँ , राधे-राधे जपते यूँ ,
शरण बिहारी के यूँ , जीवन गुजारिये ।।१


पटरी की रेल है ये , जीवन का खेल है ये ,
तेरा मेरा मेल है ये ,  प्रीति ये बढ़ाइये ।

चाँद जैसी सूरत है , अजन्ता की मूरत है ,
सुन चुके आप हैं तो , घुंघट उठाइये ।।

नहीं हूर नूर देखो , पीछे हैं लंगूर देखो ,
जैसे भी हूँ अब मिली , जीवन गुजारिये ।।

आई हूँ तू ब्याह कर , नहीं ज्यादा चाह कर ,
मुझे और नखरे न , आप तो दिखाइये ।।२

२९/०२/२०२४        -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :-

राधे राधे जप कर , बुलाते हैं गिरधर ,
दौड़े-दौड़े चले आते , मन से पुकारिये ।।

राधा में ही श्याम दिखे , श्याम को ही राधा लखे

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- नम आँखों से बेटियाँ , करती बस ये चाह । मातु-पिता की अब यहाँ , कौन करे परवाह ।। कौन करे परवाह , हमारी डोली उठते । ले जाती मैं स #कविता

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कुण्डलिया :-

नम आँखों से बेटियाँ , करती बस ये चाह ।
मातु-पिता की अब यहाँ , कौन करे परवाह ।।
कौन करे परवाह , हमारी डोली उठते ।
ले जाती मैं साथ , साथ जो मेरे चलते ।।
अब क्या मेरे हाथ , मुझे ले जाते हमदम ।
देख पिता को आज , हुई मेरी आँखें नम ।।

देने को तैयार हूँ , सभी *परीक्षा* आज ।
जैसे चाहो साँवरे , रोकों मेरे काज ।।
रोको मेरे काज , शरण तेरी मैं पकडूँ ।
यही हृदय की चाह ,  प्रीति में तेरी अकडूँ ।।
आओगे तुम पास , भेद फिर मेरे लेने ।
रहूँ सदा तैयार , परीक्षा जो हैं देने ।।

उतनी तुमने साँस दी , इतनी है अब शेष ।
और नहीं कुछ आस है , फिर क्यों भदलूँ भेष ।।
फिर क्यों बदलू भेष , *परीक्षा* देने आया ।
बनकर बैठा शिष्य , हृदय क्यों है घबराया ।।
पाया हूँ जो ज्ञान , कहूँ कम कैसे इतनी ।
कपट न पाया सीख , रही बस देखो उतनी ।।

०१/०३/२०२४      -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-

नम आँखों से बेटियाँ , करती बस ये चाह ।
मातु-पिता की अब यहाँ , कौन करे परवाह ।।
कौन करे परवाह , हमारी डोली उठते ।
ले जाती मैं स

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु #कविता

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प्रदीप छन्द

दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में ।
वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।।
घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं ।
शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।।

मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में ।
सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।।
तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में ।
आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।।

जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में ।
उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।।
सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में ।
मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।।

जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के ।
दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।।
जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के ।
यही सीढ़ियां ऊपर जाएं ,  देखो नित संसार के ।।

२८/०२/२०२४       -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द

दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में ।
वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।।
घर में बैठे मातु-पिता ही , सु
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