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Shariq Siddiqui

स्त्री के प्रति सोच...... अंदर से ये खोकले स्त्री पर ये भौंकते, दुसरो की बेटियों पे नज़रे गन्दी डालते, एक तरफ तुम बोलते मेरा देश बदल रहा #shayri #girl #writer #समाज

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स्त्री के प्रति सोच...... 

अंदर से ये खोकले स्त्री पर ये भौंकते, 
दुसरो की बेटियों पे नज़रे गन्दी डालते, 
एक तरफ तुम बोलते मेरा देश बदल रहा है,  
फिर सोच क्यों तुम्हारी १४ वी सदी की है, 

ये २१ वी सदी है तुम सोच अपनी बदलो, 
स्त्री के प्रति तुम सम्मान भाव रखो, 
स्त्री ही माता, स्त्री ही बहन है, 
स्त्री ही सही मायने में इस जग की रचियता, 

कमज़ोर मत तुम समझो आज की स्त्री को, 
सभी छेत्रो में है इनका बोल बोला, 
यु तो रूप है माँ दुर्गा का पर काली भी बन जाती है, 
ये आज की स्त्री है तुम अपनी सोच बदलो.... 

✍️बेबाक शायर ✍️
मो. शारिक सिद्दिकी

©Shariq Siddiqui स्त्री के प्रति सोच...... 

अंदर से ये खोकले स्त्री पर ये भौंकते, 
दुसरो की बेटियों पे नज़रे गन्दी डालते, 
एक तरफ तुम बोलते मेरा देश बदल रहा

Somesh Pratap Singh

फरहान सिद्दिकी #Poet #shayri #shayrioftheday #devdas #kahanikaar #शायरी

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निलम घाडगे

प्रश्न हा आहे! -तनवीर सिद्दिकी #MainAgarKahu

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SUFIYAN"SIDDIQUI"

फिर भी भूला गये, सुफियान"सिद्दिकी,। #Shayari

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कहते है दिल ना दुखाना चाहिये फिर भी दुखा ग़ये,
वो कहते थे  कभी भूल ना पायेगें फिर भी भूला गये।
पिलाये थोड़ा सा ही जाम ए इश्क़ उसने निगाहों से इस कदर,
वो ताउम्ऱ नशे में झुला गये।

कवि/शायऱ 
सुफियान"सिद्दिकी"
अररिया बिहार । फिर भी भूला गये, सुफियान"सिद्दिकी,।

SUFIYAN"SIDDIQUI"

#MothersDay सुफियान"सिद्दिकी"के अंदाज में।।

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जब बचपन में उसको चेहरे पर थप्पड़ लगाते हुये देखा,
तब-तब  खुद  को गलत  काम  से  बचाते हुये देखा ।

जब   मेरे   आँखों   से  आंँसूं  टपकते   हुये  देखा,
सीने  से लगा ली ममता  के उसको बरसते  हुये देखा।

लगी  जन्ऩत़ सी  हवायें जब  जब  मेरे  जीस्म़  में ,
मैं   खुद  को  माँ  के गोद  में  सोते  हुये   देखा ।

पाला है मुझे उसने कलेजे की एक टूकड़े कि तरह,
तेज धुप में जब उसे,आंचल से ढ़कते हुये देखा ।

पुछ   कर   खबऱ वो   लगी   रोने दुर गॉव  में,
जब  भी   लॉकडाउन   को  बढ़ते  हुये  देखा।

धरों   में  खाना  खाना  छोड़  चुकी  थी वो,
जब मुझे सपने में भूख़ से तड़पते हुये देखा।

खुदा का शुक्ऱ है दुनियां दौलत रखी थी उसके सामने,
फिर भी में उसे,मेरे चेहरे की दीदार को तरसते हुये देखा।

दुआं करने लगी वो रो रो खुदा से दामऩ को फैलाकर,
जब भी मुझे जिंदगी के सफर में लड़खडाते हुये देखा।

आँखें हो गई थी उसकी अचानक नम"सिद्दिकी"
घर जाने की खुशी को जब गम़ में बदलते हुये देखा।

कवि/शायऱ
सुफियान"सिद्दिकी"
अररिया बिहार। #MothersDay सुफियान"सिद्दिकी"के अंदाज में।।
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