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नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
मूक हुई यहां पर सत्ता, बेड़ियों में बंधकर रह गए प्रशासन के हाथ। दर दर भटक रही यहां गरीब जनता, नही देने वाला है कोई इनका साथ।। सड़को पर है अपना मासूम पड़ा, मासूमियत लगाती है आवाज़ यहां। प्रशासनों में तो है अपनी अश्रव्यता, चाहे जितना भी चीखें अपना संत्रस्त जहां।। कहीं कहीं पर है निवाला फेंका जाता, कही पेट दबाकर है कोई सोता। आम जनता चाहे जितना भी लगाएं गुहार, सुनने वाला नही कोई होता।। हैवानियत भी सर चढ़कर बोल रही, पर नही यहां पर कोई जिम्मेदारी लेता। भ्रष्टाचार में संलिप्त हुई प्रशासन, औरों के भी हिस्से का सब कुछ लेता।। पैसों की है बस यहां लूट मची, नही होती है अब भावनाओं की कद्र यहां। बेड़ियों में बंध गया प्रशासन, दया, भाव, प्रेम, त्याग, समर्पण, सब मिट गया यहां।। #प्रशासन #बेड़ियों में प्रशासन #बेड़ियों
नेहा उदय भान गुप्ता
मूक हुई यहां पर सत्ता, बेड़ियों में बंधकर रह गए प्रशासन के हाथ। दर दर भटक रही यहां गरीब जनता, नही देने वाला है कोई इनका साथ।। सड़को पर है अपना मासूम पड़ा, मासूमियत लगाती है आवाज़ यहां। प्रशासनों में तो है अपनी अश्रव्यता, चाहे जितना भी चीखें अपना संत्रस्त जहां।। कहीं कहीं पर है निवाला फेंका जाता, कही पेट दबाकर है कोई सोता। आम जनता चाहे जितना भी लगाएं गुहार, सुनने वाला नही कोई होता।। हैवानियत भी सर चढ़कर बोल रही, पर नही यहां पर कोई जिम्मेदारी लेता। भ्रष्टाचार में संलिप्त हुई प्रशासन, औरों के भी हिस्से का सब कुछ लेता।। पैसों की है बस यहां लूट मची, नही होती है अब भावनाओं की कद्र यहां। बेड़ियों में बंध गया प्रशासन, दया, भाव, प्रेम, त्याग, समर्पण, सब मिट गया यहां।। #प्रशासन #बेड़ियों में प्रशासन #बेड़ियों
GUNENDRA SINGH PORTE
हम तो बैठे हैं अपने आसन पे, पर आप तो बैठे हैं सिंहासन पे। पटवारी आरआई बिक जाते हैं, अरे धिक्कार है ऐसे प्रशासन पे।। रचनाकार-गुणेन्द्र सिंह पोर्ते "अविराम" फिंगेश्वर राजिम गरियाबंद छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ ©GUNENDRA SINGH PORTE प्रशासन पे
BANDHETIYA OFFICIAL
राजनीति में मत पड़ो..... राजनीति करते हो..... ताना/दिव्य ज्ञान स्थानीय स्वशासन के नाम पर होने वाले मुखिया,वार्ड आदि चुनाव में कुछ ज्यादा ही उछाल मारता है। फलतः आपसी वैमनस्य बढ़ने की प्रबल संभावना बन जाती है। ©BANDHETIYA OFFICIAL स्थानीय स्वशासन! #leaf
Gautam Bisht
