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Geeta Sharma pranay
हाँ हुई हैं मुझसे कुछ गलतियाँ, नारी स्वभाव से जो लाचार हूँ, | जीवन में सब कुछ, समय की कुछ देरी से ही प्राप्त किया ,,| असुरक्षित की भावनाओं का समावेश होना मुझमें लाज़मी ही हैं | मेरे जीवन में प्रकाश से अंधकार कब आ जाता हैं , कुछ पता नहीं | बहुत मजबूत बनाना पड़ता हैं अपने ह्रदय को| एक उम्र के बाद मिली राहत भी अग्नि के समान प्रतीत होती हैं | बहुत मुश्किल से मन के स्थिर होने से पहले ही, कुछ गलत कदम उठ जाते हैं | कहीं न कहीं असुरक्षित की भावना का विचार मात्र से पहले ही भय घर कर जाता हैं | कुछ पाकर, उसे फिर खो देना, यहीं तो मुझे अक्सर मिला हैं| हाँ, हुई हैं मुझसे कुछ गलतियाँ, नारी स्वभाव से जो लाचार हूँ | गीता शर्मा "प्रणय" #नारी # असुरक्षित
Sudha Bhardwaj
असुरक्षित ************ जन्में या नही नन्ही कोपल कहीं सोचना सभी हृदयाघात पल सभी के लिए गूंजती चींखें स्तब्ध सी धरा गोद में ले सो गई बिलखी परी सुधा भारद्वाज "निराकृति" विकासनगर उत्तराखंड #असुरक्षित
SHAYAR (RK)
पूरे संसार में… अकेला भारत ही ऐसा देश है जहां मिट्टी की औरत को कपड़े पहनाकर देवी कहा जाता है और जिंदा औरत को निर्वस्त्र कर घुमाया जाता है। (मणिपुर) बहुत ही दुखद देश में महिला असुरक्षित 😔 शायर RK…✍️ . ©SHAYAR (RK) #मणिपुर भारत देश में महिला असुरक्षित क्यों ?
मोहम्मद मुमताज़ हसन
आपत्ति - क्यों है तुम्हें जब कोई माँ कराती है भ्रूण टेस्ट या अबॉर्शन विवश होती है वह / मिटा देने को अपनी ही बेटी का अस्तित्व अपनी कोख में! क्या इसलिए कि/ जब वह जन्म देती है बेटी को तुम्हारे भीतर का 'दानव' / होता है पुलकित ? हिचकोले मारने लगती है हवस तुम्हारी ? क्योंकि - कल को यही करेगी तृप्त तुम्हारे जिस्म की अग्नि ज्वाला को ? परोसेगी स्वयं को/तुम्हारे हवाले बिस्तर पर होगा - गर्मागर्म गोश्त उसका....? छोड़ दो अब ये/ दीवारों पर लम्बी लम्बी लाईने या चेतावनी लिखना - कि भ्रूण टेस्ट/ भ्रूण हत्या है कानूनन अपराध करा लेने दो - बेबस/ लाचार माँ को 'अबॉर्शन' /ताकि जन्म से पूर्व कर सके वह अपने हाथों सूनी - अपनी कोख खात्मा हो जाए गर्भ में ही 'बेटी' रूपी अभिशाप का फिर रह सके वह निस्संकोच सुखी जीवन भर। ? ....और बचा रह सके - समाज बेटियों के सरेआम बलात्कार/हत्या/ आबरू की लूटमार से न हो कोहराम - देश में बेटियों के 'चीरहरण' का फिर कभी...??? -मोहम्मद मुमताज़ हसन #असुरक्षित बेटियां #Stoprape
Vivek Singh rajawat
"नारी और रस" नारी तू श्रृंगार की सूरत। करुणा की तेरी मूरत। सहज तेरा ये हास्य रूप। और तेरा ये रौद्र स्वरूप। तू भय से नही ख़ुद से डरी। वरना वीर है तू सबसे खरी। अद्भुत है तेरा ये यौवन। शांत है तेरा ये जीवन। तेरी विभत्सना है नाश। भक्ति में तेरा ही वास। तेरे वात्सल्य की महिमा अपार। कोई नही पा सका तेरा पार। विवेक सिंह राजावत। रस में नारी।
Parasram Arora
असुरक्षित है अस्तित्व... अनिश्चित है जिंदगी एक प्रवाह है जिंदगी सब कुछ सरक रहा प्रतिपल सब कुछ रूपांतरित हो रहा प्रतिपल लेकिन तुम्हे ये संसार अजनबी लगता है तों इसमें भयभीत होने वाली कोई बात नहीं है तुम्हें तो जाना है आगे और आगे मत देखना पीछे मुड़ कर यही अनिचितता सौन्दर्य बन जाने वाली है एक दिन मृत्यु भी आएगी मुआफ़ी मांगेगी और लौट जायेगी एकदिन बिना रोडमैप के चलने का अभ्यास कर लो सारे आदर्श और अनुशासन के बोझ क़ो भी उतार फेंको अच्छा होगा तुम नदी के साथ बहना सीख लो. ये नदी ही तुम्हे सागर के दूसरे किनारे तक पहुंचाने मे सक्षम होगी निश्चित ही तालमेल बैठने लगेगा तुम्हारा अनिशचितता से और असुरक्षा से एक दिन ©Parasram Arora अनिश्चित और असुरक्षित जीवन
SARVENDRA SINGH
नारी सम्मान में 🤱🏻🤱🏻🤱🏻🤱🏻🤱🏻 न आना है अब दुबारा,मुझको इस संसार में, बड़ रही है रुची यहाँ पर हैवानों की बलात्कार में। जन्म न लूँगी मैं दुबारा, हमको है हैवानों ने मारा, दर्द न झेल सकूँगी अब मैं, यहाँ हद से ज्यादा है हत्यारा। मैंने जीवन की चाँह है छोड़ी,गई हैवानियत से हार मैं। औरत बन जन्मी हूँ मैं इसमें मेरा क्या दोष है, मानव दानव बन बैठा है बचा न उसको होश है, कलयुग में है कामवासना होगा क्या इसका नाशना? नारी बनकर हूँ मैं जन्मी होता मुझे अफसोश है। अशुरी हुई आत्मा इनकी वुद्धि विलीन अत्याचार में। न जाने कितनी प्रियंका, मन में करती हैं अब शंका, न जाने कब आ जाए रावण, अपनी छोड़छाड़ के लंका। हैं कलयुग के कामी रावण मेरे बैठी बात कपार में। वलात्कार को अब विराम दो, फाँसी इनको सरेआम दो बिनती करती है हर नारी बचे न एक भी वलत्कारी माँ-बेटी-बहू-बहिन को रामराज्य सा आवाम दो। कर दो बस इतना काम तुम मानूँगी आभार मैं। जब भी जाऊँ अकेली राहों में, देखूँ सबकी सम्मान निगाहों में, न मचले मन किसी मनचले का न सूखे पानी मेरे गले का न डर बैठे दिल में मेरे सूनसान जगाहों में। सुरक्षा घेरा हो अब मेरा लक्ष्मणरेखा की किनार में। लेखक सर्वेन्द्र सिहँ सनातनी 9927099136 ©SARVENDRA SINGH नारी सम्मान में