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Antima Jain
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एक माँ का बलिदान(पन्ना धाय) पन्ना के बलिदान को न भूल सकेगा इतिहास कभी, वो तुम ही थी महान एक माँ जिसने देकर अपने पुत्र की कुर्बानी मेवाड़ की रक्षा करके मेवाड़ी परिवेश को था बचाया,आया जब बनवीर रक्त में डूबी तलवार लिये,कहती किससे वो एक माँ पीड़ा अपने मन की,जब राजकुवँर की सेज पर वार करे अनगिनत बनवीर,चंदन का बलिदान देकर पन्ना धरे है धीर,चंदन को उदय समझ कर बनवीर ने किया तलवार से पहला वार, चंदन लहुलुहान हो गया जब बही लहु की धार, उफ ..! तक न किया उस माँ ने बचाने जान राजकुवँर की ख़ातिर,चुप रह कर मन पर पत्थर रख कर किया उस भयानक मंज़र का सामना क्या बीती होगी उस माँ पर जब उसके लाल को उसी के सामने किया होगा लहुलुहान प्रणाम ऐसी माँ को जिसने अपने जिगर के टुकड़े का बलिदान दिया,बचा कर मेवाड़ की आन बान शान को इतिहास के सुनहरे अक्षरो की किताब में अपना नाम एक वीरांगना सशक्त निडरता की मूरत के रूप में एतिहासिक किया, मेवाड़ की पृष्ठभूमि बचाने की ख़ातिर कर दिया कुर्बान अपने जिगर के टुकड़े का,सलाम है ऐसी माँ पन्नाधाय का जिसने एक नया इतिहास रचा, #tarunasha
परवाज़ हाज़िर ........
मारा राजस्थान री धरती म कण कण म स्वाभिमान ' किया यहाँ के वीरों ने उसका अभिमान " हर स्थल शौर्य और बलिदानों से भरमाया है " यहाँ की वीरांगनाओं ने अपने स्वाभिमान की खातिर कई बलिदान किये पन्नाधाय सी गौरव गाथा ' " अपनी औलाद को बलिदान करिओ माँ का कर्त्तव्य छोड़ स्वामीभक्ति पे बेटो वारदियो " #Birth_Anniversary_sawamibhakt_pannadhay मारा #राजस्थान री #धरती म कण-कण म स्वाभिमान ' किया यहाँ के वीरों ने उसका #अभिमान " " हर स्थल #
Parijat P
माँ को बस माँ की ही उपमा दे सकते हैं उसके बराबर पूरे जगत में कोई नहीं ... यूँ तो दुनिया में हजारों जादूगर ,जोहरी ,शिल्पकार हैं पर माँ सी सजीव प्राणों वाली माला किसी ने पिरोई नहीं ... धूप से बचाव और ठंडी से राहत मिल जाती है हर कपड़े में पर माँ के आँचल सी सूकून भरी दूजी कोई रज़ाई नही... वीरता, बलिदान, ममता हर गुण होगा हर व्यक्ति में पर माँ पन्नाधाय सी स्वामिभक्ति, ममता किसी ने निभाई नहीं ... पल भर में साथ छोड़, मन से दूर चले जाते हैं लोग माँ के अलावा खुशियों की झोली यहाँ किसी ने सिलाई नहीं ... सर से हाथ फेरकर हर तकलीफ़ दूर करती हैं वो बड़े से बड़े वैद्य के पास भी उसके जैसी दवाई नहीं ... रब सदा खुश रखना दुनिया की हर माँ को तेरा भी अस्तित्व धुँधला जायेगा अगर ना होगी माई कही... ©Parijat P सजीव प्राणों की माला = हम इंसान पन्नाधाय = वो वीरमाता जिसने मेवाड़ के वंश को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान दिया.. 🤗❤ maa dedicate to al
Divyanshu Pathak
पक्षधर हो चुके अधर्म और अनीति के जो पैरों तले उनके ज़मीन हिला देता मैं चलो आज अन्याय और अधर्म के ख़िलाफ़ अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते है। मैंने दो पंक्ति आपको सौंप दी हैं अब आप की बारी .... ..आओ कॉलेब्रेशन करें
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
कवि हद्रय बहुत ही सुँदर होता है--- कवि हमेशा मानव प्रेमी होता है,,वह किसी राष्ट्र विशेष का नही होता है जब काव्यिक मंच पर""""एक साथ (अकबर त
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त