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Munni

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

आप आकर मिले दीवाने को । साथ में ज़िन्दगी बिताने को ।।१ सात फेरों सें जब बना बंधन । चल पड़े साथ हम निभाने को ।।२ #शायरी

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Person's Hands Sun Love आप आकर मिले दीवाने को ।
साथ में ज़िन्दगी बिताने को ।।१

सात फेरों सें जब बना बंधन ।
चल पड़े साथ हम निभाने को ।।२

आप आये यही बहुत होगा ।
चाहिए क्या गरीब खाने को ।।३

रूठ जाओ अगर कभी दिलबर ।
जान हाजिर तुम्हें मनाने को ।।४

दो बदन एक रूह हम दोनों ।
चाहते एक अब हो जाने को ।।५

एक मासूक ही नही यारों ।
और भी लोग है भुलाने को ।।६

प्रेम से बात कर प्रखर सबसे ।
आज रिश्ते नये बनाने को ।।७




११/०२/२०२४   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आप आकर मिले दीवाने को ।

साथ में ज़िन्दगी बिताने को ।।१


सात फेरों सें जब बना बंधन ।

चल पड़े साथ हम निभाने को ।।२

aapki_adhuri_baten

#happypromiseday #सुनो उम्र का ताल्लुक़ सालों से नही होता , कभी कभार इन्सान  भरी जवानी में भी  सदियों पुराना हो जाता है... Radh #Radha #ज़िन्दगी

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#सुनो
उम्र का ताल्लुक़ सालों 
से नही होता ,
कभी कभार इन्सान 
भरी जवानी में भी 
सदियों पुराना हो जाता है...
#Radha

©aapki_adhuri_baten #happypromiseday 
#सुनो
उम्र का ताल्लुक़ सालों 
से नही होता ,
कभी कभार इन्सान 
भरी जवानी में भी 
सदियों पुराना हो जाता है...
#Radh

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- लेके आयी हो घर जवाई में । बीत जाये न रात तंहाई में ।।१ #शायरी

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ग़ज़ल :-
लेके आयी हो घर जवाई में ।
बीत जाये न रात तंहाई में ।।१

आ रहा है मजा मलाई में ।
रात गुजरी इसी रजाई में ।।२

हो गया है मिलन जुदाई में ।
जान दे दूँ इसी दुहाई में ।।३

भूल कैसे भला तुझे सकते ।
सात फेरे लिए शगाई में ।।४

जान भी आज ये मेरे हमदम ।
पेश ये तुमको मुँह दिखाई में ।।५

सालियाँ गैर हो नहीं सकती ।
हक मिलें अब इन्हें कमाई में ।।६

सम्धिनें कह रही यहीं अब तो
है तड़प दूर चारपाई में ।।७

आज ससुराल में हुआ स्वागत ।
सरहजे आ गई मिलाई में ।।८

अब सहर दूर ये नहीं होगी
चाँद बेशक रहे गवाही में ।।९

चुप रहे वो यहाँ भले बेशक ।
चुप नहीं चूडिय़ां कलाई में ।।१०

दर्द दिल का प्रखर कहे कैसे ।
आँख भर आई है विदाई में ।।११

११/०२/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-


लेके आयी हो घर जवाई में ।

बीत जाये न रात तंहाई में ।।१

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

प्यार में अब जरा मुस्कुरा दीजिए । प्रेम का रोग मुझको लगा दीजिए ।। प्रेम ही देख पावन जहाँ में रहा । प्रेम का फूल दिल में खिला दीजिए ।। #शायरी

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प्यार में अब जरा मुस्कुरा दीजिए ।
प्रेम का रोग मुझको लगा दीजिए ।।

प्रेम ही देख पावन जहाँ में रहा ।
प्रेम का फूल दिल में खिला दीजिए ।।

प्रेम हमको हुआ जब उन्हें देखकर ।
कह उठा दिल उसे फिर बता दीजिए ।।

प्रेम करना यहाँ यार मुश्किल नहीं ।
प्रीति की रीति बस अब निभा दीजिए ।।

प्रेम के नाम से दिल किसी का कभी ।
टूट पाये नहीं मशविरा दीजिए ।।

प्रेम दिल का तुम्हारे खिलौना नहीं ।
खेल कर क्यों इसे फिर दगा दीजिए ।।

प्रेम को मानते हो अगर तुम प्रखर ।
तो हमें यूँ न दिल से विदा दीजिए ।।

१०/०२/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्यार में अब जरा मुस्कुरा दीजिए ।

प्रेम का रोग मुझको लगा दीजिए ।।


प्रेम ही देख पावन जहाँ में रहा ।

प्रेम का फूल दिल में खिला दीजिए ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- उम्र अपनी ढ़लान तक पहुँची । यूँ लगा पायदान तक पहुंची ।।१ आज दुश्मन बहुत हमारे घर । #शायरी

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ग़ज़ल :-
उम्र अपनी ढ़लान तक पहुँची ।
यूँ लगा पायदान तक पहुंची ।।१

