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Shailendra Anand

#ShubhDeepawअन्नकूटमहोत्सवव श्रीनाथ नाथद्वारा जी के श्रीचरणों में यह रचना मेरी ्शैलेन्द़ आनंद देवास गन्धर्व नगरी मध्यप्रदेश से ali #पौराणिककथा

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जंरचना दिनांक 13,,११,,२०२३
वार सोमवार
समय ््सुबह ९,,००बजे
्््््
शीर्षक ्् शीर्षक
छाया चित्र मौरपंख में विराजित कृष्ण कन्हैया लाल सेठिया जी
सेठ जी अन्नपूर्णा अन्नंअनामय में विराजित अन्नकूट महोत्सव
प्रसाद ने संजाया गया श्रीनाथजी मंदिर को मन प्रसन्न है।।
्््््

ईश्वर सत्य है अन्नंअनामय देवी भवानी सिंह वाहिनी कूष्माण्डा शुभदास्तु सदा करुणाकरणं श्रीं महालक्ष्मी देवीभ्यों से अपनी रूह मे खो कर प्यार करने वाले ।।
श्रीं नाथजी से सुसज्जित श्रीनाथ जी के श्री चरणों में समर्पित अपनत्व करिष्यामि तदपश्यात कर्म भूमि वर्चस्व है ,,
अन्नपूर्णा अन्नंअनामय में अन्नकूट प्रसादी ग्रहण में मंगलमय हो,,
 प्यारा सा जीवन फूलों से सजाया गया है।।््््
्््््कवि शैलेंद्र आनंद
१३नवम्बर २०२३httpshttps://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz://m.facebook.comhttps://m.facebook.com/story.php?story_fbidhttps://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz
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 है।।

©Shailendra Anand #ShubhDeepawअन्नकूटमहोत्सवव श्रीनाथ नाथद्वारा जी के श्रीचरणों में यह रचना मेरी ्शैलेन्द़ आनंद देवास गन्धर्व नगरी मध्यप्रदेश से ali

Nasamajh

भारतीयता के प्रतीक पुरूष, अजातशत्रु, युग-ऋषि, विज्ञान-गन्धर्व, हमारे सबसे प्रिय गुरु भारत रत्न स्व एपीजे अब्दुल कलाम साहब के जन्मदिवस पर उन् #हिंदी #हिंदी_कोट्स_शायरी #हिंदीqoutes

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"बहुत मुश्किल है कोई यूँ वतन की जान हो जाए 
तुम्हें फैला दिया जाए तो हिन्दुस्तान हो जाए..!” 

 भारतीयता के प्रतीक पुरूष, अजातशत्रु, युग-ऋषि, विज्ञान-गन्धर्व, हमारे सबसे प्रिय गुरु भारत रत्न स्व एपीजे अब्दुल कलाम साहब के जन्मदिवस पर उन्

N S Yadav GoldMine

#Bhaidooj {Bolo Ji Radhey Radhey} भगवान श्री कृष्ण जी से बढ़कर दूसरा कोई प्राणी नहीं है। ब्रह्ममय महाविष्णु ही सबके राजाधिराज हैं, उन्हीं #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
भगवान श्री कृष्ण जी से बढ़कर 
दूसरा कोई प्राणी नहीं है। ब्रह्ममय
 महाविष्णु ही सबके राजाधिराज 
हैं, उन्हीं को ईश्वर समझना चाहिये। 
वे श्रीहरि सबके कर्ता हैं, किंतु 
उनका कोई कर्ता नहीं है। वे विष्णु 
ही मनुष्य, किन्नर, यक्ष, गन्धर्व, 
सर्प, राक्षस, देव, दानव और 
नाग सबके अधीश्वर हैं।

©N S Yadav GoldMine #Bhaidooj {Bolo Ji Radhey Radhey}
भगवान श्री कृष्ण जी से बढ़कर 
दूसरा कोई प्राणी नहीं है। ब्रह्ममय
 महाविष्णु ही सबके राजाधिराज 
हैं, उन्हीं

