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Kavita jayesh Panot
हा घोर कलयुग आ गया, ये कैसा छलयुग आ गया। नो महीने पेट में पाला जिसने, जीवन और मौत की परवाह किये बिना, जिसने जन्म दिया, एक बीज से , पौधा बना दुनियाँ, में अस्तित्व जिसका खड़ा किया। ऐसी जननी देवी को, काया कल्प शिथिल हो जाने पर, अनाथाश्रम विदा किया। जिसने न कभी अपनी परवाह की, न भीषण धूप, न कड़कड़ाती ठंड, तेज बारिश की बौछार , सदैव एक मजदूर सा बंध, श्रम करता रहा घर से बाहर। ऐसे विश्वकर्मा से पिता के, कर्ज को भी पड़ लिख बाबू बन, छोड़ आते है गेरो के हाथों में, बुढ़ापे को पहाड़ सा एहसास करा बिताने, ये कलयुग है ..... घोर छलयुग है , जहाँ श्रवण कुमार नहीं अब संताने। जो बैठा चार पहिये वाहन में, छोड़ आते है अपने ही, अस्तित्व की वजह को , अनाथालय। बाकी तो क्या होगा इससे बड़ा उदाहरण, कलयुग का, क्या बात करे किसी औऱ विषय की, इससे बड़ा क्या छल है। हा बात एक ही काफी है, इस कलयुग को , छलयुग कहने को। हा ये कलयुग है घोर छलयुग----- घर की नींव है बूढ़े माँ बाप, निवेदन है इंसानों इन्हें.... अनाथालय के कारावास से मुक्त करो, बुढ़ापे को इनके लाचारी न बनाओ, इन्हें घर में ही बसा, घर को इनके आशीषों से महकने दो, घर को घर ही रहने दो। #हा घोर कलयुग है#छलयुग है ये
#हा घोर कलयुग हैछलयुग है ये
read moresomnath gawade
पोटाचा वाढणारा 'घेर' हा तुमच्या जीवाला 'घोर' लावत असेल तर तुम्ही अजूनही तरुण आहात. 🤣😂 #घोर
Prashant Mishra
मैं गर 'मैसेज' नहीं भेजूँ, या 'Status' नहीं डालूँ तो कोई बात की 'शुरूआत' भी करता नहीं मुझसे --प्रशान्त मिश्रा "घोर परायापन"
"घोर परायापन"
read moreRohidas maharaj Sanap
नको नको मना गुंतु मायाजाळी । काळ आला जवळी ग्रासावया ॥१॥ काळाची हे उडी पडेल बा जेव्हा । सोडविण तेव्हा मायबाप ॥२॥ सोडविण बंधु पाठीची बहिण । शेजारची कामिन दुर राहे ॥३॥ सोडविण राजा देशीचा चौधरी । आणिक सोयरे भले भले ॥४॥ तुका म्हणे तुज सोडविण कोन्ही । एका चक्रपाणी वाचुनिंया ॥५॥ श्री . हभप रोहिदास महाराज सानप ( बेजगांव ) मो .9822888295 ©Rohidas maharaj Sanap # नको नको मना गुंतु मायाजाळी #Thinking
राजेश कुमार बी.जी
"घोर आस्था " मंदिर बनाए थे एहसास के लिए और तुमने घोर आस्था लगा ली पत्थर को तोड़ा, तराशा और एक मूर्ति बना दी दानी सजनो ने धन दिया वो मन्दिर सजा दी पत्थर की तकदीर ही बदल दी मजदूर ने पत्थर बन बैठा माँ काली और तुमने घोर आस्था लगा ली बस मंदिर जाने से कहाँ ज्ञान मिलता है बहुत मुश्किल से यहां इंसान मिलता है मेहनत से पत्थर बदला मूर्त में जो भी है तन के अंदर है तू उलझ गया है सूरत में नित जेब तेरी हो रही है खाली और तुमने घोर आस्था लगा ली पेट बच्चों का पलता नही है तू प्रसाद कबूले बिन चलता नही है पाखंड में बचत खो रहा है और सोचता धंधा फलता नही है सिंचता है आपने हाथों से पौधों को तो बगिया हरी बरी है कब बादलों को ताकत है माली और तुमने घोर आस्था लगा ली ....राजेश बडगुज्जर घोर आस्था
घोर आस्था
read moreRahul Nirbhay
#घोर_कलयुग_है_भाई, अब वक्त ऐसा आ गया है कि गलत को गलत बताना भी गलत है.! ✍️ घोर कलयुग
घोर कलयुग #घोर_कलयुग_है_भाई
read moreKavita Bhardwaj
घोर कलियुग ये कैसा छाया हर घर बिक रहे जहां इंसान, मोल रिश्तों का समझ में ना आया। माटी के पुतले सा हो गया जीवन सब आदर्शों को रद्दी के भाव जलाया, पग पग चले सब अपनी शर्तों पर बुरे मंसूबों ने है गहरा जाल बिछाया। समय की है ये बेबस डोर चार दिन की जिंदगानी फिर भी कैसा.. ये बेहिसाब चाहतों का शोर । ना करे कोई भरोसा किसी पर ना ही दुख बंटे घर - द्वार, चहुं ओर छलावे का परचम अपनों पर नहीं किसी को ऐतबार। घोर कलियुग ये कैसा छाया एक-दूजे से ज्यादा, प्यारी सबको माया, बज रहा सब तरफ लोभ का डंका जो अब ना संभले तो समझो, लग गई इंसानियत की लंका। ©Kavita Bhardwaj #घोर #कलियुग