आज दुश्मन बहुत हमारे घर ।
ये ख़बर हर ज़ुबान तक पहुँची ।।२

हम भी दीवाने ही रहे उनके ।
बात उनके न कान तक पहुँची ।।३

खो दिया जब उन्हें यहाँ हमनें ।
हसरतें तब जुबान तक पहुँची ।४

करके मैं इंतज़ार उसका अब ।
आज फिर उस इंसान तक पहुँची ।।५

आज कर दी तारीफ़ क्या उसकी ।
देख लो खानदान तक पहुँची ।।६

प्यार इज़हार क्या किया मैने ।
छोड़ वो घर मचान तक पहुँची ।।७

जाति औ धर्म की लडाई ये ।
आज गीता कुरान तक पहुँची ।।८

मेरा सिंदूर क्या सलामत है ।
पूछने हुक्मरान तक पहुँची ।।९

भूख से तड़पती बिलखती वो ।
अब हमारी दुकान तक पहुँची ।।१०

एक दाना नहीं प्रखर घर में ।
बात क्यूँ मेहमान तक पहुँची ।।११

०६/०२/२०२४     -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

उम्र अपनी ढ़लान तक पहुँची ।

यूँ लगा पायदान तक पहुंची ।।१


आज दुश्मन बहुत हमारे घर ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल तू दबे को नहीं दबाया कर । बात मज़लूम की उठाया कर ।।१ #शायरी

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ग़ज़ल
तू दबे को नहीं दबाया कर ।
बात मज़लूम की उठाया कर ।।१

याद में उनको तू बुलाया कर ।
ख्वाब में फिर गले लगाया कर ।।२

जिस तरह बढ़ रही है जनसंख्या ।
उसमें अपने विचार लाया कर ।।३

मारकर हक किसान का तुम भी ।
धाक अपनी उन्हें दिखाया कर ।।४

देखकर लूट इस तरह जग की ।
बैठ कर चुप न फुसफुसाया कर ।।५

हुस्न जब बेमिसाल है खोजा 
तो नखरे भी सभी उठाया कर ।।६

प्यार में मत करो दगा कोई ।
हँसकर रिश्ता प्रखर निभाया कर ।।७

०७/०२/२०२४   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल


तू दबे को नहीं दबाया कर ।

बात मज़लूम की उठाया कर ।।१

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल बुरे गर बने तो शिकायत मिलेगी । भली आदतों से ही इज्जत मिलेगी ।।१ गरीबों के घर में शराफ़त मिलेगी । यहीं तो तुम्हें हर लियाकत मिलेगी ।।२ य #शायरी

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ग़ज़ल
बुरे गर बने तो शिकायत मिलेगी ।
भली आदतों से ही इज्जत मिलेगी ।।१

गरीबों के घर में शराफ़त मिलेगी ।
यहीं तो तुम्हें हर लियाकत मिलेगी ।।२

यही सोचकर हम भले बन गये थे ।
खुदाया तेरे घर तो जन्नत मिलेगी ।।३

नहीं छोड़कर वो वतन जा सका फिर ।
सुना बेटियों को हिफ़ाज़त मिलेगी ।।४

बढ़ाओ नहीं शौख अपने यहाँ तुम ।
तुम्हें अब न इसकी इज़ाजत मिलेगी ।।४

नहीं जा सकूँगा इन्हें छोड़कर मैं ।
भले ही वहाँ हमको दौलत मिलेगी ।।६

करो तुम सही तो चलन आज अपना ।
तुम्हें भी जहाँ में मुहब्बत मिलेगी ।।७

हमारी वफ़ा पे यकीं उसको होगा ।
तभी हुस्न की ये नज़ाकत मिलेगी ।।८

चला जा प्रखर तू गुरुदेव के दर ।
वहीं पर सही अब निज़ामत मिलेगी ।।९

०९/०२/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल
बुरे गर बने तो शिकायत मिलेगी ।
भली आदतों से ही इज्जत मिलेगी ।।१

गरीबों के घर में शराफ़त मिलेगी ।
यहीं तो तुम्हें हर लियाकत मिलेगी ।।२

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- विषय - आँसू पश्चाताप के आँसू पश्चाताप के ,  निकल पड़े हैं आज । छल-बल से अब तक किया , जो जनता पे राज ।।१ #कविता

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दोहा :- विषय - आँसू पश्चाताप के

आँसू पश्चाताप के ,  निकल पड़े हैं आज ।
छल-बल से अब तक किया , जो जनता पे राज ।।१

आँसू पश्चाताप के , जिसको देते  दंड़ ।
दिखता तो संपूर्ण है , भीतर होते खंड़ ।।२

आँसू पश्चाताप के , धोये तेरे पाप ।
कुछ ही दिन में देखना , घट जाये संताप ।।३

आँसू पश्चाताप के , आयेंगे जब नैन ।
अंतरमन में देखना , आयेगा तब चैन ।।४

आँसू पश्चाताप के , गिरा सके इंसान ।
उसके अच्छे कर्म का , देते फल भगवान ।।५

अब कर्मो के दंड़ से , दुखी हुआ शैतान ।
आँसू पश्चाताप के , गिरा रहा नादान ।।६

नरभक्षी इंसान से , करो हमें प्रभु दूर ।
संग रहूँ इनके सदा , करो नहीं मजबूर ।।७

१०/०२/२०२४   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- विषय - आँसू पश्चाताप के


आँसू पश्चाताप के ,  निकल पड़े हैं आज ।

छल-बल से अब तक किया , जो जनता पे राज ।।१
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