Bhavana kmishra

#navratri #Hindi #viral #bhavanakmishra नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि. सेव्यमाना स #समाज

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N S Yadav GoldMine

नारद जी की जन्म कथा :- {Bolo Ji Radhey Radhey} 🌺 देवर्षि नारद पहले गन्धर्व थे। एक बार ब्रह्मा जी की सभा में सभी देवता और गन्धर्व भगवन्नाम का #Hope #पौराणिककथा

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नारद जी की जन्म कथा :-
{Bolo Ji Radhey Radhey}
🌺 देवर्षि नारद पहले गन्धर्व थे। एक बार ब्रह्मा जी की सभा में सभी देवता और गन्धर्व भगवन्नाम का संकीर्तन करने के लिए आए। नारद जी भी अपनी स्त्रियों के साथ उस सभा में गए। भगवान के संकीर्तन में विनोद करते हुए देखकर ब्रह्मा जी ने इन्हें शाप दे दिया। जन्म लेने के बाद ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। इनकी माता दासी का कार्य करके इनका भरण-पोषण करने लगीं।

🌺 एक दिन गांव में कुछ महात्मा आए और चातुर्मास्य बिताने के लिए वहीं ठहर गए। नारद जी बचपन से ही अत्यंत सुशील थे। वह खेलकूद छोड़ कर उन साधुओं के पास ही बैठे रहते थे और उनकी छोटी-से-छोटी सेवा भी बड़े मन से करते थे। संत-सभा में जब भगवत्कथा होती थी तो यह तन्मय होकर सुना करते थे। संत लोग इन्हें अपना बचा हुआ भोजन खाने के लिए दे देते थे।

🌺 साधुसेवा और सत्संग अमोघ फल प्रदान करने वाला होता है। उसके प्रभाव से नारद जी का हृदय पवित्र हो गया और इनके समस्त पाप धुल गए। जाते समय महात्माओं ने प्रसन्न होकर इन्हें भगवन्नाम का जप एवं भगवान के स्वरूप के ध्यान का उपदेश दिया।

🌺 एक दिन सांप के काटने से उनकी माता जी भी इस संसार से चल बसीं। अब नारद जी इस संसार में अकेले रह गए। उस समय इनकी अवस्था मात्र पांच वर्ष की थी। माता के वियोग को भी भगवान का परम अनुग्रह मानकर ये अनाथों के नाथ दीनानाथ का भजन करने के लिए चल पड़े। एक दिन जब नारद जी वन में बैठकर भगवान के स्वरूप का ध्यान कर रहे थे, अचानक इनके हृदय में भगवान प्रकट हो गए और थोड़ी देर तक अपने दिव्य स्वरूप की झलक दिखाकर अन्तर्धान हो गए।

🌺 भगवान का दोबारा दर्शन करने के लिए नारद जी के मन में परम व्याकुलता पैदा हो गई। वह बार-बार अपने मन को समेट कर भगवान के ध्यान का प्रयास करने लगे, किंतु सफल नहीं हुए। उसी समय आकाशावाणी हुई, अब इस जन्म में फिर तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद रूप में मुझे पुन: प्राप्त करोगे।

🌺 समय आने पर नारद जी का पांच भौतिक शरीर छूट गया और कल्प के अंत में वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए। देवर्षि नारद भगवान के भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हैं। यह भगवान की भक्ति और महात्म्य के विस्तार के लिए अपनी वीणा की मधुर तान पर भगवद् गुणों का गान करते हुए निरंतर विचरण किया करते हैं। इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इनके द्वारा प्रणीत भक्ति सूत्र में भक्ति की बड़ी ही सुंदर व्याख्या है। अब भी यह अप्रत्यक्ष रूप से भक्तों की सहायता करते रहते हैं। 

🌺 भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष, ध्रुव आदि भक्तों को उपदेश देकर इन्होंने ही उन्हें भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया। इनकी समस्त लोकों में अबाधित गति है। इनका मंगलमय जीवन संसार के मंगल के लिए ही है। यह ज्ञान के स्वरूप, विद्या के भंडार, आनंद के सागर तथा सब भूतों के अकारण प्रेमी और विश्व के सहज हितकारी हैं। 