एकदा। "सांगुडे की गेंद" भगवान भुवन भाष्कर अपनी तय निश्चित 12 राशियों का चक्कर लगा कर धनु राशि की यात्रा की थकान के बाद ज्यो ही मकर की संधि स्थल पर पहुँचे। तो पूरा ब्रह्मांड एक नई ऊर्जा में संगठित होने लगा। अजनाभखण्ड के नाम से प्रसिद्ध भूमध्य रेखीय भारतवर्ष में जैसे उत्सव और खुशियों की बाढ़ सी आ गई। 14 जनवरी को उस साल भी जब ये खगोलीय घटना पौराणिक सुखद संयोगों से मेल बना रही थी। गाँव के बच्चों के मन मे सांगुडे की गेंद की नई नई कथायें पनप रही थी। क्या पता है, इस बार सांगुड़ा मे किसकी धाक जमेंगी, लंगूर पट्टी और मनियारस्यू पट्टी के इस हार जीत में सारी न्यारघाटी का माहौल गर्म सा प्रतीत होने लगता। क्या बूढ़े क्या बच्चे क्या जवान, सब अपने अपने महकमे चर्चा का यही बिषय रखते। जानें क्यो, सीमा पर डटे फौजियों भुजाएं भी फड़कने लगती, लहू नसों में गर्म सीसा बन बहने लगता पहली बार की हार जीत याद करके मन के मंसूबे पुर जोर गाँव की तरफ खिंचने लगते। कि काश इस बार साल की पहली कि छुटियाँ मिल पाती तो अपनी मनियारस्यू में गाजे बाजे के साथ जरूर गेंद जीत कर लाता, फिर हाट, घाट, बाट, चौराहे पर उनकी ही तूती बोलती। नन्ही नन्ही बच्चियां अपनी सहेलियों के साथ मेले में खीलोंनो की खरीदारी की चर्चा करने लगी थी। बूढ़े अपने दिन याद करके तास की महफ़िल में हार जीत का गणित बैठाने लगे थे। बच्चों में अलग ही जिरह चालू थी। पहली बार मेरे पापा ओर चाचा ने अकेले गिन्दी जीत ली थी। रजोगुण के प्रबल मनुष्य जलेबी की दुकान लगाने के लिये अपना हाथख़र्च आजमाने लगे थे। यूँ समझो चरखी से लेकर अनगिनित खिलौने की ठेलिया, पेठा, मूंगफली, पकोड़ी,जलेबी , मावा, समोसे, ओर एक पतली सी तार पर फिसलता प्लास्टिक का बंदर, हवा के उड़ते गुबारे, कहते है। इनमें भगवान अपनी पवित्र हवा भरते है। जरा हाथ से छोड़कर देखो बच्चू सीधे भगवान के घर चले जाते है। बालुसाई, बूढ़े की अंगुलिया, बुढ़िया के बाल , जाने क्या क्या मै तो कई बार जा चुका हुँ। पाँच साल का बूढ़ा स्याना, बच्चो के बीच शेखी बघार रहा था, दूसरा जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, एक हाथ से ही गिदी को इतनी दूर फेंक दूँगा की किसी को दिखाई नही दे। दूसरा तो क्या बाकी लोग देखते रहेंगे। अरे छोड़ यार,,, वहाँ तो बड़े बड़े पहलवान भी आते है। सब जोर लगाते है। जीतना बहुत मुश्किल है। अरे सुन भई मै अभी छोटा दिख रहा हूँ। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब मेरे हाथ पांव बड़े नही होंगे। तू तो समझता ही नही। तू भी चलना मेरे साथ मैं तेरे पास भी फेंकूँगा। तू फिर मेरे पास , मैं भाग कर सड़क तक पहुँचा दूँगा। बस जीत गए। और बच्चों ने तो उठते ही डिगी के पीछे ही सांगुडे कि गेंद जीत ली थी। इस पावन दिन सूर्य के मकर राशि के प्रवेश से ही देवताओं का दिन उत्तरायण शुरू हो जाता है। और जहाँ ये योगमाया का मनुष्यों का बाजार सजने वाला है। वो पौड़ी जनपद के आदि माँ भुवनेश्वरी माता का एक पौराणिक मंदिर स्थल है। जहाँ की खेती के कोतवाल भैरवगढ़ी के महाकाल के भैरव कहलाते है । कहते है। वे ही पहले के किसानों के खेती के नियम और समय का निर्धारण करते थे। एक बार एक किसान ने दोपहरी को भी बैल अपनी जोत से नही खोले, तो पहले भैरव बाबा ने नाम लेकर आवाज लगाई तो किसान ने अनसुना कर दिया , तब