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Sarita gautam
माथें चंद्र विराजे इनके गले सर्प की माला नील कंठ कहलाते जग में, भोले नाम बड़ा है प्यारा, ध्यान मुद्रा इनको भाए, महाकाल ये बन जाए, भूत पिसाच निकट नही आए जो महादेव का ध्यान लगाए, भांग धतूरा इनको भाए बैल पत्र से खुश हो जाए, नमः शिवाय जप जो करले जीवन उसका सफल हो जाए।। सरिता🍂....✍🏼 ©Sarita gautam #महाशिवरात्रि#महाशिवरात्रि #जय_महाकाल
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
nag
रातों में रात आयी हैं, महारात्रि की रात आयी हैं, आज हुआ था, मेरे भोले और माँ पार्वती जी का मिलन, आज रात उसी महाशिवरात्रि की रात आयी हैं। महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं आप सब को महाशिवरात्रि
Death_Lover
योगी भी है जोगी भी है, मेरा भोला भाँग-धतूरे का भोगी भी है विषधारी भी है मधुरकंठ वाणी भी है, मेरा भोला नागों का धारी भी है कैलाश बैठ मग्न रहता है, मेरा भोला ध्यान में संलग्न रहता है जब-जब नेत्र तीसरा ये खोले है, तब-तब विनाश की घंटी धरा पर बोले है जब भोला श्रृंगार में जी को लगाता है, तब पार्वती को विचित्र-विचित्र व्यंग सुनाता है लोभ छोड़ पाखण्ड छोड़ जो भोले नाम रस पीता है, "हिमांश" ऐसा मनुष्य इस काल से अनन्त कालों तक इस धरा पर जीता है॥ #महाशिवरात्रि
Rahul Chhawal
#महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ #हर_हर_महादेव... #RahulChhawal... महाशिवरात्रि