🌺 अविरल भक्ति के प्रतीक और ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाने वाले देवर्षि नारद का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक भक्त की पुकार भगवान तक पहुंचाना है। वह विष्णु के महानतम भक्तों में माने जाते हैं और इन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। भगवान विष्णु की कृपा से यह सभी युगों और तीनों लोगों में कहीं भी प्रकट हो सकते हैं।

©N S Yadav GoldMine नारद जी की जन्म कथा :-
{Bolo Ji Radhey Radhey}
🌺 देवर्षि नारद पहले गन्धर्व थे। एक बार ब्रह्मा जी की सभा में सभी देवता और गन्धर्व भगवन्नाम का

Divyanshu Pathak

राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न वैसे तो अभी तक विवादास्पद बना हुआ है फिर भी वे स्वयं को वैदिक आर्यों से जोड़कर सूर्य और चंद्रवंशी बताते हैं।कह #yqbaba #yqdidi #yqhindi #पाठकपुराण #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1

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जातियाँ ( समय के गर्त में और गर्भ में )
1. राजपूत 🗡🏹

वेद,उपनिषद,स्मृति और हमारे प्राचीन ग्रंथों में 'जाति' को प्राथमिकता नहीं दी गई थी।'राजपूत' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'राजपुत्र' से हुई है।जब चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया तो उसने भी यहाँ के राजाओं को 'क्षत्रिय' लिखा और कहीं कहीं राजपूत कहा।श्री जगदीश सिंह गहलोत ने लिखा है कि- "मुसलमानों के आक्रमण से पहले यहाँ के राजा 'क्षत्रिय' कहलाते थे।बाद में इनका बल टूट गया तो स्वतंत्र राजा के स्थान पर सामन्त, नरेश बनकर रह गए।इसी समय में ही शासक राजाओं के लिए 'राजपूत' या 'रजपूत' शब्द सम्बोधन के लिए प्रयोग में लिया जाने लगा।आठवी शताब्दी तक इस शब्द का प्रयोग कुलीन क्षत्रियों के लिए किया जाता था।चाणक्य,कालिदास और बाणभट्ट के 'राजपुत्र' मुसलमानों के समय अपने राज्य खो कर 'राजपूत'बन गए। राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न वैसे तो अभी तक विवादास्पद बना हुआ है फिर भी वे स्वयं को वैदिक आर्यों से जोड़कर सूर्य और चंद्रवंशी बताते हैं।कह

Jyotish Jha

( Loosing life for some one is easy, Living one's own life for mom is hard) Every mother's deserve a better daughters and the son's. Engli #English #Hindi #MothersDay #bhojpuri #maithili #nepali #drjyotishwrites

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"Mom" is fashion, 
"माँ" is emotions and only
"आमा" deserves all my expressions
Now-a-day's nibba+nibbi 
Dies for their loves
But guess what 
I can live my whole life 
because of you "माई"🙏
 ( Loosing life for some one is easy, 
Living one's own life for mom is hard)
Every mother's deserve a better daughters and the son's.
#Engli

Vishw Shanti Sanatan Seva Trust

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: तृतीय अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य श्री शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित!

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N S Yadav GoldMine

कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुर #Travel #पौराणिककथा

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कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुरूरवा से आयु, आयु से राजा नहुष, और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति से पुरू हुए। पूरू के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए। 

कुरु के वंश में शान्तनु का जन्म हुआ। शान्तनु से गंगानन्दन भीष्म उत्पन्न हुए। उनके दो छोटे भाई और थे – चित्रांगद और विचित्रवीर्य। ये शान्तनु से सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। शान्तनु के स्वर्गलोक चले जाने पर भीष्म ने अविवाहित रह कर अपने भाई विचित्रवीर्य के राज्य का पालन किया।
 
भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। ये महाराजा शांतनु के पुत्र थे। अपने पिता को दिये गये वचन के कारण इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। 

 एक बार हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत आखेट खेलने वन में गये। जिस वन में वे शिकार के लिये गये थे उसी वन में कण्व ऋषि का आश्रम था। कण्व ऋषि के दर्शन करने के लिये महाराज दुष्यंत उनके आश्रम पहुँच गये। पुकार लगाने पर एक अति लावण्यमयी कन्या ने आश्रम से निकल कर कहा, हे राजन् महर्षि तो तीर्थ यात्रा पर गये हैं, किन्तु आपका इस आश्रम में स्वागत है। 
 
 उस कन्या को देख कर महाराज दुष्यंत ने पूछा, बालिके आप कौन हैं? बालिका ने कहा, मेरा नाम शकुन्तला है और मैं कण्व ऋषि की पुत्री हूँ। उस कन्या की बात सुन कर महाराज दुष्यंत आश्चर्यचकित होकर बोले, महर्षि तो आजन्म ब्रह्मचारी हैं फिर आप उनकी पुत्री कैसे हईं? 
 
 उनके इस प्रश्न के उत्तर में शकुन्तला ने कहा, वास्तव में मेरे माता-पिता मेनका और विश्वामित्र हैं। मेरी माता ने मेरे जन्म होते ही मुझे वन में छोड़ दिया था जहाँ पर शकुन्त नामक पक्षी ने मेरी रक्षा की। इसी लिये मेरा नाम शकुन्तला पड़ा। 
 
 उसके बाद कण्व ऋषि की दृष्टि मुझ पर पड़ी और वे मुझे अपने आश्रम में ले आये। उन्होंने ही मेरा भरन-पोषण किया। जन्म देने वाला, पोषण करने वाला तथा अन्न देने वाला – ये तीनों ही पिता कहे जाते हैं। इस प्रकार कण्व ऋषि मेरे पिता हुये। 
 
 शकुन्तला के वचनों को सुनकर महाराज दुष्यंत ने कहा, शकुन्तले तुम क्षत्रिय कन्या हो। यदि तुम्हें किसी प्रकार की आपत्ति न हो तो मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ। शकुन्तला भी महाराज दुष्यंत पर मोहित हो चुकी थी, अतः उसने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। दोनों नें गन्धर्व विवाह कर लिया। कुछ काल महाराज दुष्यंत ने शकुन्तला के साथ विहार करते हुये वन में ही व्यतीत किया। 
 
 फिर एक दिन वे शकुन्तला से बोले, प्रियतमे मुझे अब अपना राजकार्य देखने के लिये हस्तिनापुर प्रस्थान करना होगा। महर्षि कण्व के तीर्थ यात्रा से लौट आने पर मैं तुम्हें यहाँ से विदा करा कर अपने राजभवन में ले जाउँगा।

 इतना कहकर महाराज ने शकुन्तला को अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में अपनी स्वर्ण मुद्रिका दी और हस्तिनापुर चले गये। 

 एक दिन उसके आश्रम में दुर्वासा ऋषि पधारे। महाराज दुष्यंत के विरह में लीन होने के कारण शकुन्तला को उनके आगमन का ज्ञान भी नहीं हुआ और उसने दुर्वासा ऋषि का यथोचित स्वागत सत्कार नहीं किया। दुर्वासा ऋषि ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित हो कर बोले, बालिके मैं तुझे शाप देता हूँ कि जिस किसी के ध्यान में लीन होकर तूने मेरा निरादर किया है, वह तुझे भूल जायेगा। 
 
 दुर्वासा ऋषि के शाप को सुन कर शकुन्तला का ध्यान टूटा और वह उनके चरणों में गिर कर क्षमा प्रार्थना करने लगी। शकुन्तला के क्षमा प्रार्थना से द्रवित हो कर दुर्वासा ऋषि ने कहा, अच्छा यदि तेरे पास उसका कोई प्रेम चिन्ह होगा तो उस चिन्ह को देख उसे तेरी स्मृति हो आयेगी। 
 
