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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार । सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।। प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीवन फलता । लेकिन पग-पग आज , हमारा जीवन जलता ।। त्याग छोड़ व्यहवार , समय कहता है लाला । बुजदिल समझें लोग , देखकर मुँह पर ताला ।। १२/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र-चिंतन :- कुण्डलिया ताला मुँह पर मैं लगा , बैठा अब तक यार । सोचा था अनमोल है , प्रेम जगत व्यहवार ।। प्रेम जगत व्यहवार , इसी में जीव
Andy Mann
इन सारे झमेलों से मैं वाक़िफ़ हूँ अज़ल से दिखला न मुझे हिज्र की ये कश्फ़-ओ-करामात ये पेड़ तिरी याद से सरसब्ज़ हुआ है झड़ सकते नहीं इस के किसी तौर कभी पात ©Andy Mann #पर तिरी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- मादक पर ही हो रहा , देखो कितना शोध । कोई कुछ करता नहीं , लगवाओ अवरोध ।। लगवाओ अवरोध , करे यह सबको रोगी । बिकता घर बाजार , नही ये जन उपयोगी ।। मिलकर करें गुहार , बहुत ही है ये घातक । होते घर बर्बाद , यहाँ सब पीकर मादक ।। १५/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- मादक पर ही हो रहा , देखो कितना शोध । कोई कुछ करता नहीं , लगवाओ अवरोध ।। लगवाओ अवरोध , करे यह सबको रोगी ।
अमित कुमार
White इंसान अगर बांध ना बनाए,वो नदियों के जलधारा को मोड़ेगा कैसे । दूसरों से ज्यादा खुद पर भरोशा हो,और कोई अपना दिल तोड़ेगा कैसे।। ©Amit खुद पर भरोशा
Guddu Alam
उम्मीद पर दुनिया टिकी है और मैं भी टिका हूँ, कहीं शायद मेरा एकतरफ़ा इश्क़ तुमसे दोतरफा हो जाए।" ©Guddu Alam उम्मीद पर दुनिया
Naresh Kumar khajuria
White ऑनलाइन ०००००० ऑनलाइन मत आना आज मुझे देखने छत पर जाना स्क्रीन मुझे नहीं दिखा सकती पूरा चांद मुझे पूरा दिखा सकता है शायद चांद कहे तुमसे मेरे बारे में --- मैं छत पर हूँ और एक किस्सा सुना रहा हूँ चांद को - एक पगली है स्क्रीन पर रहती है स्क्रीन में हंसती है स्क्रीन में रोती है आंखें सुजा लेती है.... उसको कहना मेरे बारे में प्रेम में मेरी आँखें कभी जलती नहीं मैं चांद के जमाने से प्रेम करता हूँ स्क्रीन का जमाना आज आया। ©Naresh Kumar khajuria चांद पर प्रेम
Arora PR
White मुझे उदास देख कर मेरे अजीजो ने मुझे बहुस सारे हास्य विनोद के किस्से सुनाये इसके बावजूद न मै खुश हो सका और न ही अपनी उदासी पर लगाम लगा सका ©Arora PR उदासी पर लगाम