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शून्य(ब्राह्मण)
"सीमा"अमन सिंह
PRIYA SINHA
Nisheeth pandey
Devesh Dixit
वृक्ष एक लकड़हारा लेकर आया, कुल्हाड़ी अपने हाथ में। एक सदस्य था और भी आया, जो था उसके साथ में। हरियाली से ये बाग़ भरा था, जो था खेत खलिहान में। उनका ध्यान अब हम पर था, हम भी थे तब मैदान में। घबराए सकुचाए सोच रहे थे, क्या होगा अपने साथ में। वहाँ पर और भी वृक्ष खड़े थे, जो सूखे थे वहीं बाग़ में। पर आ रहे थे वो मूर्ख यहीं पर, थे वो अब अपनी धाक में। उठाई कुल्हाड़ी उसने मुझ पर, मैं बोला अब अवसाद में। मुझको छोड़ो उसको काटो, वो सूखा खड़ा है बाग़ में। हम हरे भरे हैं हमें मत काटो, आओगे वरना संताप में। वर्षा न होगी अब फिर कभी, तब आओगे अकाल में। भूख भी थमेगी नहीं कभी, फँसोगे तुम जनजाल में। अभी वक्त है संभलजा वरना, पहुँचोगे तुम यमधाम में। ऐसा न आगे तुम कभी करना, संकट बनोगे संसार में। ईश्वर भी खफा होंगे तुमसे, जो रहे अपनी धाक में। तब न रोना ग़लती हुई तुमसे, अभी हो हमारी ताक में। ............................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #वृक्ष #nojotohindi वृक्ष एक लकड़हारा लेकर आया, कुल्हाड़ी अपने हाथ में। एक सदस्य था और भी आया, जो था उसके साथ में।
Yashpal singh gusain badal'
रिश्ते ठंडे हो गए हैं रिश्ते, अपनत्व की उष्णता के बिना, लाभ-हानि को नापते हुए, खो चुके हैं अपनी गरिमा, हो गए हैं सब प्रथक और विभक्त , कुछ दाएं,कुछ बाएं, कुछ ऊपर उठ गए, कुछ नीचे छूट गए, कुछ बहुत ठंडे हो गए ऊंचाई पाकर, हिमाच्छादित चोटियों के तुल्य, जम चुकी है अभिमान की बर्फ उन पर , कुछ कुंठाग्रस्त होकर हो गए एकांकी, कुछ बैठे हैं स्थिल भावविहीन , निराश, आशा विहीन,अवसादग्रस्त, कुछ उद्विग्न, कुछ शंशय युक्त, कुछ ऊर्जावान भी हैं,प्रबुद्ध चेतना के साथ, जीवन को रसयुक्त बनाये हुए, मगर इन रिश्तों में एक रिक्तता है, जैसे एक तालविहीन गीत , लेकिन कौन प्राणमयी बनाये इन संबंधों को ! कौन मधुर सुर दे इन रिश्तों को ! कौन करे ऊर्जा संचरण ! कौन निराशा तोड़े ! कौन विश्वास जगाए ! कौन भगीरथ बन कर तप करे, शिव सा प्रेम जगाए ! कौन मंदरांचल बन मथनी बने ! जो निष्प्रह बीतराग गाये। कोई तो बहे प्राणरस बन , प्रेम का संचार करे ! भावविहीन संबंध नष्ट हो जाएंगे, प्रेम और उष्णता के बिना, कोई तो कृष्ण बने, मार्ग दिखाए, कोई तो नीलकंठ बन, समस्थ गरल पी जाए, कोई तो राम बने, जो विश्वास का प्रतिमान बन जाये, बने मरुत सुत सा सहचर , संकट हर जो हर कष्ट मिटाये । रचना-यशपाल सिंह बादल ©Yashpal singh gusain badal' ठंडे हो गए हैं रिश्ते, अपनत्व की उष्णता के बिना, लाभ-हानि को नापते हुए, खो चुके हैं अपनी गरिमा, हो गए हैं सब प्रथक और विभक्त , कुछ दाएं,कुछ
pavan
Niti Adhikari
ऐ खुदा इतनी नफरत दे दे कि प्यार कहीं दिखाई ही ना दें मिला दे उस धुंध में मुझे बीते कल की परछाई दिखाई ना दे नहीं संभलती नाउम्मीद उम्मीदें मुझसे कोई आस कोई किनारा कोई सहारा ना दें बरकरार रख उन नाखुदाईयों को कोई साथ कोई समझौता कोई खुदाई न दे दफन करना हो जहां खुदको मुझे वो महफिल वो आबोहवा ना दें बिखर चुका है हर मोती मुझसे कोई लड़ी कोई सूत कोई कर कलश न दें ©Niti Adhikari #अवसाद
Praveen Jain "पल्लव"
Holi is a popular and significant Hindu festival celebrated as the Festival of Colours, Love, and Spring. पल्लव की डायरी मुस्कराने की बजह बने तीज त्योहार गमो को भूलाना है गरीबी में तब भी हम जीते थे मगर अवसाद और डिप्रेशन में नही जाते थे समाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी थी हम सबके दुख दर्द को गले लगाते थे ये त्योहारो और संस्कृति का जो चलन है उसमे हम जाति पाती और मजहब से ऊपर कौमो का मेला लगाते थे होली को फ़ूडता और उदण्डता का त्योहार बताकर लोग हमें पिछड़ा और जंगली होने की तोहमत लगा जाते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #holi2024 तब गरीबी में हम अवसाद और डिप्रेशन में नही जाते थे #nojotohindi