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Urvashi Kapoor
किसकी लगी बद्दुआ जो हमें तुम मिल गए.... पल, भर की मिली "खुशियां" और "जिंदगी" भर का गम दे, गए.... "तड़पते" रहे, हम तुम्हें पाने को और तुम किसी और के हमसफर बन गए.... ©Urvashi Kapoor #किसकी लगी बद्दुआ.....
Babu Qureshi
सभी तो टूट गये पत्ते पेड़ से तूफान छुपे खड़े थे कितनी देर से रिश्तों का बोझ था तो वो भी उतर गया चलो तुम भी गैर से और हम भी गैर से कौन सी मजबूरी ने तुम्हें मेरा कर दिया था क्यों आज़ाद हो गये मेरे हक और मेहर से कभी ये गांव मोहब्बत के हुआ करते थे फिर क्यों नज़र आने लगे ये शहर से हमें इस पार और तुम्हें उस पार कर दिया मैं कहां हूं मतलब नहीं तुम तो पहुंच गये खैर से बात ज़माने में ले आये हो फैसला कौन करेगा कौन कितना टूटा एक दूसरे के अंधेर से पहुंच तो मैं भी गया था पता नहीं मिला पेड़ उखाड़ लिया था किसी ने मुंडेर से शायर - बाबू कुरैशी #किसकी लगी नज़र
Poet Zabir
मेरी मोहब्बत को नज़र अदाज़ करने लगी हो मुझे लगता है किसी और से बात करने लगी हो ©Poet Zabir #Couple मेरी मोहब्बत को नज़र अंदाज़ करने लगी हो
#Couple मेरी मोहब्बत को नज़र अंदाज़ करने लगी हो
read moreGautam Inder
पता नहीं बद्दुआ किसकी लगी इश्क़ को, की इश्क़ को इश्क़ नहीं मिल रहा। सोचा डूबेंगे इसमें तो कहीं पे मिल जाएंगे, मग़र पता नहीं ये क्यों किनारा नहीं मिल रहा। बहते जा रहे हैं, पता नहीं कहाँ जा रहे हैं, सुकून छोड़ो बेचैनी में भी पता नहीं क्यों खलल पड़ रहा। कब्र खुद चुकी कबकी वो दूर तलक उस दरिया में, और मौत को पता नहीं हमारा पता क्यों नहीं मिल रहा। - गौतम पता नहीं बद्दुआ किसकी लगी... for more posts follow..👇 https://instagram.com/indergautam?igshid=oualzrigsjyo
पता नहीं बद्दुआ किसकी लगी... for more posts follow..👇 https://instagram.com/indergautam?igshid=oualzrigsjyo
read moreSangeeta Raturi
इस शहर को यारों नजर लगी है किसकी चारों तरफ ख़ामोशी और दबी सी है सिसकी दूर तक ना कोई नजर आता है मन को डरता है सन्नाटा। शोर जिंदगी का थमा हुआ सा पहिया गाड़ियों का रुका हुआ है एक वायरस से दुनिया डरी हुई बंद मकानों में दुबकी हुई। सुनसान गलियां बाजार वीरान हैं हर तरफ खौफ है आफत में जान है पर इस सब में एक तस्वीर जो विचलित करती पत्थर हो गए दिल को भी द्रवित करती है। वह है उस मजदूर वर्ग की जो मजबूर है छोड़ने को अपना शहर जिसकी इमारतें ख़ड़ी करने में बहा है उसका पसीना जिसके उद्योग को चलाने आग में तपा है उसका सीना। आज भी उस शहर में उस के सर पर छत नहीं जिन्दा रहने के लिए भोजन नहीं। आज मदद का हर द्वार बंद हो गया और अपना था जो कभी शहर वो अजनबी हो गया है। जीवन के बोझ की गठरी सर पर उठाये नंगे पैरो पैदल ही चल पड़ा है जीवन बचाने बेबस लाचार चेहरे पर थकान और दिल में दर्द लिए चला है अपनी मंजिल की तरफ चला है फिर से उस गांव की ओर जिसको रोजी रोटी के लिए थे पीछे छोड़ आये।। " इस शहर को यारों नजर लगी है किसकी "
" इस शहर को यारों नजर लगी है किसकी " #कविता
read moresidpoetryclub
लगी है बददुआ गुलाबों की, जिसको तोड़ा था तेरे लिए..! बद्दुआ लगी h मुझे गुलाबो की
बद्दुआ लगी h मुझे गुलाबो की
read moresanjay kumar
मेरे तक़दीर की सारी लकीरे मिटा दी तुमने बस एक पल में ही मुझे भुला दी तुमने किसकी नजर लगी मेरे,,,,,,,,,,,,पर
किसकी नजर लगी मेरे,,,,,,,,,,,,पर
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