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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विद्धुल्लेखा /शेषराज छन्द १ आँखें जो मैं खोलूँ । कान्हा-कान्हा बोलूँ ।। घेरे गोपी सारी । मैं कान्हा पे वारी ।। २ पावें कैसे मेवा । देवो के वो देवा बैठी सोचूँ द्वारे । प्राणों को मैं हारे ।। ३ राधा-राधा बोलूँ । मस्ती में मैं डोलूँ ।। माई देखो झोली । मीठी दे दो बोली ।। ०३/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विद्धुल्लेखा /शेषराज छन्द १ आँखें जो मैं खोलूँ । कान्हा-कान्हा बोलूँ ।। घेरे गोपी सारी । मैं कान्हा पे वारी ।। २ पावें कैसे मेवा ।
दूध नाथ वरुण
नगरी नगरी द्वारे द्वारे, ढूंढे प्रभु तोहे नैन हमारे। हूं बेचैन सा बिन तेरे प्रभु,कटते नहीं दिन रैन हमारे।। ©दूध नाथ वरुण #नगरी नगरी द्वारे द्वारे
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- माता तेरे द्वार सुना है , बनते सारे काम । जो भी आकर द्वारे तेरे , लेता तेरा नाम ।। माता तेरे द्वार सुना है ... मेरी झोली में भी डाले , तूने प्यारे फूल । लेकिन माता ध्यान रखो अब , चुभे न उनको शूल ।। अपने मन को माता तेरा , कर दूँगा ये धाम । माता तेरे द्वार सुना है .... दीप जलाकर सुबह शाम मैं , करूँ तुम्हारा ध्यान । मतलब की इस दुनिया में , आकर हूँ हैरान ।। सबको राह दिखाना माता , हो न कहीं बदनाम । माता तेरे द्वार सुना है ... धर्म-कर्म का माता सबको , देना थोड़ा ज्ञान । मेरे जैसे अन्य बहुत है , मानव अब नादान ।। इस भक्ती का मोल न करना , माता सेवा दाम । माता तेरे द्वार सुना है .. माता तेरे द्वार सुना है , बनते सारे काम । जो भी आकर द्वारे तेरे , लेता तेरा नाम ।। १४/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- माता तेरे द्वार सुना है , बनते सारे काम । जो भी आकर द्वारे तेरे , लेता तेरा नाम ।। माता तेरे द्वार सुना है ...
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चवपैया छन्द हे हनुमत स्वामी , अन्तर्यामी , दुविधा दूर भगाओ । हम आप सहारे , जीवन हारे , राहे मुझे दिखाओ ।। अब शरण तुम्हारे , पाये द्वारे , ऐसी जुगत लगाओ । हे बजरंगबली ,नित आप चली ,अड़चन सभी हटाओ ।।१ काशी के वासी , आज उदासी , क्यों मन मेरे छाई । सुन अन्तर्यामी , जग के स्वामी , हमने अरज लगाई ।। अब आप निवारण , कर दो पारण , तेरी आज दुहाई । सुन शरण तुम्हारे , आते हारे , हिय ने पीर उठाई ।। २ २७/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चवपैया छन्द , यति १०, ८, १२ हे हनुमत स्वामी , अन्तर्यामी , दुविधा दूर भगाओ । हम आप सहारे , जीवन हारे , राहे मुझे दिखाओ ।। अब शरण तुम
HINDI SAHITYA SAGAR
वह सुंदरता भी अद्भुत थी, अद्भुत थे वे नज़ारे। परम् अलौकिक छटा थी छिटकी, प्रतिपल रूप निहारे।। मधुमय-मंदित चितवन तेरी, अपलक नयन निहारे। जाये कहाँ वह सदन छोड़कर, जो आये द्वारे तुम्हारे।। ©HINDI SAHITYA SAGAR वह सुंदरता भी अद्भुत थी, अद्भुत थे वे नज़ारे। परम् अलौकिक छटा थी छिटकी, प्रतिपल रूप निहारे।। मधुमय-मंदित चितवन तेरी, अपलक नयन निहारे। जाये क
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Prerana Jalgaonkar
कधीकाळी तू नि मी नवराबायको सारखे भांडायचो... मग नंतर भातुकलीसारखा खेळ पुन्हा नव्याने मांडायचो... --प्रेरणा शुभ संध्या मित्रानों💕 काही गोष्टी आपण विसरतो किंवा विसरल्याचं भासवतो मग ते स्वत:ला असो वा दुसर्यांना. पण आपण त्या गोष्टी खरचं विसरतो का? माझ
Prerana Jalgaonkar
कधीकाळी तू नि मी नवराबायको सारखे भांडायचो... मग नंतर भातुकलीसारखा खेळ पुन्हा नव्याने मांडायचो... --प्रेरणा शुभ संध्या मित्रानों💕 काही गोष्टी आपण विसरतो किंवा विसरल्याचं भासवतो मग ते स्वत:ला असो वा दुसर्यांना. पण आपण त्या गोष्टी खरचं विसरतो का? माझ