 महाराज दुष्यंत से विवाह से शकुन्तला गर्भवती हो गई थी। कुछ काल पश्चात् कण्व ऋषि तीर्थ यात्रा से लौटे तब शकुन्तला ने उन्हें महाराज दुष्यंत के साथ अपने गन्धर्व विवाह के विषय में बताया। इस पर महर्षि कण्व ने कहा, पुत्री विवाहित कन्या का पिता के घर में रहना उचित नहीं है। 
 
 अब तेरे पति का घर ही तेरा घर है। इतना कह कर महर्षि ने शकुन्तला को अपने शिष्यों के साथ हस्तिनापुर भिजवा दिया। मार्ग में एक सरोवर में आचमन करते समय महाराज दुष्यंत की दी हुई शकुन्तला की अँगूठी, जो कि प्रेम चिन्ह थी, सरोवर में ही गिर गई। उस अँगूठी को एक मछली निगल गई। 
 
 महाराज दुष्यंत के पास पहुँच कर कण्व ऋषि के शिष्यों ने शकुन्तला को उनके सामने खड़ी कर के कहा, महाराज शकुन्तला आपकी पत्नी है, आप इसे स्वीकार करें। महाराज तो दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण शकुन्तला को विस्मृत कर चुके थे। अतः उन्होंने शकुन्तला को स्वीकार नहीं किया और उस पर कुलटा होने का लाँछन लगाने लगे। शकुन्तला का अपमान होते ही आकाश में जोरों की बिजली कड़क उठी और सब के सामने उसकी माता मेनका उसे उठा ले गई। 
 
 जिस मछली ने शकुन्तला की अँगूठी को निगल लिया था, एक दिन वह एक मछुआरे के जाल में आ फँसी। जब मछुआरे ने उसे काटा तो उसके पेट अँगूठी निकली। मछुआरे ने उस अँगूठी को महाराज दुष्यंत के पास भेंट के रूप में भेज दिया। अँगूठी को देखते ही महाराज को शकुन्तला का स्मरण हो आया और वे अपने कृत्य पर पश्चाताप करने लगे। महाराज ने शकुन्तला को बहुत ढुँढवाया किन्तु उसका पता नहीं चला।
 
 कुछ दिनों के बाद देवराज इन्द्र के निमन्त्रण पाकर देवासुर संग्राम में उनकी सहायता करने के लिये महाराज दुष्यंत इन्द्र की नगरी अमरावती गये। संग्राम में विजय प्राप्त करने के पश्चात् जब वे आकाश मार्ग से हस्तिनापुर लौट रहे थे तो मार्ग में उन्हें कश्यप ऋषि का आश्रम दृष्टिगत हुआ। उनके दर्शनों के लिये वे वहाँ रुक गये। आश्रम में एक सुन्दर बालक एक भयंकर सिंह के साथ खेल रहा था। मेनका ने शकुन्तला को कश्यप ऋषि के पास लाकर छोड़ा था तथा वह बालक शकुन्तला का ही पुत्र था। उस बालक को देख कर महाराज के हृदय में प्रेम की भावना उमड़ पड़ी। 
 
 वे उसे गोद में उठाने के लिये आगे बढ़े तो शकुन्तला की सखी चिल्ला उठी, हे भद्र पुरुष आप इस बालक को न छुयें अन्यथा उसकी भुजा में बँधा काला डोरा साँप बन कर आपको डस लेगा। यह सुन कर भी दुष्यंत स्वयं को न रोक सके और बालक को अपने गोद में उठा लिया। अब सखी ने आश्चर्य से देखा कि बालक के भुजा में बँधा काला गंडा पृथ्वी पर गिर गया है। सखी को ज्ञात था कि बालक को जब कभी भी उसका पिता अपने गोद में लेगा वह काला डोरा पृथ्वी पर गिर जायेगा। 
 