बाबा ने एक गेंद जैसे पत्थर को फेंका। जो हल के आगे फल में अटक गया, फिर बैल पूरे जोर लगा कर टस से मस नही हुये। किसान ने बहुत जोर लगाया पर उसे हिला न सका, उंसके बाद ग्रामीणों लोगो ने भी सबने जोर आजमाया पर वे उसे निकाल न सके थे। ये पावन भूमि सतपुली देवप्रयाग रोड पर, सतपुली से लगभग सात आठ किलोमीटर की दूरी पर बांघाट से आगे देषण बिलखेत गाव की संधि स्थल पर है। अब यहॉं माँ भवनेश्वरी का पावन धाम अपने बृहद रूप में स्थित है। यहाँ नव ग्रह मंदिर ,पुराने पीपल के तले आकर्षण का केंद्र है। अंदर शिला लेख के जरिये सारी जुड़ी कहानियां उदृत करवाई गई है। कभी हार जीत के लिये जी जान लगा देने वाले गढ़वाली भड़ ( बीरों ) का ये शक्ति प्रदर्शन का मेला था। उस समय जवानों के रग पटो में बीरता बहती थी। अब सब मोबाइल की भेंट चढ़ गया। 200 मीटर दौड़ने के बाद बच्चे हांफने लगते है। आज भी स्मरण है। गाँव से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर नदी में जब किसी धमाके की आवाज होती तो , घर से दौड़कर मच्छी मारने वालो से पहले गाँव के बच्चे नदी की तलहटी से मच्छी निकाल लाते थे। उंसके शारीरिक संरचना और बल का इसी से अनुमान लगाया जा सकता, फिर क्या कहाँ कैसे हवा, आकाश, जल के पावन देवता इन धरती पुत्रों का अनहित कर सकता था। आजकल मोबाइल गेम खेलते जरा बाहर आंगन में निकल गया तो कहते हवा लग गई। किधर से किधर तक कि दौड़ में हमारे नोनिहाल अब दौड़ रहे है। चलने के लिये बाइक, खाने के लिये पिज्जा, क्वे के से घोसले जैसे बाल बनाये, आजकल का युवा फेसबुक पर कई नई आई डी बनाकर किस मुग़लफते में जीवन गुजार रहा है। राम कृष्ण के पद चिन्ह छोड़, गाय बैलो से दूर कुत्ते की जंजीर पकड़ कर, टोनी मोनी बन गया। ऐसा भविष्य तो हमने नही देखा था। कुछ दिन बाद ये सांगुडे की गिन्दी छीनने की बात तो दूर उस को उठाने के काबिल न रह पाएंगे। आज की भाषा मे कहे ये भविष्य अब डिलीट होने की कगार पर है। चेत मुसाफिर भोर भई , जग जागत है। तू सोवत है। जो जागत है। वो पावत है। जो सोवत है। वो। खो,,,व,,,त है।,,,. ,,,,,, इति गौतम बिष्ट। ©Gautam Bisht उत्तराखंड की स्थानीय कहानी
Dinesh Pandey
इसमें क्या वे पुलिस भी अरेस्ट हैं जिन्होंने आतंकी भीड़ को काबू करने की कोशिश तक नहीं की और उसे निर्दोष को मारने के लिए छोड़ दिया? अगर नहीं तो यह एक्शन ऑय वाश है। प्रशासन की नाकामी
Yashpal singh gusain badal'
एकबार एक प्रसिद्ध पत्रकार कर रहे थे किसी क्षेत्र से साक्षात्कार उन्हें लगा उनकी बहुत दिनों से नहीं छपी कोई धमाकेदार खबर जिसका हो पूरे प्रशासन पर असर सो इसी उधेड़बुन में चले जा रहे थे कई प्रश्न उनके दिमाग में चक्कर लगा रहे थे अचानक कुछ देखा! लगा मिल गया है कोई मसाला फिर सोचा ,प्रशासन की कृषि नीति में है कोई घोटाला ! इतने बड़े खेत में, इतनी कम पैदावर ! फिर तो इस सरकार का रहना है बेकार! पत्रकार महोदय ने लिखनी शुरू कर दी सरकार की आलोचना, लिखा- पैदावार की दुश्मन हो गयी है सरकार की गलत कृषि योजना । लिखा-पैदावार होती!