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Mili Saha
// हास्य कविता // पत्नी से पीड़ित एक मासूम पति की, है यह कहानी, मैं बेचारा हूँ शांत सरोवर और मेरी धर्मपत्नी सूनामी, कुछ बोलूँ तो दिक्कत गर न बोलूंँ उसमें भी दिक्कत, ज़ुबान भी मेरी घबरा जाती आखिर कैसी ये आफ़त, एक दिन तो हद हो गई, खुद से मैं कर रहा था बातें, कर दिया बुरा हाल मेरा, शब्दों से मारकर लात घुसे, इतने से भी न मानी, बोली जो बुदबुदा रहे थे बोलो, अब मैं बेचारा क्या करता करता गया उसको फॉलो, आसमान से गिरे खजूर में अटके मुहावरा कमाल है, मुझ जैसे पतियों के लिए, जिसका हुआ बुरा हाल है, करनी है गुलामी जिसको वो बांँध लो सर पर सेहरा, पर निभानी गर तुमको शादी तो हो जाना गूंगा बहरा, पत्नी का कहा सब सत्य वचन, पति बोले तो झूठा, बेलन दिखाकर डराती ऐसे अब पीटा कि तब पीटा, गढ़ फतह करना है पत्नी जी की तारीफ़ करना भी, अंगारे सिर पर जो रखना चाहे, कर लेना शादी जी, सत्ता घर में पत्नी की चलेगी गांठ बांँध लेना ये बात, अक्ल के घोड़े मत दौड़ाओ, कुछ नहीं तुम्हारे हाथ, भूलकर भी उसके मायके वालों की करना न बुराई, एक से बढ़कर एक स्वादिष्ट तानों से होती है कुटाई, ये बस हंँसी मज़ाक, पति पत्नी का रिश्ता निराला, विवाह है पवित्र बंधन एक रिश्ता नोकझोंक वाला, जीवन रूपी गाड़ी के पहिए दोनों,चलते एक साथ, एक दूजे के बिना अधूरे ये, अधूरी जीवन की बात। ©Mili Saha हास्य कविता पत्नी से पीड़ित एक मासूम पति की, है यह कहानी, मैं बेचारा हूँ शांत सरोवर और मेरी धर्मपत्नी सूनामी, कुछ बोलूँ तो दिक्कत गर न बोलू
अनिता कुमावत
आ धरती धोरा री वीर - वीरांगणा री शान पृथ्वी राज , राणा प्रताप, राणा सांगा जस्या वीरां री आ धरती पन्नाधाय, हाडा राणी, राणी पद्मिनी रे बलिदान सूं रंगी आ धरती मीरां सी दासी, करमा सी भगतन बस अठे रेत रां धोरा सूं लेर झीलां री नगरी अठे आपणां पराया रो राखां माण मेहमान नवाजी देखण खातर पधारो म्हारे राजस्थान ...!!! वीर सपूतां रे बलिदान री धरती म्हारे राजस्थान री होवे साका रणभूमि माय ज्वाला जौहर स्वाभिमान री गढ़, किलां , महल, हवेलियाँ सुणावे गाथा सांस्क
एक इबादत
अदम्य शौर्य,साहस,पराक्रम से भरे भारतीय सेना को सेना दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं...🇮🇳🇮🇳🇮🇳🔥🔥🙏🙏 इस देश में भला उनसे अधिक खुशकिस्मत वाला और कौन होगा जो एक माँ (जन्मदात्री) की कोख से जन्म लेकर एक माँ (भारत माता) के आंचल की रक्षा करते हुए
एक इबादत
दरिंदे हैवानियत की हर हद को पार कर रहे है शिथिल पडे़ प्रशासन और न्यायपालिक पर आये दिन अत्याचार कर रहे है, बलात्कार यह बेटी का नही ,संविधान का कर डाला है दरिंदगी यह मासूम संग नही भारत माँ के साथ कर डाला है, न्याय रहीशों को मिलता है रहीशों के साथ यह व्यवहार नही होता न्याय राजनीतिज्ञों को मिलता है उनके लोगो के संग यह कांड नही होता....!! #माफ करना कई शब्द ऐसे प्रयोग किये है आज इसमें जो मर्यादा को लांघती है, किन्तु यह भी कम है आज आक्रोश को लिखने खातिर, जिस प्रकार आये दिन बहनो
singer narendra charan jaisalmer
आयतें नहीं पढ़ी मैंने बस तुमको पढ़ लिया, दिल की हर चौपाई में बस तुमको गढ़ लिया.! यूँ तो नगीनें कम नहीं थे गुलिस्तां में साहब, हमनें दिल-ए-तख्त में कोहिनूर जढ़ लिया..!! आयतें नहीं पढ़ी मैंने बस तुमको पढ़ लिया, दिल की हर चौपाई में बस तुमको गढ़ लिया...! ! !
