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manoj kumar jha"Manu"
कोरोना कोरोना रे कोरोना कोरोना रे मत दुनिया में मौत फैला रे। इस दुनिया को छोड़ के जा रे।। कोरोना कोरोना रे.......... कहाँ से तू आया , कहाँ जायेगा तू, मौत बन के कब तक ऐसे छायेगा तू।। जहर बनके जिन्दगी को रहा तू निगल, जिन्दगी में गया है जब से तू मिल।। कोरोना कोरोना रे.......... बरसने लगी हैं आँखे भी अब तो, डरने लगी हैं साँसे भी अब तो।। चारों ओर तेरा ही शोर मच रहा, हे विधाता! ऐसा क्यों भाग्य रच रहा।। कोरोना कोरोना रे............. मेरा भारत फिर भी न मानेगा हार, कोरोना ही यहाँ पर मानेगा हार। देह से दूरी बना, मन को पास लाओ, संयम का परिचय दे "मनु"कोरोना को हराओ।। कोरोना कोरोना रे.......... कोरोना कोरोना रे (मेघा रे मेघा रे फिल्मी गीत)
Parasram Arora
बहुत दिनों से वे मेघ गरज रहे है. पर बरस नहीं रहे हैँ शायद हल्के फुल्के होने क़े कारण हवा पर स्वार होकर सैर सपाटे क़े लीए निकले होंगे हा यही मेघ अगर भरे पूरे होते और रंग भी उनका घना होता तों वे बरसते भी गरजते भी और बिजली भी कड़कड़ा रहे होते इसलिए ऐसे बादलों की पूजा भी की जाती है ताकि वे जम कर बरसे लेकिन कुपित होकर उन किसानो क़े कच्चे मकानॉ और खेत खलिहानो को बहा कर न ले जाय बादल तों वही मन भावना और प्रीती योग्य होते हैं ज़ो बूँद बूँद कर रिस्ते हैँ और किसान क़े खेतोँको अच्छे से सींच कर उन्हे. उम्दा फसल क़े योग्य बनाते हैँ ©Parasram Arora मेघा रे मेघा.....
Parasram Arora
आसमान मे विशाल हाथियों की शक्लमें मेघ आते हैँ गरज बरस कर तपती धरती की प्यास बुझाते हैँ. वायुमंडल की परतें कई हैँ और उन परतों मे बनने वाले मेघ भी कई प्रकार क़े होते हैँ सभी बरसते नहीं कुछ कड़कते है कुछ गरजते हैँ और कुछ ही बरसते हैँ और उस बरसात मे केवल पौधो. पर ही फूल नहीं खिलते बल्कि इंसान क़े मन मे भी मुहब्बत क़े फूल खिलने लगते हैँ ©Parasram Arora मेघा रे मेघा.....
Rao pradeep
Amit Singhal "Aseemit"
सूख रही यह धरती, बरसो रे मेघा बहुत ज़ोर से, ऐसे कि माटी की सुगंध आ जाए हर ओर से। मेघा तुम अपने भीतर जल भरकर कहाँ जाओगे, सूखी धरती पर बरसो, लाखों दुआएं पाओगे। ©Amit Singhal "Aseemit" #बरसो #रे #मेघा
Santy Hopes
बरसो रे मेघा मेघा बरसो रे मेघा मेघा
Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
जब-जब मेघा बरसे थे,ये नैना तुम बिन तरसे थे, मस्त,मधुर मन के सावन,रिमझिम बारिश में तडपे थे। यादों के वो कटुर तीर,मन को छलनी कर जाते थे, जब-जब बादल संग मस्त हवा,बालों को छू कर जाते थे। हाथों में वो हाथ तुम्हारा,कदम-कदम संग साथ तुम्हारा, नैनों से बातें होती और हर दम मिलता प्यार तुम्हारा। जब-जब बादल गरजे थे, तुम बिन हम कितना तरसे थे, बूंद- बूंद नभ से गिरकर, मेरे मन पर जमकर बरसे थे। ©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal #मेघा