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अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
अविरल अनुभूति
हम आधा ही देखते है, आधा सुनते है, आधा समझते है और आधा ही जीते है, हमारी दृष्टि सदा अपूर्ण ही रहती है। पूर्ण मिदम🥰🙏🪷 ©अविरल अनुभूति दृष्टि
kapil
"भाई स्वैग तो कबीर दास जी का था जब तक जिये संस्थागत धर्मों की धुनाई की और जब मरे तो इनके शरीर के लिए वही धार्मिक आपस में लड़ रहे थे।" "कबीरा खड़ा बाज़ार में मांगे सब की ख़ैर ना भक्तन से दोस्ती ना चमचन से बैर" #कठोर_Liberal ©kapil #दृष्टि
Biikrmjet Sing
सर्ब निधान जा की दृष्टि माहे।। पूर्ब लिखे का लहना पाहे।। अर्थ- सम्पूर्ण नाम की विधि जिससे मन का बन्धनों से छुटकारा होना है! जिस गुरमुख की दृष्टि में परमात्मा डालता है यानी जिस मनरुह की दृष्टि खोलता है परमात्मा, ओर यह नाम=परमेश्वर=प्रकाश को ध्याने की दृष्टि यानी वह गुर व योगिक कला नेत्रों से निराकार को देखने व निहारने की वही लेता है जिसकी पहले जन्मो में इतनी भगती व गोबिंद मिलन की तड़प हो, वही लहना यानी लेने वाला यानी ऐसे नाम को लेने वाला परमात्मा से गुरमुखों द्वारा बनता है।। ©Biikrmjet Sing #दृष्टि