अगर होते उन्नत बीज,नहरें,खाद और प्रशिक्षण, तो आज न आते लोगों के सामने ये भुखमरी के क्षण, फिर जाकर छपवा दी किसी अखबार में वो खबर, फिर इंतजार करने लगे कि खबर का क्या होता है असर प्रशासन ने पढ़ी आलोचना तो उनका दिल घबराया , उन्होंने इसे सत्ता पर विपक्ष का हमला बताया ! मुख्यमंत्री ने अपने सहयोगी मंत्रियों को बुलाया , और अपनी इस नई समस्या से साक्षात्कार करवाया , फिर आवश्यक निर्देशों के साथ एक फंड पास करवाया , तथा प्रशासकीय गलियारों के रास्ते फंड उक्त क्षेत्र को भिजवाया । साथ ही अखबार में घोषणा कर डाली कि हमने व्यवस्था सुधार हेतु रकम उक्त क्षेत्र को भिजवा डाली मगर फंड गांवों तक पहुंचते-पहुंचते हो गया जीरो ! और प्रशासन हो गया हीरो ! प्रशासन की उक्त घोषणा सबने पढ़ी ! मगर पैदावार नहीं बढ़ी । शेष अगले पृष्ठ में ................... यशपाल सिंह "बादल ©Yashpal singh badal प्रशासन (व्यंग) #WorldAsteroidDay
एक इबादत
अत्याचार से धरती कांपी जब -जब टूटी अनुशासन रावण-कौरव और कंश जब -जब जन्म लेला दुशासन नेता-गुण्ड़न के मिली भगत से जब बढ़ जाला कुशासन जे इ सबसे मुक्ति दिलावेला उहई कहाला प्रशासन..!! स्त्रोत- भोजपुरी फिल्म़ (प्रशासन)
Ek villain
शहरों की दिशा सुधारने का समय शीर्षक से प्रकाशित तरुण गुप्ता के आलेख समाधान इंदौर के सबसे विकराल समस्या में से एक को रेखांकित करता है लेखक महोदय का यह कहना उचित है कि अपने मशहूर शहर में शिक्षा स्वस्थ एवं रोजगार के प्राप्त अफसरों का अभाव ही लोगों को बड़े शहरों में पलायन के लिए विवश करता है प्लेन का यह आता है जो सिलसिला पहले से ही दबदबे से जूझ रहे भीम काय शहरों के बुनियादी ढांचे पर दबाव को और बढ़ा देता है फिर चाहे आर्थिक राजनीतिक मुंबई में मानसून के दौरान विचलित करने वाले तस्वीर हो या भारतीय साइबर सिटी बेंगलुरु में भेजा यातायात व्यवस्था या फिर राष्ट्रीय राजनीति क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या से भी दर्शाती है हमारे शहर एक स्तर के बाद पड़ने वाले दबाव का बोझ उठाने में सक्षम नहीं है ऐसे में यह इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि शासन व्यवस्था के तीसरी की आधारभूत स्थानीय निकाय की क्षमता को बढ़ाया क्योंकि मूलभूत सुविधाओं की गुणवत्ता को बढ़ाने में यह संस्थाएं सार्वजनिक योगदान दे सकती हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्र और राज्य के तमाम योजनाओं को जमीनी पर उन्हें नहीं उतारना होता है ऐसे में कोई योजना कितनी भी बढ़िया क्यों ना हो यदि उसे सही ढंग से अमल नहीं हुआ तो वह सिद्ध होंगी इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर कोई ऐसी पहल करनी चाहिए जो स्थानीय नेताओं को अधिक सक्षम एवं जवाबदेही बना सकें ©Ek villain #सक्षम बनी स्थानीय विकास #Hope