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ARVIND KUMAR KASHYAP
kabir pankaj
मोहताज नहीं हूँ मैं इन तारीखों का, बांधता इश्क़ नहीं, खुला परिंदा हूँ... और जऱे-जऱे पे, तेरा नाम लिखता, मैं पागल-सा आशिक़, बस तुम्हारा हूँ... ♥️♥️ ©kabir pankaj मोहताज नहीं हूँ मैं इन तारीखों का, बांधता इश्क़ नहीं, खुला परिंदा हूँ... और जऱे-जऱे पे, तेरा नाम लिखता, मैं पागल-सा आशिक़, बस तुम्हारा हूँ...
Krishna Soni
कभी सोचना- लड़ाई तब तक ही जायज़ है जब तक वो दो समुदाय तक सीमित है , अगर वो आगे बढ़ी तो उनके बीच मे आने वाली हर एक चीज़ को राख कर देगी । ©Jzbaat❤️se #जऱा #सोचकर #देखो #सोच #बदल #कर #देखते #है #jzbaatdilse #सियासत Badsaha Ahir Anoop Sony Innocent Boy Satish Mathur Anjalisahu_fights_fr_prf
Anita Saini
मौसम ए बहार में उम्मीद का चऱाग रखा है..! तुम आओगे जऱूर एक दिन.... इसलिए यादों को लिहाफ़ बना रखा है ..!! मौसम ए बहार में उम्मीद का चऱाग रखा है..! तुम आओगे जऱूर एक दिन.... इसलिए यादों को लिहाफ़ बना रखा है ..!! 17/8/2018 #AnitaSainiAnnu #yq
Rabindra Kumar Ram
" कुछ बात मुनासिब कर तो देते, जऱा सी बात ❤ कुछ खास कर तो देते, अदावते इश्क़ की किस लब्ज में समझाई जाये, जो कुछ भी मुमकिन था कही तक ला के छोड़ तो देते, आधी-अधुरी जहाँ तक बन पड़ता चलाते हम, किसी गली - मुहल्ले - चैराहे तक ला के मुझे छोड़ तो देते. " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " कुछ बात मुनासिब कर तो देते, जऱा सी बात ❤ कुछ खास कर तो देते, अदावते इश्क़ की किस लब्ज में समझाई जाये, जो कुछ भी मुमकिन था कही तक ला के
Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** रफ़ाक़त *** " यूं याद जऱा तुम भी करोगी , मेरा ज़िक्र जऱा तुम भी करोगी , फ़कत ये भी कभी तुम मिलना चाहो , और मैं तुम्हारे सामने से चुपचाप सा गुजर जाऊ , रफ़ाक़त हो की फिर कोई बात हो फिर से कही , मुझे इक दफा पहली जैसी मुहब्बत हो कहीं , दिल कभी इसी ख्याले-ए-आरजू में डुब जाता हैं , मैं तुझमें खोऊ और इस रंजे-ए-गम से निकल ना पाऊं कभी , कर जऱा ख्याल की ख्याले-ए-आरजू फिर से इसी हसरत में हैं , मैं तुझसे मिला हूं पर तुझे उस तरह से मिल नहीं पाया हूं कभी ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** रफ़ाक़त *** " यूं याद जऱा तुम भी करोगी , मेरा ज़िक्र जऱा तुम भी करोगी , फ़कत ये भी कभी तुम मिलना चाहो , और मैं तुम्हारे
Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** तसब्बुर *** " हम याद जऱा तुम्हें करेंगे , तेरी बात जऱा खुद से करेंगे , मुख्तलिफ मसले फिर क्या किया जाये , हम खुद में तुम्हें खोजते फिरेंगे , रास आये हयाते-ए-हिज्र फिर वो बात कहां मुलाक़ात कहा , सवालात जो करु फिर वो बात कहां , मिलना हैं की बिछड़ना हैं वो , मुख्तलिफ सवगात हैं , मिल की बिछड़ना ना परे , ऐसे में हमारी गुफ्तगू कहा , सब आईने के दस्तूर पुछते हैं , अभी तुम से मेरा मिलना हुआ कहा , कोई रुख करु तो फिर कोई बात हैं , बुझते जज्बातों के वो दौर कहा , यु खोना भी तूझे खोना है , फिर तुझसे मैं ग़ैर इरादातन फिर मिला कहां , कोई बात आज भी आईने के दस्तूर लिये बैठा हैं , मिलते तो पुछते तुम से कौन शक्ल अख्तियार किए बैठे हो , जो तसब्बुर के ख्यालों से तुम हु-ब-हू कहीं नहीं मिलते ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** तसब्बुर *** " हम याद जऱा तुम्हें करेंगे , तेरी बात जऱा खुद से करेंगे , मुख्तलिफ मसले फिर क्या किया जाये , हम खुद में तु
Rabindra Kumar Ram
" यूं तो होने का मैं भी हूं , यूं तो होने का तुम भी हो , फिर किस में किसकी वजूद तलाश की जाये , तलबगार हैं कि बात जाहिर हो तो हो कैसे , रुख ये भी हैं बात जरा जाहिर ये भी हैं , खुद में खुद से किसकी मौजूदगी तलाश की जाये . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " यूं तो होने का मैं भी हूं , यूं तो होने का तुम भी हो , फिर किस में किसकी वजूद तलाश की जाये , तलबगार हैं कि बात जाहिर हो तो हो कैसे , रुख
Rabindra Kumar Ram
" यूं तो होने का मैं भी हूं , यूं तो होने का तुम भी हो , फिर किस में किसकी वजूद तलाश की जाये , तलबगार हैं कि बात जाहिर हो तो हो कैसे , रुख ये भी हैं बात जरा जाहिर ये भी हैं , खुद में खुद से किसकी मौजूदगी तलाश की जाये . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " यूं तो होने का मैं भी हूं , यूं तो होने का तुम भी हो , फिर किस में किसकी वजूद तलाश की जाये , तलबगार हैं कि बात जाहिर हो तो हो कैसे , रुख
Rabindra Kumar Ram
sunset nature *** ग़ज़ल *** *** हिज्र *** " मैं तुमसे मिलते हैं और बिछड़ जाते , अपने चाहतों का एहतियातन आता - पता तो दे , फिर तुझसे कैसे कहा मिला जाये , वाक़िफ हो लो जऱा तुम भी ऐसे में , जाने कब से मुझसे नागवार बने बैठे हो , फिर कहा कैसे तेरी तलाश की जाये , उल्फत के जज्बातों को तेरी रुह की तलब की जाये , मुंतज़िर जाने मैं कब से हू तेरे हिज्र में , अपनी रफ़ाक़त का जायका तो दे , फिर कहा कोई बात हो ग़ैरइरादतन , मुख़्तसर - मुख्तलिफ जाने मैं कब से इस ऐबज में , कर कोई फैसला फिर कोई बात तो हो , ऐसे में तुझसे काफिर कब तक रहा जाये . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** हिज्र *** " मैं तुमसे मिलते हैं और बिछड़ जाते , अपने चाहतों का एहतियातन आता - पता तो दे , फिर तुझसे कैसे कहा मिला जाये