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HintsOfHeart.
"तुम्हारे नैन पहले भोर की दो ओस-बूँदें हैं अछूती, ज्योतिमय, भीतर द्रवित मानो विधाता के हृदय में जग गयी हो भाप करुणा की अपरिमित...." ©HintsOfHeart. #Good_Night 💖 #अज्ञेय - ('नख शिख' से)
REETA LAKRA
क्या है तू मनुष्य, मनुष्य है, ईश्वर नहीं पर ईश्वर की कृपा से मनुष्य दूर नहीं मानव, मानव है, दानव नहीं पर दानव के लक्षणों को रखो दूर कहीं साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य बिना नख, पुच्छ और श्रृंग के पशु के समान है। yreeta-lakra-9mba
श्री सबरी भजन मंडल
दूलह राम, सीय दुलही री । घन दामिनि बर बरन हरन मन । सुन्दरता नख सिख निबही री ॥ तुलसीदास जोरी देखत सुख । सोभा अतुल न जात कही री ॥ रूप रासि विरचि बिरंचि मनु । सिला लमनि रति काम लही री ॥ ©श्री सबरी भजन मंडल 🙏🌹दूलह राम, सीय दुलही री । घन दामिनि बर बरन हरन मन । सुन्दरता नख सिख निबही री ॥ तुलसीदास जोरी देखत सुख । सोभा अतुल न जात कही री ॥
Sheetal Agrawal
kunwar Surendra
आज़मा रहे है हमारी मोहब्बत को वो, यो आजमाने का दम न भरो एक बार पाव का नख तो छू लेने दो शिख तक छूकर तुम को तुमसे न छीन ले तो कहना Kunwarsurendra आज़मा रहे है हमारी मोहब्बत को वो, यो आजमाने का दम न भरो एक बार पाव का नख तो छू लेने दो शिख तक छूकर तुम को तुमसे न छीन ले तो कहना #Kunwarsuren
SURAJ आफताबी
जब आये तुम्हारे कदमबोसी को मेरे प्रेमपत्र अपने मृदुल चरणों को पैगाम जरा ये दे देना आयेंगे कुछ प्रिय सखे तुम्हारे, तुम्हें इक भेंट करने गर थोड़े सहम जाये वो तो तुम स्वयं ही उन्हें बांहे भर लेना !! गर पांव में पाजैब की जगह शब्द लिपट जाये बिछियों में मूंगों की जगह बिंदु या मात्रायें लटक जाये गर कुछ यूं हो कि पांव की हीना लजियाने लगे नख-शिख के सारे अंग प्रेम समर्पण पाने लगे तब प्रेमपत्र के सारे स्पर्शों का आग्रह स्वीकार तुम कर लेना तुम भी अपने मकरन्दी होंठों से चूम प्यार इन्हें कर लेना !! नमी से बिगड़ी शब्दों की स्याही गर मुझे वापस लौट आई तेरे हृदय की झन्नाहट से गर मेरे हृदय को भी मीठी चोट आई मैं समझूंगा कि मेरी एकाकी की सुनहरी व्यवस्था तुम ही थी जिन छंदों को सबने सराहा उनमें समाई विलक्षता तुम ही थी कल जिन सखियों से मिलती थी आज अंतिम व्यवहार उनसे कर लेना परसों जब हम मिलने आये तब सारा जग तज मुझमें संसार तुम कर लेना !! कविता 🤗🤗 कदमबोसी - पांव चूमना सखे -- मीत, मित्र बिछिया - पांव की ऊंगली में पहनी जाने वाली अंगूठी नख-शिख - पैर के नाखून से लेकर सिर तक सारे
Shikha Mishra
ओ मधुर बंसी बजैया, गोकुल में धेनु चरैया। हे कृष्ण कन्हैया, भव पार करो मोर नइया।। मस्तक तिलक आछे, श्रवण कुंडल छाजे। अरूण अधर पर मृदुल मुस्कान साजे।। गोल कपोल, हरि कमल नयन विशाला। अलक घुंघराला, मोर मुकुट वैजयंती माला।। कंस को मारयो, गोवर्धन नख पर धारयो। हे सुदामा के मीत! दीनन के कष्ट निवारयो।। राधा के प्राण प्यारे, मीरा के हृदय को तारे। शरण लियो हमहुं, हे प्रभु यशोदा सुत नंद दुलारे।। जय माधव, जय नटनागर जय जगवंदन, जय जय यदुनंदन सुफल मनोरथ कीजे हे देवकीनंदन।। #yqbaba #yqhindi #janmashtami #कृष्णमेरे #radheshyam #smkrishna #bestyqhindiquotes Best of YourQuote Poetry Best YQ Hindi Quotes ओ मधुर बं
Sarita Shreyasi
माथे पर चमकती लकीरों से,सालों की गिनती हो जाती है, अनुभवी आँखों से स्नेह छलकता,परिपक्वता मुस्कुराती है, मौन साक्षी बन कर देखती,हर क्षण का लुत्फ उठाती है, खिलती जाती पुनः मुस्कान,उम्र ज्यों-ज्यों चढ़ती जाती है। आगे जाने की होड़,दौड़ने की रफ्तार कम जाती है, दंत-नख संग धार जिह्वा की भी नर्म हो जाती है, बल आजमाने वाले हाथ,आशीर्वादों से भर जाते हैं, झुकते कमर-कंधों के साथ,दुआओं के कद बढ़ जाते हैं। कद शरीर का छोटा हो जाता,सर बड़प्पन का उठ जाता है, भ्रम,मोह और अधिकारों का,जब दिन-दिन टूटा जाता है, सूरज समय का चढ़ता है, अहं अभिमानी झुक जाता है, झुर्रियों भरी झपकती पलकों से,लौटा बचपन मुस्काता है। माथे पर चमकती लकीरों से,सालों की गिनती हो जाती है, अनुभवी आँखों से स्नेह छलकता,परिपक्वता मुस्कुराती है, मौन साक्षी बन कर देखती,हर क्षण का लु
Ankur tiwari
जब उस पर इक गजल लिखी मैंने आंखों को शराब होठों को गुलाब लिखा गालों की लाली को मैंने शबाब लिखा चंचल लिखा चितवन और नख शुक सा काया को कंचन तो चेहरा आफताब लिखा हिरनी सी चाल केस स्वर्ण से सुनहरे उसे मैंने गंगा जी का पवित्र आब लिखा लोगो ने बड़ाई की मिला खूब वाह वाह मैंने उसे अपना एक सुंदर सा ख़्वाब लिखा वो भी थी प्रसन्न बहुत बार बार देख मुझे उसने मुझे अपना प्रियतम परवाज लिखा प्रेम में वो जब डूब गई अनंत गहराईयों तक उसने भी मुझे कोई इक सुंदर सा साज लिखा देखा जब क़रीब से मैंने डूब उसकी आंखों में मैने खुद को दो कौड़ी का शायर बदनाम लिखा सब कुछ लिख दिया पर कुछ ना समझ पाया लिखी आंखें थी शराब पर उनकी नमी नही देख पाया ©Ankur tiwari उस पर इक गजल लिखी मैंने आंखों को शराब होठों को गुलाब लिखा गालों की लाली को मैंने शबाब लिखा चंचल लिखा चितवन और नख शुक सा काया को कंचन तो चेहर
Vandana
,,,, नीर बहा कर अँखियों से सब कुछ उसने कह डाला अवशेष बचा था जो मन में चेहरे से मैंने पढ़ डाला।। श्रृंगार रसों की कविता में मर्म विरह का घोल दिया