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swati soni
किसी रोज़ सोचते हुए मैं लिखूंगी वो यात्रा जो काल्पनिक है हां उनको जीवंत करुंगी साथ उनके चलते हुए कुछ अनूठे से ही किस्से बनाएंगे थोड़ा उन पलों को मिलकर और भी खूबसूरत सा तो थोड़ा हसीन सा बस वक्त के सागर में अपनी नैया को इस तरह से पार लगाना है रुकना नहीं इस सफ़र में अविरल चलते ही जाना है| #स्वाति की कलम से ✍️ ©swati soni #स्वातिकीकलमसे✍️ #कविताएँ #हम_तुम #काव्यात्मकअंकुर🌱 Anshu writer Ayushi Agrawal प्रशांत की डायरी Satyaprem Upadhyay Yash Mehta Internet J
HintsOfHeart.
कवितायें समय की लहरों पर तैरते प्रेम-पत्र हैं । ©HintsOfHeart. #कविताएँ
Anil Ray
ग़र मर्द हो तो तुम्हारी हस्ती का इतना तो रौब रहे... बगल से निकले जो कोई औरत तो वों बेखौफ रहे... ©Anil Ray विचारार्थ लेखन...............✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 एक मछली सम्पूर्ण तालाब को गंदा करती है, ऐसा विद्वान कहते आये है। कहने का अर्थ यह है कि यदि एक मछली
Pankaj Pratap Gunjan
अमर क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह जी की जयंती पर शत शत नमन ©Pankaj Pratap Gunjan #अमर क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह जी की जयंती पर शत शत नमन 🙏🙏
एक अजनबी
एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति, सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती। क्या एक स्त्री और पुरुष किसी और तरह नहीं बँध सकते आपस में ? और बँधें ही क्यों ? उन्मुक्त भी तो रह सकते हैं, समाज के बने बनाए एक ही तरह के खाके से जिसमें सदियों पुरानी एक सड़ांध सी है। एक स्त्री और पुरुष बौध्दिकता के स्तर पर भी एक हो सकते हैं उपन्यास, कविताएँ, कहानियों, ग़ज़लों पर विमर्श करना कहानियों की पौध रोपना क्या दैहिक सम्बन्धों की परिभाषाएँ लाँघता है ? एक स्त्री और पुरुष-घण्टों बातें कर सकते हैं फूल के रंगों के बारे में, तितलियों के पंखों के बारे में, समुद्र के दूधिया किनारों के बारे में, और ढलती शाम के सतरंगी आसमानों के बारे में, पत्तों पर थिरकती, बारिश की सुरलहरियों के बारे में; इनमें तो कहीं भी देह की महक नहीं, दूर - दूर तक नहीं। फिर दायरे, वही दायरे बाँध देते हैं दोनों को। एक स्त्री और पुरुष- आपस में बाँट सकते हैं - एक दूसरे का दुःख, ठोकरों से मिला अनुभव, कितनी ही गाँठें सुलझा सकते हैं, साथ में मन की। मगर, नहीं कर पाते, ......क्योंकि दोनों को कहीं न कहीं रोक देता है, उनका स्त्री और पुरुष होना। एक स्त्री और पुरुष - के आपसी सानिध्य की उत्कंठा - की दूसरी धुरी.. आवश्यक तो नहीं कि दैहिक खोज ही हो; मन के खाली कोठरों को सुन्दर विचारों से भरने में भी सहभागी हो सकते हैं - स्त्री और पुरुष। यूँ भी तो हो सकता है कि - उनके बीच कुछ ऐसा पनपने को उद्वेलित हो, जो देह से परे हो, प्रेम की पूर्व गढ़ित परिभाषाओं से भी अछूता हो, क्यों न दें इस नई परिभाषा को? स्त्री और पुरुष के बीच। ©एक अजनबी #एक_स्त्री_और_पुरुष #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻 *एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति, सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती। क्या एक स्त्री और पुर
