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poonam atrey
जीवन जीना इतना भी सरल नही, कर्म मनुज के साथ साथ चलते हैं, कभी सुख की शीतल छाया है , कभी पल दुखों में ढलते हैं, मिलता है प्रतिफल हमारे कर्मानुसार ,जैसा बोया वैसा काटते हैं, खुशियाँ भी उन्हें ही मिलती है ,जो औरो को खुशियाँ ही बाँटते है, ये जीवन युद्धस्थल है , यहाँ लड़ना भी हमें हर एक पल है, जो इस कर्मयुद्ध को जीत गया ,जीवन बस उसका ही सफ़ल है, जो भी मिलता है जीवन में ,वो सब कर्मो का लेखा जोखा है, इस रणभूमि में उतरने का , सबको मिलता एक मौका है, ये जीवन बहता दरिया है , जो इसमें डूब गया वो पार हुआ, वो जीत गया ये कर्मयुद्ध , जिसे ये महासमर स्वीकार हुआ।। -पूनम आत्रेय ©poonam atrey #कर्मफल #जीवनचक्र
काव्यांगिनी
poonam atrey
जीवन के चक्रव्यूह में, ऐसे फँसे है , कि निकले ,तो जीना शुरू करें..!! 😥😥 ©poonam atrey #जीवनचक्र PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' प्रज्ञा काव्यार्पण Suresh Gulia Mahi Ashutosh Mishra पथिक.. #kukku2004 वंदना .... Deepiitd Nishit R
Nisheeth pandey
जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Sukha जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनन
Nisheeth pandey
पेड़ का जीवन ------------/ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा- अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Pattiyan पेड़ का जीवन ------ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी