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Aksh Saxena
Ashraf Fani【असर】
Renu Singhal
Manchali >>
Manchli thoughts ©Manchali >> तू वो आईना है जिसे देख मैं सवरती रहती हूं, तुझे याद कर के मैं हर रोज निखरती रहती हूं, तुझे औरों से बेहतर जाने की कोशिश में, मैं दिन रात तुझे
Nitu Singh जज़्बातदिलके
मुसाफिर थी सफ़र करती रही, कभी गिरती तो कभी संभलती रही। तन्हा रातें थी दिल में आहें थी, मंजिल की तलाश में उदास निगाहें थी। खुद को समेटती रही फिर से बिखरती रही, जिंदगी की हसरत में पल पल मरती रही। ज़ख्म दिल के छुपाकर मुस्कुराती रही, मगर दर्द से दिल का सदा रिश्ता रही। बेबसियों पर जब जब दिल चीखती रही, दर्द बन शायरी कागजों पर निखरती रही। ©Nitu Singh(जज़्बातदिलके) मुसाफिर थी सफ़र करती रही, कभी गिरती तो कभी संभलती रही। तन्हा रातें थी दिल में आहें थी, मंजिल की तलाश में उदास निगाहें थी। खुद को समेटती रह
||स्वयं लेखन||
एक छोटा सा पक्षी जब उड़ना सीखता है तब उसके मन में भी बहुत सारा डर होता है कि कहीं वो उड़ न पाया और गिर गया तो, लेकिन वो फिर भी उड़ने की कोशिश करता है और कई बार वो गिर भी जाता है मगर फिर भी वो हर बार उड़ने की उम्मीद लिए फिर से अपने पंखों को पसारता है और एक नई उड़ान भरता है, उसकी ये उम्मीद और विश्वास एक दिन उसकी जीत बनकर निखरती है और वो आसमान की ऊंचाइयों में हवाओं से बातें करता है। ©Gunjan Rajput एक छोटा सा पक्षी जब उड़ना सीखता है तब उसके मन में भी बहुत सारा डर होता है कि कहीं वो उड़ न पाया और गिर गया तो, लेकिन वो फिर भी उड़ने की कोश
Mili Saha
चारू चंद्र की चंचल किरणें चारु चंँद्र की चंचल किरणें, स्वर्ण सी आभा निश्छल किरणें, शनै:-शनै: स्नेह स्पर्श कर वसुंधरा को, विस्तृत स्वरूप दर्शाती हैं ये स्वच्छंद किरणें। रात की चुनर से छन कर आती, तम में निखरती उज्जवल सी लगती, चहुँओर बिखेरकर स्वर्ण सी नर्म चांँदनी, कल-कल बहती सरिता के जल को है छूती। चंँद्र संग इठलाती और बलखाती, कभी शर्माती हुई वो मंद-मंद मुस्काती, स्याह अंँधेरी रात में देखकर चंँद्र की झलक, प्रीत रंग में रंग कर फूलों सी खिल-खिल जाती। कभी तरु कभी कुसुम का श्रृंगार, कभी बन ये रत्नगर्भा के गले का हार, पवन की ताल पर नृत्य मुद्रा में सुसज्जित, अपना संपूर्ण सौंदर्य यह प्रकृति में बिखेर देती। कभी ले जाए यह यादों के पार, कभी खोले है किसी के दिल का द्वार, देख चंचल किरणों की ये मनोरम चंचलता, चंद्र भी स्वप्न तरी में विराजित होकर करे विहार। लेखक के कलम की कहानी, कवियों के दिल से निकलती वाणी, चारु चंँद्र की चंचल किरणों की आगोश में, कभी कोई नज़्म तो कभी ग़ज़ल बनती सुहानी। किरणों से सजा धरा का कण-कण, देखकर ही आनंद विभोर हो जाता मन, अद्वितीय छटा झलकती चंद्र संग किरणों की, जिसे देखने को किसके व्याकुल नहीं होते नयन। ©Mili Saha चारू चंद्र की चंचल किरणें चारु चंँद्र की चंचल किरणें, स्वर्ण सी आभा निश्छल किरणें, शनै:-शनै: स्नेह स्पर्श कर वसुंधरा को,
Harshita Dawar