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tripti agnihotri
तृप्ति की कलम से एक ग़ज़ल #बेवजह_भी_कभी_कहकहा_कीजिए 212 212 212 212 बेवजह जुल्म को मत सहा कीजिए। मग्न खुद में हमेशा रहा कीजिए। रूठ ही जायगें है जिन्हें रूठना बात मन की हमेशा कहा कीजिए। वक्त रहते करो बात खुद से कभी भावना में न आकर बहा कीजिए। चार दिन का है जीवन खुशी से जिओ शोक की अग्नि में मत दहा कीजिए। क्या पता कब सफर खत्म हो जायगा बेवजह भी कभी कहकहा कीजिए। स्वरचित तृप्ति अग्निहोत्री लखीमपुर खीरी ©tripti agnihotri तृप्ति की कलम से गजल
PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान'
अकबर इलाहाबादी साहब की गजल जो दिल से निकाली जाएगी क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी इस नज़ाकत पर ये शमशीर-ए-जफ़ा आप से क्यूँकर सँभाली जाएगी क्या ग़म-ए-दुनिया का डर मुझ रिंद को और इक बोतल चढ़ा ली जाएगी शैख़ की दावत में मय का काम क्या एहतियातन कुछ मँगा ली जाएगी याद-ए-अबरू में है 'अकबर' महव यूँ कब तिरी ये कज-ख़याली जाएगी ©PRIYANK SHRIVASTAVA 'ARMAAN' अकबर इलाहाबादी साहब की गजल