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tripti agnihotri
तृप्ति की कलम से शब्द-शब्द के भाव हैं, भावों के है चित्र। कौन समझ पाया यहाँ, उन भावों को मित्र।।1।। शब्द-शब्द घायल हुआ, अक्षर रहा पुकार। हे!निर्मोही क्यों गया , तू नदिया के पार।।2।। इस दुनिया मे हर कही, बिखरा है संताप अपने-अपने कर्म है, अपना पुण्य प्रताप।।3।। संगत का पड़ता असर, कहते संत-सुजान। बड़े-बड़े ज्ञानी फँसे, भूले अपना ज्ञान।।4।। निश-दिन पत्थर तोड़कर, करती जीवन पार। पत्थर को आकार दे, पत्थर से ही प्यार।।5।। स्वरचित तृप्ति अग्निहोत्री ©tripti agnihotri तृप्ति की कलम से दोहे
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तृप्ति की कलम से एक ग़ज़ल #बेवजह_भी_कभी_कहकहा_कीजिए 212 212 212 212 बेवजह जुल्म को मत सहा कीजिए। मग्न खुद में हमेशा रहा कीजिए। रूठ ही जायगें है जिन्हें रूठना बात मन की हमेशा कहा कीजिए। वक्त रहते करो बात खुद से कभी भावना में न आकर बहा कीजिए। चार दिन का है जीवन खुशी से जिओ शोक की अग्नि में मत दहा कीजिए। क्या पता कब सफर खत्म हो जायगा बेवजह भी कभी कहकहा कीजिए। स्वरचित तृप्ति अग्निहोत्री लखीमपुर खीरी ©tripti agnihotri तृप्ति की कलम से गजल