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Shankar kamble
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। आविः सन्निहितं गुहाचरं नाम महत् पदमत्रैतत् समर्पितम्। एजत् प्राणन्निमिषच्च यदेतज्जानथ सदस-द्वरेण्यं परं विज्ञानाद्यद्वरिष्ठं प्रजानाम् ॥ स्वयं आविर्भूत परम तत्त्व यहाँ सन्निहित है, यह हृद्गुहा में विचरने वाला महान् पद है, इसमें ही यह सब समर्पित है जो गतिमान् है, प्राणवान् है तथा जो दृष्टिमान् है। यह जो यही महान् पद है, उसको ही 'सत्' तथा 'असत्' जानो, जो परम वरेण्य है, महत्तम एवं 'सर्वोच्च' (वरिष्ठ) है, तथा जो प्राणियों (प्रजाओं) के ज्ञान से परे है। Manifested, it is here set close within, moving in the secret heart, this is the mighty foundation and into it is consigned all that moves and breathes and sees. This that is that great foundation here, know, as the Is and Is not, the supremely desirable, greatest and the Most High, beyond the knowledge of creatures. ( मुंडकोपानिषद २.२.१ ) #मुंडकोपनिषद #उपनिषद #ज्ञान_गंगा #ज्ञान #वेदत्व #वेदांत #mundakopanishad #upnishads
वेदों की दिशा
।। ॐ ।। वि॒द्यां चावि॑द्यां च॒ यस्तद्वेदो॒भय॑ꣳ स॒ह। अवि॑द्यया मृ॒त्युं ती॒र्त्वा वि॒द्यया॒मृत॑मश्नुते ॥१४ ॥ पद पाठ वि॒द्याम्। च॒। अवि॑द्याम्। च॒। यः। तत्। वेद॑। उ॒भय॑म्। स॒ह ॥ अवि॑द्यया। मृ॒त्युम्। ती॒र्त्वा। वि॒द्यया॑। अ॒मृत॑म्। अ॒श्नु॒ते॒ ॥ (यः) जो विद्वान् (विद्याम्) पूर्वोक्त विद्या (च) और उसके सम्बन्धी साधन-उपसाधनों (अविद्याम्) पूर्व कही अविद्या (च) और इसके उपयोगी साधनसमूह को और (तत्) उस ध्यानगम्य मर्म (उभयम्) इन दोनों को (सह) साथ ही (वेद) जानता है, वह (अविद्यया) शरीरादि जड़ पदार्थ समूह से किये पुरुषार्थ से (मृत्युम्) मरणदुःख के भय को (तीर्त्वा) उल्लङ्घ कर (विद्यया) आत्मा और शुद्ध अन्तःकरण के संयोग में जो धर्म उससे उत्पन्न हुए यथार्थ दर्शनरूप विद्या से (अमृतम्) नाशरहित अपने स्वरूप वा परमात्मा को (अश्नुते) प्राप्त होता है ॥ (Ie) the scholar (vidyam) aforesaid lore (f) and its related resources (avidyam) formerly said avidya (f) and its useful means and (t) that meditative heart (ubhyam), both of them (co) together He (the Vedas) knows that (avidya) from the Purushartha of the Shariadi root matter group (death), the fear of deathliness (tirtha), (the student) in the combination of the soul and the pure conscience, the religion arising out of the real philosophy (Amritam) is perishable in its form and God attains (Ashunate). ईशोपनिषद मंत्र १४ #ईशोपनिषद #वेद #उपनिषद #यजुर्वेद #वेदांत #विद्या #अविद्या
Kirti shakya
क्यों गए इस तरह तन्हा छोड़कर मेरे पास भी तो दिल था प्यार से मना कर देते मुझे कोई और मिल गया है मैं खुद ही तुम्हारी दुनिया से ही दूर चली जाती। वेबफाइ
वेबफाइ
read moreJayshree Hatagale
"वेदनांकूर" घायाळ वेदनांनी का अंतरंग होते? सल कोणती मनातील उमलून पुन्हा येते? जन्म उभा हा, कष्टतो देह सारा रक्ताळल्या हांतांवर फुटे वेदनेला धुमारा लपवूनी कधी दुःख न् लपते एक वेदना उराशी सदा बिलगते अंधार जीवनी, जरी हा वसतो एक काजवा उमेदीचा तरीही दिसतो वेदनेशीही, नाते जवळचे असते एक वेदना पुन्हा अंकुरण्या तरसते #वेदनांकुर
अजय
अब जो तुझे तेरे नए चाहने बाले बड़े प्यारे जो लगते हैं ना शायद तुझे उनकी भूख की खबर नही है..... ©अजय #वेखबर
Somraj Koushal
बेकरार दिल लिए, कहिये कहा जायेगे। हर तरफ है आप,हम जाए तो कहा जायेगे। वे खुदी करके देते हैं वक्त की दुहाई। वेकरार इतना करोगे तो मर हम ही जायेगे। ©Somraj Koushal वेकरारी #booklover
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