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Pavan Dhongade
का रडायच प्रेयसीसाठी खूप दुःख सहन केले तिच्यासाठी, जर कष्ट केले असते माझ्या भारतमाते साठी तर सारी दुनिया रडली असती माझ्यासाठी !!!! Pavan Dhongade का रडायच प्रेयसीसाठी Pavan Dhongade
का रडायच प्रेयसीसाठी Pavan Dhongade #Shayari
read moreSangam Ki Sargam
रजनीगन्धा कुसुम के सदृश सुगन्ध से उसकी देह भरी मुग्ध करती मृगनयनी चितवन से अपनी स्नेह भरी। #प्रेयसी
Suraj Ubale
प्रेयसी कशी वर्णावी कांति तव जणू आकाशी चंद्र नवा चंद्रकांति तुझिया पाहुनी मनी शितले झरा वहावा मंजुळ वाणी तुझिया सखये कोकिळेने जव स्वरसाज गावा वाणी तुझिया ऐकुनी सत्वर तणावात ही विरंगुळा व्हावा हास्य तुझे ते खुलिनी येता हर्ष सागरी डुबूनी जावा तुझ्या सोबती घरोघरी मग सणासुदीचा श्रावण यावा नितळ निरागस नयन लाघवी मोगरा अंगणी फुलून जावा दृष्टी तव पडता मजवर मनमयूर मग प्रफुल्लित व्हावा म्हणूनी सये, तुझ्या आठवणींचा साज मजवरी निरंतर तो खुलत रहावा _सुरज उबाळे #प्रेयसी
Rahul Joshi
विचार असा केला की तिचा विचार करायचा नाही, विचार करून झाल्यावर कळलं विचारात तर "ती" होतीच ना.... प्रेयसी...
प्रेयसी...
read moreअलौकिक "आलोक"
💗प्रेयसी💗 तू जो बने राधिका तो मैं भी श्याम बन जाऊं। तेरे प्रेम के लिये जिऊ तेरे प्रेम में मर जाऊं। तू जो बने राधिका तो मैं भी श्याम बन जाऊं। तू पुकारे तो मैं जग छोड़ दौड़ा चला आऊँ। तू जो याद करें तो मैं खुदको भी भूल जाऊँ। तू जो बने राधिका तो मैं भी श्याम बन जाऊं। तू जो उदास हो तो मैं तेरी मुस्कान बन जाऊं तू जो रूठे तो मैं प्रेम का बादल बन जाऊं। तू जो बने राधिका तो मैं भी श्याम बन जाऊं। तू जो हँस दे तो मैं गुलाब बन खिल जाऊं। तू जो माँगे तो मैं जनम-जनम तेरा हो जाऊं। तू जो बने राधिका तो मैं श्याम बन जाऊं। तेरे लिए गाऊँ तेरे लिए ही छेड़ूँ तान मुरली की। तेरी लटो को सुलझाऊँ तेरी ज़ुल्फो में खो जाऊं। मैं किसी और का न रहूं सिर्फ तेरा हो जाऊं। तू जो बने राधिका तो मैं भी श्याम बन जाऊं। "आलोक" प्रेयसी
प्रेयसी #कविता
read morePraveen Patidar
सोची हुई प्रेयसी इस शरद चांदनी के आगोश में , तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो। बात नैनो से करते है दोनों यहाँ , चुप तुम भी हो, मै भी हु, तुम भी हो। धड़कने कह रही तुम तो मेरी सुनो, जो है दिल कह रहा बस उसीको चुनो । दिल की ख्वाहिश मै मेरे बस एक यहाँ , तुम ही हो , तुम ही हो , तुम ही हो। इस शरद चांदनी के आगोश में, तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो। तेरी आँखों का काजल भी कुछ कह रहा, दर्द विरह के दिल ये क्यो सह रहा। इस दर्द की तड़पती आवाज में, तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो। इस शरद चांदनी के आगोश में, तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो। तेरे नैना है जैसे कि सागर कोई , अमृत से भरा जैसे गागर कोई। इस अमृत की तृष्णा के प्यासे यहां, तुम भी हो ,मै भी हु, तुम भी हो। इस शरद चांदनी के आगोश में , तुम भी हो, मै भी हु, तुम भी हो। सोच कर के तुझे मैने वर्णन किया, जो हुआ ही नही है उसे जी लिया। मेरी कविता का इक - इक कतरा यहां , तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो। लेखक- प्रवीण मगर स्वप्न प्रेयसी
स्वप्न प्रेयसी
read moreyogesh atmaram ambawale
आईने सांगितलेले काम नाकारायला नेहमीच तयार असतो. प्रेयसीच्या प्रेमासाठी काहीही करायला तयार राहतो. आईच्या मायेला दाद द्यायला त्याला वेळ नसतो, प्रेयसीच्या प्रेमासाठी चंद्र तारे तोडायला ही तयार राहतो. असे ही आहेत काही... #प्रेमासाठी #आईसाठी #प्रेयसी #काहीही #yqtaai #मराठीलेखणी #कुणासाठीकोणी आईने सांगितलेले काम नाकारायला तो नेहमीच तयार अ
असे ही आहेत काही... #प्रेमासाठी #आईसाठी #प्रेयसी #काहीही #yqtaai #मराठीलेखणी #कुणासाठीकोणी आईने सांगितलेले काम नाकारायला तो नेहमीच तयार अ
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