 सखी ने प्रसन्न हो कर समस्त वृतान्त शकुन्तला को सुनाया। शकुन्तला महाराज दुष्यंत के पास आई। महाराज ने शकुन्तला को पहचान लिया। उन्होंने अपने कृत्य के लिये शकुन्तला से क्षमा प्रार्थना किया और कश्यप ऋषि की आज्ञा लेकर उसे अपने पुत्र सहित अपने साथ हस्तिनापुर ले आये। महाराज दुष्यंत और शकुन्तला के उस पुत्र का नाम भरत था। 
 बाद में वे भरत महान प्रतापी सम्राट बने और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ।

©N S Yadav GoldMine कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुर

Vikas Sharma Shivaaya'

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी यह विचित्र होली है जिसे भगवान शिव खेलते हैं, व #समाज

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खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

यह विचित्र होली है जिसे भगवान शिव खेलते हैं, वो भी काशी के मणिकर्णिका (श्मशान) घाट पर-  रंग एकादशी के दूसरे दिन काशी में स्थित श्मशान पर भी चिताओं की भस्मी के साथ होली खेलने की भी एक अनूठी परंपरा भी है,पौराणिक कथाओं के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत शंकरजी से ही मानी जाती है...,

मान्यताओं के अनुसार- जब भगवान शिव, पार्वती का गौना करने के लिए आये थे तो उनके साथ भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर जीव जंतु आदि नहीं थे, जिनके लिए श्मशान पर चिताओं की भस्मी से होली खेले जाने की परंपरा को बनाया गया...,

लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,
चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

यह गीत अड़बंगी भोले बाबा के विचित्र होली की तस्वीर पेश करता है-गाया है बनारस घराने के मशहूर ठुमरी गायक 'पद्म विभूषण' पंडित छन्नूलाल मिश्र ने...,

'श्मशान' जीनवयात्रा की थकान के बाद की अंतिम विश्रामस्थली है-अंतिम यात्रा के दौरान रंग-रोली तो शव को लगाया जाता है लेकिन नीलकंठ देव के चरित्र में इस समय रंग गुलाल नहीं है, जली हुई चिताओं की राख है, जिससे वो होली खेलते हैं...,

गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, कौनऊ बाधा
ना साजन ना गोरी, ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी
 
एक तरफ बृज में कृष्ण और राधा की होली है जो प्रेम का प्रतीक है, लेकिन भगवान शिव की होली उनसे अलग है, उनकी जगह श्मशान है-शंकर जी के होली को देखकर गोपिकाओं का मन भी प्रसन्न हो जाता है-अड़बंगी महराज के साथी भूत-प्रेत हैं, रंगों की जगह जली हुई चिताओं की राख है जिससे वो नाचते-गाते भूतों पर मल देते हैं, 

नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी
पीटैं प्रेत-थपोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी
भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाए बिरिज की गोरी
धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर, खेलैं मसाने में होरी 

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज993 से 1000 नाम  )
993 शंखभृत् जिन्होंने पांचजन्य नामक शंख धारण किया हुआ है
994 नन्दकी जिनके पास विद्यामय नामक खडग है
995 चक्री जिनकी आज्ञा से संसारचक्र चल रहा है
996 शार्ङ्गधन्वा जिन्होंने शारंग नामक धनुष धारण किया है
997 गदाधरः जिन्होंने कौमोदकी नामक गदा धारण किया हुआ है
998 रथांगपाणिः जिनके हाथ में रथांग अर्थात चक्र है
999 अक्षोभ्यः जिन्हे क्षोभित नहीं किया जा सकता
1000 सर्वप्रहरणायुधः प्रहार करने वाली सभी वस्तुएं जिनके आयुध हैं

हे भगवान् नारायण हमारी रक्षा कीजिये,वही विष्णु भगवान् जिन्होंने वनमाला पहनी है,जिन्होंने गदा, शंख, खडग और चक्र धारण किया हुआ है,वही विष्णु हैं और वही वासुदेव हैं...

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ 

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

यह विचित्र होली है जिसे भगवान शिव खेलते हैं, व
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