Shree
कुछ लफ्ज़ जादुई से गढ़ दूं कि आ तेरा हर दर्द दूर कर दूं प्रार्थना मेरी लोरी सी गा सुना दूं माथे पर स्नेहास्पर्श तुम्हें अम्मा नाम दुलार में जो बाबा ने रखा.. नई मंजिलें तुम्हें बुलाती हैं सुंदर स्वस्थ तन, मन तुम्हारा हो ये दीदी बस इतना प्रेम में हर बार कान्हा को कहती हैं, अवतरण दिवस आज तुम्हारा, भेजते प्रेमिल आशीर्वचन हम सब का, युग-युग जिओ, पल-पल खुश रहो खिलखिलाती हुई हंसती-हंसाती जल्द आओ! सफलता और खुशियां, खूब प्यार दुलार तुमको भेज रही!!😍 Happy Birthday Dear!❣️ 🎂🥳🎉🎊🎊🥳🥳🥳🥳 🎊🎊🎊🎉🎉🎉🎉🎉🎊 🎊🎊🎉🎉🎉🎉🎊🎊🎊 कुछ लफ्ज़ जादुई से गढ़ दूं कि आ तेरा हर दर्द दूर कर दूं
Shree
छोटी सी बात कल शाम तुम आए। सब रंग लाए, अपने संग स्वप्न अनगिनत लाए, खुली आंखों से सब दिखाया, उसकी दोनों हथेलियां एक साथ जकड़ कर दूसरे हाथ गुलाल उसके गाल
Shree
सुनो, तुम रंग न पूछो, तुम रूप न देखो, मिट के बनी ये देह मिट्टी की। कंकड़ ना खोजों, तोलो नमी जो है बसी, गढ़ डालो देव तुम मिट्टी में। तुम जात ना पूछो, तुम उपज ना पूछो, देश के प्राण बसते मिट्टी में। स्वभाव समझो, अंतर्मन में भाव भरी, अनन्य अपेक्षाएं हैं मिट्टी की। मिट्टी ✨ सुनो, तुम रंग न पूछो, तुम रूप न देखो, मिट के बनी ये देह मिट्टी की। कंकड़ ना खोजों,
ashish gupta
गुलाब सब कलियां सूख गए सब गुलाब सुख गई सब माली ऊब गई सब माली भी ऊब गए फिर भी ना जाने क्यों यह बीज बेताब है फिर भी ना जाने क्यों यह जमीन बेताब है कि कोई किसान आकर हमारा दिया बियाह करो और हम मिलकर के अरुणय हरा भरा करे इसके सिवा हम अनपढ़ कर भी क्या सकते है इसके सिवा हम अनपढ़ गढ़ भी क्या सकते है ©ashish gupta #गुलाब सब कलियां सूख गए सब गुलाब सुख गई सब माली ऊब गई सब माली भी ऊब गए फिर भी ना जाने क्यों यह बीज बेताब है फिर भी ना जाने क्यों यह जम