Ramkishor Azad
खुशियां वो बहार लेकर आए मुरझाए जो चेहरे फिर से खिले हैं, समाला उस जन्नत को उन चाहने वालों ने जो खुद तो बारूद बने हैं! मोहब्बत क्यूं नहीं करें उन आशिकों से जिन्होंने नफ़रत की जंजीरें तोड़ी है,, बदल दिए गुनाह के वो रास्ते जिनके बंधन से वतन प्रेमी आज़ाद हुए हैं!! डीयर आर एस आज़ाद... ©Ramkishor Azad #वतन_से_मोहब्ब्त❤️🇮🇳 #प्यार #बाबासाहेब_आंबेडकर #क्रांतिकारी #तिरंगा_मेरी_जान #शहीद #शायरी #हिंदुस्तान #India #treanding Eesha ।। Jaipur Que
Mukesh Patle
** भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है। भरकर कविता का प्याला, कभी न कण-भर खाली होगा , लाख पिएँ, दो लाख पिएँ पाठकगण हैं पीने वाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।। ** *हरिवंश राय बच्चन * ©Mukesh Patle #कविताएँ #bookslover💞
Mr RN SINGH
copyright policy ©Mr RN SINGH #लोग कहते की चरखे से आजादी मिली #veer #इतिहास #motivate #क्रांतिकारी #bjp #MrRNSINGH Brajraj Singh Anju brar saab poonam atrey Shourya Prat
Monika Rathee (Raisin Vimal)
तुम लिख लेते हो खुद को बखूबी, अब बारे में तेरे मैं बताऊं क्या 🤔😅 ©Monika Rathee (Raisin Vimal) आपकी फरमाइश पर पेश हैं आपके बारे में विचार मेरे 🤪🤪 बाबा ब्राऊनबियर्ड एक क्रांतिकारी विचारक जो अपने बातों पर कायम रहना बखूबी जानता है.....
Aditya kumar prasad
कि..कविताएँ हैं पूरा जीवन... कविताएँ हमेशा स्वयं को ही नही़ कहती वो गुनती है दूसरों को भी, जो होते है कभी तो दिल के बेहद क़रीब तो कभी बहुत दूर खड़े ! समेट लेती हैं अपनी बाहों में पूरी दुनिया! यदा-कदा उनके भीतर झाँक उठता है आस-पड़ोस भी... पल दर पल बीतते मौसम का भी हिसाब रखती है! कि पिछवाड़े खड़ा नीम कब बौराया था और कितनी निबौली पककर ढे़र हो गयी ! अमलतास खड़ा दहलीज़ पर कितना बतियाता था गुलमोहर संग हॅंसते-हँसते कि पूरी राह ही लाल-पीली हो गयी कहाँ गुम....कि राहगीरों को ढूँढ़नी पड़ी... सावन में झूला झूलती लड़कियाँ कितना खिलखिलायी थी, भूल गयी थी जीवन की सारी बंदिशें.. पलाश कितना फूला और रंग गया फागुन में न जाने किस किसका मन ! आसमान ने बदले न जाने कितने ही रंग कब वह सुनहरे से हुआ नारंगी ! कैसे लुका छुपी खेलते रहे बादलों के छौने काला हाथी बन, कब सबको धमकाया... बुलबुल ने लॉन में खड़े बड़े से घने पेड़ में छुप अपना घर-संसार बसाया, चाँद तारों की बरात ले कब आँगन में चुपके से मुस्काया.. सब हिसाब रखती हैं एकदम मुंशी बन... समझ नहीं पाती मैं, कभी-कभी कि जीवन से जुड़ी है कविताएँ या कविताएँ ही है पूरा जीवन !! ©Aditya kumar prasad कि..कविताएँ हैं पूरा जीवन... Lalit Saxena Sethi Ji Anshu writer Dr.Strange_Shayar Radhey Ray Urvashi Kapoor Prajwal Bhalerao Puja Udeshi R